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02 य    01 None    02 None    01 काण्ड    01 प्रपा   

                        
                        
श्री ललिता सहस्रनाम स्तोत्रम्।।  अस्य श्री ललितासहस्रनाम स्तोत्र मालामन्त्रस्य। वशिन्यादि वाग्देवता ऋषयः। अनुष्टुप् छन्दः। श्री ललितापराभट्टारिका महात्रिपुरसुन्दरी देवता। ऐं बीजं, ह्रीं शक्तिः, सौः कीलकम्। श्रीललिताम्बा प्रसाद सिद्यर्थे पारायणे विनियोगः। ऐं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः, क्लीं तर्जनीभ्यां नमः, सौः मध्यमाभ्यां नमः।।  सौः अनामिकाभ्यां नमः, क्लीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः, ऐं करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।।  ऐं हृदयाय नमः, क्लीं शिरसे स्वाहा, सौः शिखायै वषट्।।  सौः कवचाय हुं, क्लीं नेत्रत्रयाय वौषट्, ऐं अस्त्राय फट्। भूर्भुवस्सुवरोमिति दिग्बन्धः।।  ध्यानम्।।  अरुणां करुणा.तरङ्गिताक्षीं धृत पाशाङ्कुश.पुष्प.बाण.चापाम्। अणिमादिभि.रावृतां मयूखै.-रह.मित्येव विभावये भवानीम्।।  ध्यायेत् पद्मानस्थां विकसित.वदनां पद्मपत्रायताक्षीम् हेमाभां पीत वस्त्रां करकलित.लस.द्धेमपद्मां वराङ्गीम्। सर्वालङ्कार युक्तां सकल.मभयदां भक्तनम्रां भवानीम् श्रीविद्यां शान्तमूर्तिं सकलसुरनुतां सर्वसम्पत्प्रदात्रीम्।।  सकुङ्कुम विलेपना-मलिक.चुम्बि.कस्तूरिकाम् समन्द.हसितेक्षणां- सशरचाप.पाशाङ्कुशाम्। अशेषजन.मोहिनी-मरुणमाल्य.भूषोज्ज्वलाम् जपाकुसुम.भासुरां- जपविधौ स्मरे.दम्बिकाम्।।  पञ्चोपचारपूजा।।  लम् पृथिवी तत्त्वात्मिकायै श्रीललितादेव्यै गन्धं समर्पयामि।।  हम् आकाश तत्त्वात्मिकायै श्रीललितादेव्यै पुष्पं परिकल्पयामि।।  यम् वायु तत्त्वात्मिकायै श्रीललितादेव्यै धूपं परिकल्पयामि।।  रम् तेजस्तत्त्वात्मिकायै श्रीललितादेव्यै दीपं सन्दर्शयामि।।  वम् अमृत तत्त्वात्मिकायै श्रीललितादेव्यै अमृतनैवेद्यं परिकल्पयामि।।  सम् सर्वतत्त्वात्मिकायै श्रीललितादेव्यै सर्वोपचारान् परिकल्पयामि।। ।। स्तोत्रम्।।  श्रीमाता श्रीमहाराज्ञी- श्रीमत्सिंहासनेश्वरी। चिदग्निकुण्ड.सम्भूता- देवकार्य.समुद्यता।। 1।।  उद्यद्भानु.सहस्राभा- चतुर्बाहु.समन्विता। रागस्वरूप.पाशाढ्या- क्रोधाकाराङ्कुशोज्ज्वला।। 2।।  मनोरूपेक्षु.कोदण्डा- पञ्चतन्मात्र.सायका। निजारुण.प्रभापूर-मज्जद्.ब्रह्माण्डमण्डला।। 3।।  चम्पकाशोक.पुन्नाग-सौगन्धिक.लसत्कचा। कुरुविन्द.मणिश्रेणी-कन.त्कोटीर.मण्डिता।। 4।।  अष्टमीचन्द्र.विभ्राज-दलिकस्थल.शोभिता। मुखचन्द्र.कलङ्काभ-मृगनाभि.विशेषका।। 5।।  वदन.स्मर.माङ्गल्य-गृहतोरण.चिल्लिका। वक्त्र.लक्ष्मी.परिवाह-चल.न्मीनाभ.लोचना।। 6।।  नवचम्पक.पुष्पाभ-नासादण्ड.विराजिता। ताराकान्ति.