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महान्यासः (यजुर्वेदीयः बोधायनोक्तविधिः) रुद्राभिषेचनविधिः ----  आदौ पञ्चाङ्ग रौद्रीकरणम् (शिव पञ्चाक्षरी मन्त्रस्य पञ्चाक्षरान् पञ्चदिक्षु न्यसेत्) अथात पञ्चाङ्ग रुद्राणाम्।। • ओङ्कार मन्त्र सँयुक्तं नित्य न्ध्यायन्ति योगिनः। कामदं मोक्षदं तस्मै ओङ्काराय नमो नमः।। • नमस्ते देव देवेश नमस्ते परमेश्वर। नमस्ते वृषभारूढ नकाराय नमोनमः।। ॐ भूर्भुवस्सुवः। ॐ नं।  नमस्ते रुद्र मन्यव ....... रुद्र मृडय। ॐ नमो भगवते रुद्राय। नं ॐ पूर्वाङ्ग रुद्राय नमः।। • महादेवं महात्मानं महापातक नाशनम्। महापाप हरं वन्दे मकाराय नमो नमः।।  ॐ भूर्भुव स्सुवः। ॐ मं।  निधन पतये नमः। ... परमलिङ्गाय नमः।। ॐ नमो भगवते रुद्राय। मं ॐ। दक्षिणाङ्ग रुद्राय नमः।। • शिवं शान्तं जगन्नाथं लोकानु ग्रहकारणम्। शिवमेकं परं वन्दे शिकाराय नमो नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः। ॐ शिं।  अपैतु मृत्युरमृतं ... न श्शचीपतिः।। ॐ नमो भगवते रुद्राय। शिं ॐ। पश्चिमाङ्ग रुद्राय नमः।। • वाहनं वृषभो यस्य वासुकि कण्ठभूषणम्। वामे शक्तिधरं वन्दे वकाराय नमो नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ वां।  प्राणानां ग्रन्थिरसि ..... मृत्युर्मे पाहि।। ॐ नमो भगवते रुद्राय। वां ॐ। उत्तरांग रुद्राय नमः।। • यत्र कुत्र स्थितं देवं सर्व व्यापिन मीश्वरम्। यल्लिङ्गं पूजये न्नित्यं यकाराय नमो नमः।। ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ यं।  यो रुद्रो अग्नौ यो ...... रुद्राय नमो अस्तु।। ॐ नमो भगवते रुद्राय। यं ॐ। ऊर्ध्वांग रुद्राय नमः।। (नमस्ते निधनापैतु प्राणानां यो रुद्रः पञ्च।) ----  पञ्चमुख ध्यानम् ॐ भूर्भुवस्सुवः। ॐ नं।।  तत्पुरुषाय विद्महे महा देवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।। • सँवर्ताग्नि तटि त्प्रदीप्त कनक प्रस्पर्धि तेजोमयं गंभीर ध्वनि सामवेदजनकं ताम्राधरं सुन्दरम्। अर्धेन्दु द्युतिलोल पिङ्गळ जटाभार प्रबद्धोरगं वन्दे सिद्ध सुरासुरेन्द्र नमितं पूर्वं मुखं शूलिनः।। ॐ नमो भगवते रुद्राय। नं ॐ। पूर्वमुखाय नमः।  ॐ भूर्भुवस्सुवः। ॐ मं।  अघोरेभ्योथ घोरेभ्यो ... रुद्र रूपेभ्यः।। • कालाभ्र भ्रमराञ्जन द्युति निभं व्यावृत्त पिङ्गेक्षणं कर्णोद्भासित भोगिमस्तक मणि प्रोद्गीर्ण दंष्ट्राङ्कुरं। सर्प प्रोत कपाल शुक्ति शकल व्याकीर्ण सच्छेखरं वन्दे दक्षिण मीश्वरस्य कुटिलभ्रूभङ्ग रौद्रं मुखम्।। ॐ नमो भगवते रुद्राय। मं ॐ। दक्षिणमुखाय नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः। ॐ शिं।  सद्योजातं प्रपद्यामि... भवोद्भवाय नमः।। • प्रालेयाचल मिन्दु कुन्द धवळं गोक्षीर फेनप्रभं भस्माभ्यक्त मनङ्ग देह दहन ज्वालावळी लोचनम्। ब्रह्मेन्द्रादि मरुद्गणै स्स्तुतिपदै रभ्यर्चितं योगिभिः वन्देहं सकलं कळङ्करहितं स्थाणो र्मुखं पश्चिमम्।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। शिं ॐ।। पश्चिम मुखायनमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः। ॐ वां।  