67

                        
                        
श्रीदत्त वेंकटेश्वराष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् श्रीदत्त वेङ्कटेशाय दत्तपीठाग्रवासिने। सप्तर्षि तीर्थवासाय तीर्थ तीर्थात्मने स्वयम्।।1 मृगीवन विहाराय मृत्युंजय सखाय च। योगिनी नृत्त तुष्टाय योगेशाय युगात्मने।। 2 गोघण्टारव रक्ताय गो गोप गण पालिने। गोविन्दाय च गोमार्ग गोप्त्रे गोपाल सूनवे।।3 क्षीराब्धिवासिने क्षीर वार्धि मन्थन हेतवे। धृत मन्दरशैलाय कूर्माय सुरशर्मणे।।4 नानारत्न स्वरूपाय नानौषधि रसात्मने। धन्वन्तरि स्वरूपाय पीयूष घटधारिणे।।5 क्षीरसागर जामात्रे लक्ष्मी संश्रित वक्षसे। सुरसज्जन सन्त्रात्रे जृंभमाण कृपाब्धये।।6 पद्मा हृदयवासाय पद्मनेत्राय पद्मिने। भृगुज्ञानकृते भृत्य गुपे मर्षणशीलिने।। 7 वायु गर्व निरोधाय शेषशैलाधिवासिने। वकुळावरसन्दात्रे गजराट् सेविताय च।। 8 पद्मावती मनोज्ञाया काशराट्पुण्यराशये। नित्यैश्वर्य विलासाय कलि सन्तार मूर्तये।।9 गुरवे गुरुसेव्याय गुरुमण्डलमौळये। चामुण्डाद्रि पदस्थाय श्रीदत्त सहचारिणे।। 10 श्रीमात्रभिन्नरूपाय श्रीनृसिंहाग्रजन्मने। सत्यानन्देश मित्राय सत्यायानन्दरूपिणे।।11 मूलिका वनसक्ताय धन्वन्तरियुताय च। भक्तामय विनाशाय भवरोगापहारिणे।। 12 जरारुग्भय संहर्त्रे विविधौषधिदायिने। पद्माश्रित स्वगेहाय पद्मा संगातिमोदिने।।13 कृपोल्लसित हासाय वरदायाशुतोषिणे। वराय वरहस्तश्री- वर्षिताशाधिक श्रिये।। 14 श्रीशाय श्रीप्रदायाथ श्रीपालाय श्रितश्रिये। कुलीनाय कुटुंबानु - कूल्यदाय कुलात्मने।। 15 गजास्य समवेताय गजान्तैश्वर्यदायिने। गणेश प्रीत मनसे भक्तविघ्नापहारिणे।। 16 विद्याप्रदाय वेद्याय वेत्त्रे वेदाय वेधसे। नवग्रह समेताय नानापीडा निवारिणे।। 17 कालाय कालकृ न्नेत्रे कालकालाय कालिने। श्रीवराहानुयाताय शिलादत्तानुरागिणे।।18 उदुंबर महाशाखा वीजिताय जितात्मने। पुरो गरुड सेव्याय हनुमत्सेविताय च।।19 सुवर्ण कलशोद्भासि विमानाय च मानिने। कुड्य व्यक्ताब्ज चक्राय चक्र सप्तक पालिने।। 20 प्रतिष्ठा समय व्यक्त खग चक्राय चक्रिणे। पद्मपीठग पादाय कटिन्यस्त कराय च।। 21 वर हस्ताय शंखारि धृते श्री भू श्रितोरसे। कस्तूरी तिलकाय श्री -किरीटाय गुणाब्धये।।22 गुणसङ्ग विहीनाय सच्चिदानन्दरूपिणे। नमस्तेस्तु नमस्तेस्तु नमस्तेस्तु नमो नमः।। 23 इति श्रीदत्तवेंकटेश्वर स्वामिने नमः। अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रं समर्पयामि। वेंकटेश परो देवो दत्तात्रेय परो गुरुः। द्वयो रभिन्नयो श्शक्त्या जगतामस्तु मंगळम्।। 24 पद्मावती परिगतं गणनाथ युक्तं धन्वन्तरि प्रभुयुतं ग्रहपुञ्ज सेव्यम्। श्रीदत्तपीठनिलयं प्रणमामि सच्चि- दानन्द रूपरुचिरं हृदि वेङ्कटेशम्।। 25 ==00==