तिरस्कारि-नासाभरण.भासुरा।। 7।।  कदम्ब.मञ्जरी.कॢप्त-कर्णपूर.मनोहरा। ताटङ्क.युगलीभूत-तपनोडुप.मण्डला।। 8।।  पद्मराग.शिलादर्श-परिभावि.कपोल.भूः। नवविद्रुम.बिम्बश्री-न्यक्कारि.रदन.च्छदा।। 9।।  शुद्ध.विद्याङ्कुराकार-द्विजपङ्क्ति.द्वयोज्ज्वला। कर्पूर.वीटिकामोद-समाकर्ष.द्दिगन्तरा।। 10।।  निजसल्लाप.माधुर्य-विनिर्भर्त्सित.कच्छपी। मन्दस्मित.प्रभापूर-मज्ज.त्कामेश.मानसा।। 11।।  अनाकलित.सादृश्य-चुबुकश्री.विराजिता। कामेश.बद्ध.माङ्गल्य-सूत्र.शोभित.कन्धरा।। 12।।  कनकाङ्गद.केयूर-कमनीय.भुजान्विता। रत्न.ग्रैवेय.चिन्ताक-लोल.मुक्ताफलान्विता।। 13।।  कामेश्वर.प्रेमरत्न-मणि.प्रतिपण.स्तनी। नाभ्यालवाल.रोमालि-लताफल.कुचद्वयी।। 14।।  लक्ष्य.रोमलताधार-ता.समुन्नेय.मध्यमा। स्तनभार.दलन्मध्य-पट्टबन्ध.वलित्रया।। 15।।  अरुणारुण.कौस्तुम्भ-वस्त्रभास्वत्.कटीतटी। रत्न.किङ्किणिका.रम्य-रशना.दाम.भूषिता।। 16।।  कामेश.ज्ञात.सौभाग्य-मार्दवोरु.द्वयान्विता। माणिक्य.मकुटाकार-जानुद्वय.विराजिता।। 17।।  इन्द्रगोप.परिक्षिप्त-स्मरतूणाभ.जङ्घिका। गूढगुल्फा कूर्म.पृष्ठ-जयिष्णु.प्रपदान्विता।। 18।।  नख.दीधिति.संछन्न-नमज्जन.तमोगुणा। पदद्वय.प्रभाजाल-पराकृत.सरोरुहा।। 19।।  शिञ्जान.मणि.मञ्जीर-मण्डित.श्रीपदाम्बुजा। मराली मन्दगमना - महालावण्य.शेवधिः।। 20।।  सर्वारुणानवद्याङ्गी- सर्वाभरण.भूषिता। शिव.कामेश्वराङ्कस्था - शिवा.स्वाधीनवल्लभा।। 21।।  सुमेरु.मध्य.शृङ्गस्था- श्रीमन्नगर.नायिका। चिन्तामणि.गृहान्तस्था- पञ्चब्रह्मासन.स्थिता।। 22।।  महा.पद्माटवी.संस्था- कदम्बवन.वासिनी। सुधा.सागर.मध्यस्था- कामाक्षी.कामदायिनी।। 23।।  देवर्षि.गण.सङ्घात-स्तूयमानात्मवैभवा। भण्डासुर.वधोध्युक्त-शक्ति.सेना.समन्विता।। 24।।  सम्पत्करी.समारूढ-सिन्धुर.व्रजसेविता। अश्वारूढाधिष्ठिताश्व-कोटि.कोटिभि.रावृता।। 25।।  चक्रराज.रथारूढ-सर्वायुध.परिष्कृता। गेयचक्र.रथारूढ-मन्त्रिणी.परिसेविता।। 26।।  किरिचक्र.रथारूढ-दण्डनाथा.पुरस्कृता। ज्वाला.मालिनिका.क्षिप्त-वह्नि.प्राकार.मध्यगा।। 27।।  भण्ड.सैन्य.वधोद्युक्त-शक्ति.विक्रम.हर्षिता। नित्या.पराक्रमाटोप-निरीक्षण.समुत्सुका।। 28।।  भण्डपुत्र.वधोध्युक्त-बाला.विक्रम.नन्दिता। मन्त्रिण्यम्बा.विरचित-विषङ्गवध.तोषिता।। 29।।  विशुक्र.प्राणहरण-वाराही.वीर्य.नन्दिता। कामेश्वर.मुखालोक-कल्पित.श्रीगणेश्वरा।। 30।।  महागणेश.निर्भिन्न-विघ्नयन्त्र.प्रहर्षिता। भण्डासुरेन्द्र.निर्मुक्त-शस्त्र.प्रत्यस्त्र.वर्षिणी।। 31।।  कराङ्गुलि.नखोत्पन्न-नारायण.दशाकृतिः। महा.पाशुपतास्त्राग्नि-निर्दग्धासुर.सैनिका।। 32।।  कामेश्वरास्त्र.निर्दग्ध-सभण्डासुर.शून्यका। ब्रह्मोपेन्द्र.महेन्द्रादि-देवसंस्तुत.वैभवा।। 33।।  हरनेत्राग्नि.सन्दग्ध-काम.सञ्जीवनौषधिः। श्रीमद्वाग्भव.