वामदेवाय नमो ज्येष्ठाय ... नमो मनोन्मनाय नमः।। • गौरं कुङ्कुम पङ्किलं सुतिलकं व्यापाण्डु गण्ड स्थलं भ्रूविक्षेप कटाक्ष वीक्षण लसत्संसक्त कर्णोत्पलम्। स्निग्धं बिंब फलाधर प्रहसितं नीलालकालङ्कृतं वन्दे पूर्णशशाङ्क मण्डल निभं वक्त्रं हरस्योत्तरम्।। ॐ नमो भगवते रुद्राय। वां ॐ।। उत्तरमुखाय नमः। ॐ भूर्भुवस्सुवः। ॐ यं। ईशानस्सर्वविद्यानां ... सदाशिवोम्।। • व्यक्ताव्यक्त गुणेतरं सुविमलं षट्त्रिंश तत्त्वात्मकं तस्मादुत्तम तत्त्व मक्षर मिति ध्येयं सदा योगिभिः। ओङ्कारादि समस्त मन्त्रजनकं सूक्ष्मादि सूक्षं परं शान्तं पञ्चम मीश्वरस्य वदनं खव्यापि तेजोमयम्।। ॐ नमो भगवते रुद्राय। यं ॐ।। ऊर्ध्वमुखाय नमः। • पूर्वे पशुपति पातु दक्षिणे पातु शङ्करः। पश्चिमे पातु विश्वेशो नीलकंठस्तथोत्तरे।। • ईशान्यां पातु मां शर्वो ह्याग्नेय्यां पार्वतीपतिः। नैर्ऋत्यां पातु मे रुद्रो वायव्यां नीललोहितः।। • ऊर्ध्वे त्रिलोचन पातु - अधरायां महेश्वरः। एताभ्यो दश दिग्भ्यस्तु सर्वत पातु शङ्करः।। -----  न्यास खण्डः (नारुद्रो रुद्रमर्चयेत्। अतः, महान्यास मन्त्रै रात्मानं रुद्ररूपं भावयेत्। तदेव रौद्रीकरणम्) न्यासपूर्वकं जप होमार्चनाभिषेक विधिं व्याख्यास्यामः। (बौधायन गृह्य सूत्रम्) 1. ॐ याते रुद्र शिवा ........ चाकशीहि।। शिखायै नमः।। 2. ॐ अस्मिन्महत्यर्णवे ... धन्वानि तन्मसि।। शिरसे नमः। 3. ॐ सहस्राणि सहस्रशो... धन्वानि तन्मसि।। ललाटाय नमः। 4. ॐ हस श्शुचिष ... ऋतं बृहत्।। भ्रुवो र्मध्याय नमः। 5. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे ... मामृतात्।। नेत्राभ्यां नमः। 6. ॐ नम स्स्रुत्याय च ..... वैशन्ताय च। कर्णाभ्यां नमः। 7. ॐ मानस्तोके तनये ... हविष्मन्तो नमसा विधेम ते।। नासिकायै नमः। 8. ॐ अवतत्य धनुस्त्व ....... शिवो न स्सुमना भव। मुखाय नमः। 9. ॐ नीलग्रीवा श्शितिकण्ठा श्शर्वा .... तेषा सहस्र ... तन्मसि।। कण्ठाय नमः। 10. ॐ नीलग्रीवा श्शितिकण्ठा दिव ... तेषा सहस्र ... तन्मसि।। उप कण्ठाय नमः। 11. ॐ नमस्ते अस्त्वायुधा .... बाहुभ्या न्तव धन्वने।। बाहुभ्यां नमः। 12. ॐ या ते हेतिर्मीढुष्टम ... परिब्भुज।। उपबाहुभ्यां नमः।। 13. ॐ ये तीर्थानि प्रचरन्ति ... तेषा सहस्र ...... तन्मसि।। हस्ताभ्यां नमः। 14. ॐ सद्योजातं .... भवोद्भवाय नमः।। अङ्गुष्ठाभ्यां नमः। 15. ॐ वामदेवाय नमो ... मनोन्मनाय नमः। तर्जनीभ्यां नमः। 16. ॐ अघोरेभ्यो ... रुद्ररूपेभ्यः।। मध्यमाभ्यां नमः। 17. ॐ तत्पुरुषाय ... रुद्र प्रचोदयात्।। अनामिकाभ्यां नमः। 18. ॐ ईशान स्सर्व विद्यानां ... सदाशिवोम्। कनिष्ठिकाभ्यां नमः। 19. ॐ नमो व किरिकेभ्यो देवाना ..... आमीवत्केभ्यः।। हृदयाय नमः। 20. ॐ नमो गणेभ्यो ... विश्वरूपेभ्यश्च वो नमो नमः। पृष्ठाय नमः। 21. ॐ नम स्तक्षभ्यो ... कर्मारेभ्यश्च वो नमो नमः। कक्षाभ्यां नमः। 22. ॐ नमो हिरण्यबाहवे ....पशूनां पतये नमः।। पार्श्वाभ्यां नमः। 23. ॐ विज्य न्धनु कपर्दिनो ... आभुरस्य निषङ्गथिः।। जठराय नमः। 24. ॐ हिरण्यगर्भ स्समवर्तताग्रे भूतस्य जात पति रेक आसीत्। स दाधार पृथिवी न्द्यामुतेमा ङ्कस्मै देवाय हविषा विधेम।। नाभ्यै नमः। 