कूटैक-स्वरूप.मुखपङ्कजा।। 34।।  कण्ठाध.कटिपर्यन्त-मध्य.कूट.स्वरूपिणी। शक्ति.कूटैकतापन्न-कट्यधोभाग.धारिणी।। 35।।  मूल.मन्त्रात्मिका मूल-कूटत्रय.कलेबरा। कुलामृतैक.रसिका - कुल.सङ्केत.पालिनी।। 36।।  कुलाङ्गना.कुलान्तस्था - कौलिनी.कुलयोगिनी। अकुला.समयान्तस्था - समयाचार.तत्परा।। 37।।  मूलाधारैक.निलया - ब्रह्मग्रन्थि.विभेदिनी। मणिपूरान्त.रुदिता - विष्णुग्रन्थि.विभेदिनी।। 38।।  आज्ञाचक्रान्तरालस्था - रुद्रग्रन्थि.विभेदिनी। सहस्राराम्बुजारूढा - सुधासाराभिवर्षिणी।। 39।।  तटिल्लता.समरुचि.-ष्षट्चक्रोपरि.संस्थिता। महाशक्ति.कुण्डलिनी - बिसतन्तु.तनीयसी।। 40।।  भवानी.भावनागम्या - भवारण्य.कुठारिका। भद्रप्रिया.भद्रमूर्ति.-र्भक्त.सौभाग्य.दायिनी।। 41।।  भक्तिप्रिया भक्तिगम्या - भक्तिवश्या भयापहा। शाम्भवी शारदाराध्या - शर्वाणी शर्मदायिनी।। 42।।  शाङ्करी श्रीकरी साध्वी शरच्चन्द्र.निभानना। शातोदरी शान्तिमती - निराधारा निरञ्जना।। 43।।  निर्लेपा निर्मला नित्या - निराकारा निराकुला। निर्गुणा निष्कला शान्ता - निष्कामा निरुपप्लवा।। 44।।  नित्यमुक्ता निर्विकारा - निष्प्रपञ्चा निराश्रया। नित्यशुद्धा नित्यबुद्धा - निरवद्या निरन्तरा।। 45।।  निष्कारणा निष्कलङ्का - निरुपाधि.र्निरीश्वरा। नीरागा रागमथनी - निर्मदा मदनाशिनी।। 46।।  निश्चिन्ता निरहङ्कारा - निर्मोहा मोहनाशिनी। निर्ममा ममताहन्त्री - निष्पापा पापनाशिनी।। 47।।  निष्क्रोधा क्रोधशमनी - निर्लोभा लोभनाशिनी। निस्संशया संशयघ्नी - निर्भवा भवनाशिनी।। 48।।  निर्विकल्पा निराबाधा - निर्भेदा भेदनाशिनी। निर्णाशा मृत्युमथनी - निष्क्रिया निष्परिग्रहा।। 49।।  निस्तुला नीलचिकुरा - निरपाया निरत्यया। दुर्लभा दुर्गमा दुर्गा - दुःखहन्त्री सुखप्रदा।। 50।।  दुष्टदूरा दुराचार-शमनी दोषवर्जिता। सर्वज्ञा सान्द्रकरुणा - समानाधिक.वर्जिता।। 51।।  सर्वशक्तिमयी सर्व-मङ्गला सद्गतिप्रदा। सर्वेश्वरी सर्वमयी - सर्वमन्त्र.स्वरूपिणी।। 52।।  सर्वयन्त्रात्मिका - सर्वतन्त्ररूपा मनोन्मनी। महेश्वरी महादेवी - महालक्ष्मी.र्मृडप्रिया।। 53।।  महारूपा महापूज्या - महापातक.नाशिनी। महामाया महासत्त्वा - महाशक्ति.र्महारतिः।। 54।।  महाभोगा महैश्वर्या - महावीर्या महाबला। महाबुद्धि.र्महासिद्धि-र्महायोगीश्वरेश्वरी।। 55।।  महातन्त्रा महामन्त्रा महायन्त्रा महासना। महायागक्रमाराध्या - महाभैरव.पूजिता।। 56।।  महेश्वर.महाकल्प-महाताण्डव.साक्षिणी। महाकामेश.महिषी - महा.त्रिपुरसुन्दरी।। 57।।  चतुष्षष्ट्युपचाराढ्या - चतुष्षष्टि.कलामयी। महाचतुष्षष्टि.कोटि-योगिनीगण.सेविता।। 58।।  मनुविद्या चन्द्रविद्या - चन्द्रमण्डल. मध्यगा। चारुरूपा चारुहासा - चारु.चन्द्रकलाधरा।। 59।।  चराचर.जगन्नाथा - चक्रराज.निकेतना। पार्वती पद्मनयना - पद्मराग.समप्रभा।। 60।।  पञ्चप्रेतासनासीना - पञ्चब्रह्म.स्वरूपिणी। चिन्मयी परमानन्दा - विज्ञानघन.रूपिणी।। 61।।  ध्यान.ध्यातृ.ध्येय.रूपा - धर्माधर्म.विवर्जिता। विश्वरूपा जागरिणी - स्वपन्ती तैजसात्मिका।। 62।।  सुप्ता प्राज्ञात्मिका - तुर्या सर्वावस्था.विवर्जिता। सृष्टिकर्त्री ब्रह्मरूपा - गोप्त्री गोविन्दरूपिणी।। 63।।  संहारिणी रुद्ररूपा - तिरोधानकरीश्वरी। सदाशिवा.नुग्रहदा - पञ्चकृत्य.परायणा।। 64।।  भानुमण्डल.मध्यस्था - भैरवी भगमालिनी। पद्मासना भगवती - पद्मनाभ.सहोदरी।। 65।।  उन्मेष.निमिषोत्पन्न - विपन्न.भुवनावलिः। सहस्रशीर्षवदना - सहस्राक्षी सहस्रपात्।। 66।।  आब्रह्म.कीटजननी - वर्णाश्रम.विधायिनी। निजाज्ञारूप.निगमा - पुण्यापुण्य.फलप्रदा।। 67।।  श्रुतिसीमन्त.सिन्दूरी - कृत.पादाब्ज.धूलिका। सकलागम.सन्दोह - शुक्ति.सम्पुट.मौक्तिका।। 68।।  पुरुषार्थप्रदा पूर्णा - भोगिनी भुवनेश्वरी। अम्बिका.नादि.निधना - हरिब्रह्मेन्द्र.सेविता।। 69।।  नारायणी नादरूपा - नामरूप विवर्जिता। ह्रीङ्कारी ह्रीमती हृद्या - हेयोपादेय.वर्जिता।। 70।।  राजराजार्चिता राज्ञी - रम्या राजीवलोचना। रञ्जनी रमणी रस्या - रणत्किङ्किणि.मेखला।। 71।।  रमा राकेन्दुवदना - रतिरूपा रतिप्रिया। रक्षाकरी राक्षसघ्नी - रामा रमणलम्पटा।। 72।।  काम्या कामकलारूपा - कदम्ब.कुसुमप्रिया। कल्याणी जगतीकन्दा - करुणारस.सागरा।। 73।।  कलावती कलालापा - कान्ता कादम्बरीप्रिया। वरदा वामनयना - वारुणीमद.विह्वला।। 74।।  विश्वाधिका वेदवेद्या - विन्ध्याचल.निवासिनी। विधात्री वेदजननी - विष्णुमाया विलासिनी।। 75।।  क्षेत्रस्वरूपा क्षेत्रेशी - क्षेत्र.क्षेत्रज्ञ.पालिनी। क्षयवृद्धि.विनिर्मुक्ता - क्षेत्रपाल.समर्चिता।। 76।।  विजया विमला वन्द्या - वन्दारुजन.वत्सला। वाग्वादिनी वामकेशी - वह्निमण्डल.वासिनी।। 77।।  भक्तिमत्.कल्पलतिका - पशुपाश.विमोचनी। संहृताशेष.पाषण्डा - सदाचार.प्रवर्तिका।। 78।।  तापत्रयाग्नि.सन्तप्त-समाह्लादन.चन्द्रिका। तरुणी तापसाराध्या - तनुमध्या तमोपहा।। 79।।  चिति.स्तत्पद.लक्ष्यार्था - चिदेकरस.रूपिणी। स्वात्मानन्द.लवीभूत-ब्रह्माद्यानन्द.सन्ततिः।। 80।।  परा प्रत्यक्चितीरूपा - पश्यन्ती परदेवता। मध्यमा वैखरीरूपा - भक्त.मानस.हंसिका।। 81।।  कामेश्वर.प्राणनाडी - कृतज्ञा कामपूजिता। शृङ्गाररस.सम्पूर्णा - जया जालन्धर.स्थिता।। 82।।  ओड्याणपीठ.निलया - बिन्दुमण्डल.वासिनी। रहोयाग.क्रमाराध्या - रह.स्तर्पण.तर्पिता।। 83।।  सद्यप्रसादिनी विश्व-साक्षिणी साक्षिवर्जिता। षडङ्ग.देवतायुक्ता - षाड्गुण्य.परिपूरिता।। 84।।  नित्यक्लिन्ना निरुपमा - निर्वाण.सुखदायिनी। नित्या.षोडशिकारूपा- श्रीकण्ठार्धशरीरिणी।। 85।।  