25. ॐ मीढुष्टम शिवतम ..... बिभ्रदागहि।। कट्यैनमः। 26. ॐ ये भूतानामधिपतयो ... तेषासहस्र...तन्मसि।। गुह्याय नमः। 27. ॐ ये अन्नेषु विविध्यन्ति ... तेषा सहस्र .... तन्मसि। अण्डाभ्यां नमः। 28. ॐ सशिरा जातवेदाः। अक्षरं परमं पदम्। वेदाना शिर उत्तमम्। जातवेदसे शिरसि माता। ब्रह्मभूर्भुव स्सुवरोम्।। अपानायनमः। (अप उपस्पृश्य) 29. ॐ मा नो महान्त मुत .... रुद्र रीरिषः।। ऊरुभ्यां नमः। 30. ॐ एष ते रुद्रभाग स्तजुषस्व तेनावसेन परो मूजवतोती ह्यवततधन्वा पिनाक हस्त कृत्तिवासाः।। जानुभ्यां नमः। 31. ॐ ससृष्टजित्सोमपा बाहुशर्ध्यूर्ध्वधन्वा प्रतिहिताभि रस्ता। बृहस्पते परीदीया रथेन रक्षोहामित्रा अपबाधमानः।। जङ्घाभ्यां नमः। 32. ॐ विश्वं भूतं भुवनं चित्रं बहुधा जातं जायमानं च यत्। सर्वो ह्येष रुद्र स्तस्मै रुद्राय नमो अस्तु।। गुल्फाभ्यां नमः। 33. ॐ ये पथां पथिरक्षय ... तेषा सहस्र ... तन्मसि। पादाभ्यां नमः। 34. ॐ अध्यवोच दधिवक्ता ...... यातुधान्यः।। कवचायनमः। 35. ॐ नमोबिल्मिने च कवचिने ... श्रुतसेनायच।। उपकवचाय नमः। 36. ॐ नमो अस्तु नीलग्रीवाय ...तेभ्योकरं नमः।। तृतीयनेत्राय नमः। 37. ॐ प्रमुञ्च धन्वनस्त्व ... परा ता भगवो वप।। अस्त्राय फट्।। 38. ॐ य एतावन्तश्च... तेषा सहस्र ...तन्मसि।। इति दिग्बन्धः।। ॐ नमो भगवते रुद्रायेति नमस्कारं विन्यसेत्।। अथ दशाक्षर न्यासः ॐ मूर्ध्ने नमः।। नं नासिकायै नमः।। मों ललाटाय नमः।। भं मुखाय नमः।। गं कंठाय नमः।। वं हृदयाय नमः।। तें दक्षिणहस्ताय नमः।। रुं वामहस्ताय नमः।। द्रां नाभ्यै नमः।। यं पादाभ्यां नमः।। (अप उपस्पृश्य)  पञ्चब्रह्ममन्त्र न्यासः  ॐ सद्योजातं ... भवोद्भवायनमः।। पादाभ्यां नमः।  ॐ वामदेवायनमो ... मनोन्मनायनमः।। ऊरुमध्याभ्यां नमः।  ॐ अघोरेभ्यो .... रुद्ररूपेभ्य।। हृदयाय नमः।  तत्पुरुषाय विद्महे .... रुद्रः प्रचोदयात्।। मुखाय नमः।  ॐ ईशानस्सर्व विद्यानां ... सदाशिवोम्। मूर्ध्ने नमः।।  हंसमन्त्र जपः अस्य श्री हंसगायत्री स्तोत्रमहामंत्रस्य। आत्मा - ऋषिः। परमात्मा देवता। अव्यक्त गायत्री छन्दः। हंस गायत्री प्रसाद सिद्ध्यर्थे हंस गायत्री जपे विनियोगः।।  करन्यासः हं सां अंगुष्ठाभ्यां नमः। हं सीं तर्जनीभ्यां नमः। हं सूं मध्यमाभ्यां नमः। हं सैं अनामिकाभ्यां नमः। हं सौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। हंसः करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।  अङ्गन्यासः हं सां हृदयायनमः। हं सीं शिरसे स्वाहा। हं सूं शिखायै वषट्। हं सैं कवचायहुं। हं सौं नेत्रत्रयायवौषट्। हं सः अस्त्रायफट्। भूर्भुव स्सुव रोमिति दिग्बंधः।। ध्यानम् • गमागमस्थं गगनादि शून्यं चिद्रूपदीपं तिमिरापहारम्। पश्यामि ते सर्वजनान्तरस्थं नमामि हंसं परमात्मरूपम्।। • देहो देवालय प्रोक्तो जीवो देव स्सनातनः। त्यजे दज्ञान निर्माल्यं सोहं भावेन पूजयेत्।।  ॐ हंस हंस परम हंस स्सोहं हंस स्सोहं हंसः।  हंस हंसाय विद्महे परम हंसाय धीमहि। तन्नो हंस प्रचोदयात्।। • हंस हंसेति यो ब्रूया द्धंसो नाम सदाशिवः। एवं न्यास विधि ङ्कृत्वा तत स्संपुट मारभेत्।। -----  संपुटीकरणम् (इन्द्रादीन् दश दिक्षु विन्यस्य)  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ ॐ।।  