प्रभावती प्रभारूपा - प्रसिद्धा परमेश्वरी। मूलप्रकृति.रव्यक्ता - व्यक्ताव्यक्त.स्वरूपिणी।। 86।।  व्यापिनी विविधाकारा - विद्याविद्यास्वरूपिणी। महाकामेश.नयन-कुमुदाह्लाद.कौमुदी।। 87।।  भक्त.हार्दतमो.भेद-भानुम.द्भानुसन्ततिः। शिवदूती शिवाराध्या - शिवमूर्ति.श्शिवङ्करी।। 88।।  शिवप्रिया शिवपरा - शिष्टेष्टा शिष्टपूजिता। अप्रमेया स्वप्रकाशा - मनो.वाचा.मगोचरा।। 89।।  चिच्छक्ति.श्चेतनारूपा - जडशक्ति.र्जडात्मिका। गायत्री व्याहृति.स्सन्ध्या - द्विजबृन्द.निषेविता।। 90।।  तत्त्वासना तत्.त्व.मयी - पञ्चकोशान्तर.स्थिता। निस्सीम.महिमा नित्य-यौवना मदशालिनी।। 91।।  मद.घूर्णित.रक्ताक्षी - मद.पाटल.गण्डभूः। चन्दनद्रव.दिग्धाङ्गी - चाम्पेयकुसुम.प्रिया।। 92।।  कुशला कोमलाकारा - कुरुकुळ्ळा कुलेश्वरी। कुलकुण्डालया कौल-मार्गतत्पर.सेविता।। 93।।  कुमार.गणनाथाम्बा - तुष्टि पुष्टि.र्मति.र्धृतिः। शान्ति.स्स्वस्तिमती कान्ति.-र्नन्दिनी विघ्ननाशिनी।। 94।।  तेजोवती त्रिनयना - लोलाक्षी कामरूपिणी। मालिनी हंसिनी माता - मलयाचल वासिनी।। 95।।  सुमुखी नलिनी सुभ्रू.-श्शोभना सुरनायिका। कालकण्ठी कान्तिमती - क्षोभिणी सूक्ष्मरूपिणी।। 96।।  वज्रेश्वरी वामदेवी - वयोवस्था.विवर्जिता। सिद्धेश्वरी सिद्धविद्या - सिद्धमाता यशस्विनी।। 97।।  विशुद्धचक्र.निलया - रक्तवर्णा त्रिलोचना। खट्वाङ्गादि.प्रहरणा - वदनैकसमन्विता।। 98।।  पायसान्नप्रिया त्वक्स्था - पशुलोक.भयङ्करी। अमृतादि.महाशक्ति-सँवृता ढाकिनीश्वरी।। 99।।  अनाहताब्ज.निलया - श्यामाभा वदनद्वया। दंष्ट्रोज्ज्वला.क्षमालादि-धरा रुधिर.संस्थिता।। 100।।  कालरात्र्यादि.शक्त्यौघ-वृता स्निग्धौदन.प्रिया। महावीरेन्द्र.वरदा - राकिण्यम्बा.स्वरूपिणी।। 101।।  मणिपूराब्ज.निलया - वदनत्रय.सँयुता। वज्रादिकायुधोपेता - डामर्यादिभि.रावृता।। 102।।  रक्तवर्णा मांसनिष्ठा - गुडान्न.प्रीतमानसा। समस्तभक्त.सुखदा - लाकिन्यम्बा.स्वरूपिणी।। 103।।  स्वाधिष्ठानाम्बुज.गता - चतुर्वक्त्र.मनोहरा। शूलाद्यायुध.सम्पन्ना - पीतवर्णा.तिगर्विता।। 104।।  मेदोनिष्ठा मधुप्रीता - बन्दिन्यादि.समन्विता। दध्यन्नासक्त.हृदया - काकिनीरूप.धारिणी।। 105।।  मूलाधाराम्बुजारूढा - पञ्चवक्त्रा.स्थिसंस्थिता। अङ्कुशादि.प्रहरणा - वरदादि.निषेविता।। 106।।  मुद्गौदनासक्तचित्ता - साकिन्यम्बा.स्वरूपिणी। आज्ञाचक्राब्ज.निलया - शुक्लवर्णा षडानना।। 107।।  मज्जासंस्था हंसवती-मुख्यशक्ति.समन्विता। हरिद्रान्नैक.रसिका - हाकिनीरूप.धारिणी।। 108।।  सहस्रदल.पद्मस्था - सर्ववर्णोप.शोभिता। सर्वायुधधरा शुक्ल-संस्थिता सर्वतोमुखी।। 109।।  सर्वौदन.प्रीतचित्ता - याकिन्यम्बा.स्वरूपिणी। स्वाहा स्वधा मति.र्मेधा - श्रुति.स्स्मृति.रनुत्तमा।। 110।।  पुण्यकीर्ति पुण्यलभ्या - पुण्य.श्रवणकीर्तना। पुलोमजार्चिता बन्ध-मोचनी बन्धुरालका।। 111।।  विमर्शरूपिणी विद्या- वियदादिजगत्.प्रसूः। सर्वव्याधि.प्रशमनी - सर्वमृत्यु.निवारिणी।। 112।।  अग्रगण्या.चिन्त्यरूपा - कलि.कल्मष.नाशिनी। कात्यायनी कालहन्त्री - कमलाक्ष.निषेविता।। 113।।  ताम्बूल.पूरितमुखी - दाडिमी.कुसुमप्रभा। मृगाक्षी मोहिनी मुख्या - मृडानी मित्ररूपिणी।। 114।।  नित्यतृप्ता भक्तनिधि.-र्नियन्त्री निखिलेश्वरी। मैत्र्यादि.वासना.लभ्या - महाप्रलय.साक्षिणी।। 115।।  पराशक्ति परानिष्ठा - प्रज्ञानघन.रूपिणी। माध्वीपानालसा मत्ता - मातृकावर्ण.रूपिणी।। 116।।  महाकैलास.निलया - मृणाल.मृदु.दोर्लता। महनीया दयामूर्ति.-र्महासाम्राज्य.शालिनी।। 117।।  आत्मविद्या महाविद्या - श्रीविद्या कामसेविता। श्रीषोडशाक्षरी.विद्या - त्रिकूटा कामकोटिका।। 118।।  कटाक्ष.किङ्करीभूत-कमलाकोटि.सेविता। शिरस्स्थिता चन्द्रनिभा - फालस्थेन्द्रधनुप्रभा।। 119।।  हृदयस्था रविप्रख्या - त्रिकोणान्तर.दीपिका। दाक्षायणी दैत्यहन्त्री - दक्षयज्ञ.विनाशिनी।। 120।।  दरान्दोलित.दीर्घाक्षी - दरहासोज्ज्वलन्मुखी। गुरुमूर्ति.र्गुणनिधि.-र्गोमाता गुहजन्मभूः।। 121।।  देवेशी दण्डनीतिस्था - दहराकाश.रूपिणी। प्रतिप.न्मुख्य.राकान्त-तिथिमण्डल.पूजिता।। 122।।  कलात्मिका कलानाथा - काव्यालाप.विनोदिनी। सचामर.रमा.वाणी-सव्य.दक्षिण.सेविता।। 123।।  आदिशक्ति.रमेया.त्मा - परमा पावनाकृतिः। अनेककोटि.ब्रह्माण्ड-जननी दिव्यविग्रहा।। 124।।  क्लीङ्कारी केवला गुह्या - कैवल्यपद.दायिनी। त्रिपुरा त्रिजगद्वन्द्या - त्रिमूर्ति.स्त्रिदशेश्वरी।। 125।।  त्र्यक्षरी दिव्यगन्धाढ्या - सिन्दूर.तिलकाञ्चिता। उमा शैलेन्द्रतनया - गौरी गन्धर्वसेविता।। 126।।  विश्वगर्भा स्वर्णगर्भा.-वरदा वागधीश्वरी। ध्यानगम्यापरिच्छेद्या - ज्ञानदा ज्ञानविग्रहा।। 127।।  सर्ववेदान्त.सँवेद्या - सत्यानन्द.स्वरूपिणी। लोपामुद्रार्चिता लीला-कॢप्त.ब्रह्माण्डमण्डला।। 128।।  अदृश्या दृश्यरहिता - विज्ञात्री वेद्यवर्जिता। योगिनी योगदा योग्या - योगानन्दा युगन्धरा।। 129।।  इच्छाशक्ति.ज्ञानशक्ति-क्रियाशक्ति.स्वरूपिणी। सर्वाधारा सुप्रतिष्ठा - सदसद्रूप.धारिणी।। 130।।  अष्टमूर्ति.रजा जैत्री - लोकयात्रा.विधायिनी। एकाकिनी भूमरूपा - निर्द्वैता द्वैतवर्जिता।। 131।।  अन्नदा वसुधा वृद्धा - ब्रह्मात्मैक्य.स्वरूपिणी। बृहती ब्राह्मणी ब्राह्मी - ब्रह्मानन्दा बलिप्रिया।। 132।।  भाषारूपा बृहत्सेना - भावाभाव.विवर्जिता। सुखाराध्या शुभकरी - शोभना.सुलभा.गतिः।। 133।।  राजराजेश्वरी राज्य-दायिनी राज्यवल्लभा। राजत्कृपा राजपीठ-निवेशित.निजाश्रिता।। 134।।  राज्यलक्ष्मी कोशनाथा - चतुरङ्ग.बलेश्वरी। साम्राज्यदायिनी सत्य-सन्धा सागरमेखला।। 