त्रातार मिन्द्र मवितार मिन्द्र हवेहवे सुहव शूर मिन्द्रम्। हुवे नु शक्रं पुरुहूत मिन्द्र स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। ॐ ॐ पूर्वदिग्भागे इन्द्राय नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ नं।।  त्वन्नो अग्ने वरुणस्य विद्वा न्देवस्य हेडोव यासिसीष्ठाः। यजिष्ठो वह्नितम श्शोशुचानो विश्वा द्वेषासि प्रमुमुग्ध्यस्मत्।। ॐ नमो भगवते रुद्राय। नं ॐ। आग्नेय दिग्भागे अग्नये नमः।।  ॐ भूर्भुव स्सुवः।। ॐ मों।।  सुगन्न पन्था मभय ङ्कृणोतु। यस्मि न्नक्षत्रे यम एति राजा। यस्मि न्नेन मभ्यषिञ्चन्त देवाः। तदस्य चित्र हविषा यजाम।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। मों ॐ।। दक्षिण दिग्भागे यमाय नमः।।  ॐ भूर्भुव स्सुवः।। ॐ भं।।  असुन्वन्त मयजमान मिच्छ स्तेनस्येत्यां तस्करस्यान्वेषि। अन्य मस्म दिच्छ सा त इत्या नमो देवि निर्ऋते तुभ्यमस्तु।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।भं ॐ। निर्ऋतिदिग्भागे निर्ऋतये नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ गं।।  तत्त्वायामि ब्रह्मणा वन्दमान स्तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशस मा न आयु प्र मोषीः।। ॐ नमो भगवते रुद्राय। गं ॐ। पश्चिम दिग्भागे वरुणाय नमः।।  ॐ भूर्भुव स्सुवः।। ॐ वं।।  आ नो नियुद्भि श्शतिनीभि रध्वर सहस्रिणीभि रुप याहि यज्ञम्। वायो अस्मिन् हविषि मादयस्व यूयं पात स्वस्तिभि स्सदा नः।। ॐ नमो भगवते रुद्राय। वं ॐ।। वायव्य दिग्भागे वायवे नमः।।  ॐ भूर्भुव स्सुवः।। ॐ तें।।  वय सोम व्रते तव। मन स्तनूषु बिभ्रतः। प्रजावन्तो अशीमहि। ॐ नमोभगवते रुद्राय। तें ॐ। उत्तर दिग्भागे कुबेराय नमः।।  ॐ भूर्भुव स्सुवः।। ॐ रुं।।  तमीशानं जगत स्तस्थुष स्पतिं धियं जिन्व मवसे हूमहे वयम्। पूषा नो यथा वेदसा मसद्वृधे रक्षिता पायु रदब्ध स्स्वस्तये।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। रुं ॐ।। ईशान्य दिग्भागे ईशानाय नमः।।  ॐ भूर्भुव स्सुवः।। ॐ द्रां।।  अस्मे रुद्रा मेहना पर्वतासो वृत्रहत्ये भरहूतौ सजोषाः। य श्शंसते स्तुवते धायि पज्र इन्द्र ज्येष्ठा अस्माँ अवन्तु देवाः।। ॐ नमो भगवते रुद्राय। द्रां ॐ। ऊर्ध्वदिग्भागे आकाशाय नमः।। • ॐ भूर्भुव स्सुवः। ॐ यं।  स्योना पृथिवि भवा नृक्षरा निवेशनी। यच्छा न श्शर्म सप्रथाः।। ॐ नमो भगवते रुद्राय। यं ॐ। अधो दिग्भागे पृथिव्यै नमः।। • आदौ प्रणव मुच्चार्य व्याहृति प्रणवं ततः। बीजं प्रणव मुच्चार्य मन्त्रान्ते बीज मुच्चरेत्।। -----  दशाङ्ग रौद्रीकरणम् • ललाट नेत्र कर्णेषु मुखे बाह्वोश्च नासिके। जठरे नाभिमूर्ध्नोश्च पादयो र्दश दैहिकम्।। बीजं मन्त्रं समुच्चार्य मन्त्रान्ते बीज मुच्चरेत्।  ॐ भूर्भुवस्सुवः। ॐ ॐ।। नम श्शम्भवे च .... शिवतराय च।।  त्रातारमिन्द्र ..... मघवा धात्विंद्रः। नम श्शम्भवे च .... शिवतराय च।