135।।  दीक्षिता दैत्यशमनी - सर्वलोक.वशङ्करी। सर्वार्थदात्री सावित्री - सच्चिदानन्द.रूपिणी।। 136।।  देशकालापरिच्छिन्ना - सर्वगा सर्वमोहिनी। सरस्वती शास्त्रमयी - गुहाम्बा गुह्यरूपिणी।। 137।।  सर्वोपाधि.विनिर्मुक्ता - सदाशिव.पतिव्रता। सम्प्रदायेश्वरी साध्वी - गुरुमण्डल.रूपिणी।। 138।।  कुलोत्तीर्णा भगाराध्या - माया मधुमती मही। गणाम्बा गुह्यकाराध्या - कोमलाङ्गी गुरुप्रिया।। 139।।  स्वतन्त्रा सर्वतन्त्रेशी - दक्षिणामूर्ति.रूपिणी। सनकादि.समाराध्या - शिवज्ञान.प्रदायिनी।। 140।।  चित्कला.नन्दकलिका - प्रेमरूपा.प्रियङ्करी। नामपारायण.प्रीता - नन्दिविद्या नटेश्वरी।। 141।।  मिथ्याजग.दधिष्ठाना - मुक्तिदा मुक्तिरूपिणी। लास्यप्रिया लयकरी - लज्जा रम्भादि.वन्दिता।। 141।।  भवदाव.सुधावृष्टि - पापारण्य.दवानला। दौर्भाग्य.तूल.वातूला - जरा.ध्वान्त.रविप्रभा।। 142।।  भाग्याब्धि.चन्द्रिका भक्त-चित्त.केकि.घनाघना। रोगपर्वत.दम्भोलि.-र्मृत्युदारु.कुठारिका।। 143।।  महेश्वरी महाकाली - महाग्रासा महाशना। अपर्णा चण्डिका चण्ड-मुण्डासुर.निषूदिनी।। 144।।  क्षराक्षरात्मिका - सर्वलोकेशी विश्वधारिणी। त्रिवर्गदात्री सुभगा - त्र्यम्बका त्रिगुणात्मिका।। 145।।  स्वर्गापवर्गदा शुद्धा - जपापुष्प.निभाकृतिः। ओजोवती द्युतिधरा - यज्ञरूपा प्रियव्रता।। 146।।  दुराराध्या दुराधर्षा - पाटलीकुसुम.प्रिया। महती मेरुनिलया - मन्दार.कुसुमप्रिया।। 147।।  वीराराध्या विराड्रूपा - विरजा विश्वतोमुखी। प्रत्यग्रूपा पराकाशा - प्राणदा प्राणरूपिणी।। 148।।  मार्ताण्ड.भैरवाराध्या - मन्त्रिणी.न्यस्त.राज्यधूः। त्रिपुरेशी जयत्सेना - निस्त्रैगुण्या परापरा।। 149।।  सत्यज्ञानानन्द.रूपा - सामरस्य.परायणा। कपर्दिनी कलामाला - कामधुक्.कामरूपिणी।। 150।।  कलानिधि काव्यकला - रसज्ञा रसशेवधिः। पुष्टा पुरातना पूज्या - पुष्करा पुष्करेक्षणा।। 151।।  परञ्ज्योति परन्धाम - परमाणु परात्परा। पाशहस्ता पाशहन्त्री - परमन्त्र.विभेदिनी।। 152।।  मूर्ता.मूर्ता.नित्यतृप्ता - मुनिमानस.हंसिका। सत्यव्रता सत्यरूपा - सर्वान्तर्यामिनी सती।। 153।।  ब्रह्माणी ब्रह्म जननी - बहुरूपा बुधार्चिता। प्रसवित्री प्रचण्डाज्ञा - प्रतिष्ठा प्रकटाकृतिः।। 154।।  प्राणेश्वरी प्राणदात्री - पञ्चाशत्पीठ.रूपिणी। विशृङ्खला विविक्तस्था - वीरमाता वियत्प्रसूः।। 155।।  मुकुन्दा मुक्तिनिलया - मूलविग्रह.रूपिणी। भावज्ञा भवरोगघ्नी - भवचक्र.प्रवर्तिनी।। 156।।  छन्दस्सारा शास्त्रसारा - मन्त्रसारा तलोदरी। उदारकीर्ति.रुद्दाम-वैभवा वर्णरूपिणी।। 157।।  जन्ममृत्यु.जरातप्त-जन.विश्रान्तिदायिनी। सर्वोपनिष.दुद्घुष्टा - शान्त्यतीत.कलात्मिका।। 158।।  गम्भीरा गगनान्तस्था - गर्विता गानलोलुपा। कल्पनारहिता काष्ठा.-कान्ता कान्तार्धविग्रहा।। 159।।  कार्यकारण.निर्मुक्ता - कामकेलि.तरङ्गिता। कनत्कनक.ताटङ्का - लीलाविग्रह.धारिणी।। 160।।  अजा क्षय.विनिर्मुक्ता - मुग्धा क्षिप्र.प्रसादिनी। अन्तर्मुख.समाराध्या - बहिर्मुख.सुदुर्लभा।। 161।।  त्रयी त्रिवर्गनिलया - त्रिस्था त्रिपुरमालिनी। निरामया निरालम्बा - स्वात्मारामा सुधास्रुतिः।। 162।।  संसारपङ्क.निर्मग्न-समुद्धरण.पण्डिता। यज्ञप्रिया यज्ञकर्त्री - यजमान.स्वरूपिणी।। 163।।  धर्माधारा धनाध्यक्षा - धनधान्य.विवर्धिनी। विप्रप्रिया विप्ररूपा - विश्वभ्रमण.कारिणी।। 164।।  विश्वग्रासा विद्रुमाभा - वैष्णवी विष्णुरूपिणी। अयोनि.र्योनिनिलया - कूटस्था कुलरूपिणी।। 165।।  वीरगोष्ठीप्रिया वीरा - नैष्कर्म्या नादरूपिणी। विज्ञानकलना कल्या - विदग्धा बैन्दवासना।। 166।।  तत्त्वाधिका तत्त्वमयी - तत्त्व.मर्थस्वरूपिणी। सामगानप्रिया सौम्या - सदाशिव.कुटुम्बिनी।। 167।।  सव्यापसव्य.मार्गस्था - सर्वाप.द्विनिवारिणी। स्वस्था स्वभाव.मधुरा धीरा धीर.समर्चिता।। 168।।  चैतन्यार्घ्य.समाराध्या - चैतन्य.कुसुमप्रिया। सदोदिता सदातुष्टा - तरुणादित्य.पाटला।। 169।।  दक्षिणादक्षिणाराध्या - दरस्मेर.मुखाम्बुजा। कौलिनीकेवला.नर्घ्य-कैवल्य.पददायिनी।। 170।।  स्तोत्रप्रिया स्तुतिमती - श्रुति.संस्तुत.वैभवा। मनस्विनी मानवती - महेशी मङ्गलाकृतिः।। 171।।  विश्वमाता जगद्धात्री - विशालाक्षी विरागिणी। प्रगल्भा परमोदारा - परामोदा मनोमयी।। 172।।  व्योमकेशी विमानस्था - वज्रिणी वामकेश्वरी। पञ्चयज्ञप्रिया पञ्च-प्रेतमञ्चाधिशायिनी।। 173।।  पञ्चमी पञ्चभूतेशी - पञ्चसङ्ख्योपचारिणी। शाश्वती शाश्वतैश्वर्या - शर्मदा शम्भुमोहिनी।। 174।।  धरा धरसुता धन्या - धर्मिणी धर्मवर्धिनी। लोकातीता गुणातीता - सर्वातीता शमात्मिका।। 175।।  बन्धूककुसुम.प्रख्या - बाला लीलाविनोदिनी। सुमङ्गली सुखकरी - सुवेषाढ्या सुवासिनी।। 176।।  सुवासिन्यर्चन.प्रीता - शोभना शुद्धमानसा। बिन्दुतर्पण.सन्तुष्टा - पूर्वजा त्रिपुराम्बिका।। 177।।  दशमुद्रा.समाराध्या - त्रिपुरा.श्रीवशङ्करी। ज्ञानमुद्रा ज्ञानगम्या - ज्ञानज्ञेय.स्वरूपिणी।। 178।।  योनिमुद्रा त्रिखण्डेशी - त्रिगुणा.म्बा त्रिकोणगा। अनघा.द्भुतचारित्रा - वाञ्छितार्थ.प्रदायिनी।। 179।।  अभ्यासातिशयज्ञाता - षडध्वातीत.रूपिणी। अव्याज.करुणामूर्ति.-रज्ञानध्वान्त.दीपिका।। 180।।  आबालगोप.विदिता - सर्वानुल्लङ्घ्य.शासना। श्रीचक्रराज.निलया - श्रीमत्त्रिपुर.सुन्दरी।। 181।।  श्रीशिवा शिवशक्त्यैक्य-रूपिणी ललिताम्बिका। एवं श्रीललितादेव्या नाम्नां साहस्रकं जगुः।। 182।।  इति श्री ब्रह्माण्डपुराणे उत्तर खण्डे श्रीहयग्रीवागस्त्यसँवादे श्री ललितारहस्य.नामसाहस्र.स्तोत्र.कथनं नाम द्वितीयोध्यायः।। ==00==