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। ॐ ॐ।। ललाटस्थाने इन्द्राय नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः। ॐ नं।। नमश्शंभवे च ..... शिवतराय च।।  त्वन्नो अग्ने वरुणस्य ...... प्रमुमुग्ध्यस्मत्।। ॐ नम श्शंभवेच...... शिवतराय च।। ॐ नमो भगवते रुद्राय। नं ॐ।। नेत्रस्थाने अग्नये नमः।  ॐ भूर्भुव स्सुवः। ॐ मों।।ॐ नम श्शंभवेच...... शिवतराय च।।  सुगन्न पंथा.....हविषा यजाम।।ॐ नम श्शंभवे .... शिवतराय च।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। मों ॐ।। कर्ण स्थाने यमाय नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः। ॐ भं।। ॐ नम श्शंभवेच...... शिवतराय च।।  असुन्वन्त ...... तुभ्यमस्तु।। ॐ नम श्शंभवेच ...... शिवतराय च।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। भं ॐ।। मुखस्थाने निर्ऋतये नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः। ॐ गं।। नमश्शंभवे ... शिवतराय च।। तत्त्वायामि .... आयुः प्रमोषीः।। ॐ नम श्शंभवेच .... शिवतराय च।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। गं ॐ।। बाहुस्थाने वरुणाय नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः। ॐ वं।। नमश्शंभवे ... शिवतराय च।। आनो नियुद्भि ... स्वस्तिभिस्सदानः।। ॐ नम श्शंभवेच ... शिवतराय च।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। वं ॐ।। नासिका स्थाने वायवे नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः। ॐ तें।। नम श्शंभवे ... शिवतराय च।। वय सोम ..... अशीमहि।। ॐ नमश्शंभवेच ... शिवतराय च। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। तें ॐ।। जठरस्थाने कुबेराय नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ रुं।। नमश्शंभवे ... शिवतराय च।। तमीशानं ..... अदब्ध स्वस्तये।। ॐ नम श्शंभवे च ... शिवतराय च।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। रुं ॐ।। नाभिस्थाने ईशानाय नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ द्रां।। नमश्शंभवे ... शिवतराय च।।  अस्मे रुद्रा ..... अवंतु देवाः।। ॐ नमश्शंभवेच ..... शिवतराय च।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। द्रां ॐ।। मूर्ध स्थाने आकाशाय नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ यं।। नमश्शंभवे ... शिवतराय च।।  स्योना पृथिवि ...... सप्रथाः।। ॐ नमश्शंभवेच .....शिवतराय च।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। यं ॐ।। पादस्थाने पृथिव्यै नमः।। • प्रणवं व्याहृति र्बीजं शंभवे च तत परम्। दिङ्मन्त्रं शंभवे चान्तं बीजं प्रणव मुच्चरेत्।। ---  अथ षोडशाङ्ग रौद्रीकरणम् • शिखा शिरश्च मूर्धा च ललाटं नेत्रकर्णकौ। मुखञ्च कण्ठ बाहू च हृन्नाभी च कटि स्तथा। ऊरू जानू जङ्घपादौ षोडशाङ्ग स्थलानिवै।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ अं। नम श्शम्भवे ...... शिवतराय च।  विभूरसि प्रवाहणो रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमो भगवते रुद्राय। अं ॐ। शिखायै नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ आं। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  वह्निरसि हव्यवाहनो रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमोभगवते रुद्राय। आं ॐ। शिरसे नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ इं। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  श्वात्रोसि प्रचेता रौद्रेणानीकेन पाहिमाग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः।। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। इं ॐ। मूर्ध्ने नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ ईं। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  तुथोसि विश्ववेदा रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमो भगवते रुद्राय। ईं ॐ। ललाटाय नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ उं। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  उशिगसि कवी रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमो भगवते रुद्राय। उं ॐ।। नेत्राभ्यां नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ ऊं। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  अङ्घारि रसि बम्भारी रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमो भगवते रुद्राय। ऊं ॐ। कर्णाभ्यां नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ ऋं। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  अवस्युरसि दुवस्वा न्रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमो भगवते रुद्राय। ऋं ॐ।। मुखाय नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ ॠं। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  शुन्ध्यूरसि मार्जालीयो रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमो भगवते रुद्राय। ॠं ॐ। कण्ठाय नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ ऌं। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  सम्राडसि कृशानू रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमो भगवते रुद्राय। ऌं ॐ। बाहुभ्यां नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ ॡं। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  परिषद्योसि पवमानो रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमो भगवते रुद्राय। ॡं ॐ। हृदयाय नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ एं। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  प्रतक्वासि नभस्वा न्रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमो भगवते रुद्राय।। एं ॐ।। नाभ्यै नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ ऐं। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  असंमृष्टोसि हव्यसूदो रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमो भगवते रुद्राय। ऐं ॐ। कट्यै नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ ॐ। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  ऋतधामासि सुवर्जोती रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमो भगवते रुद्राय। ॐ ॐ। ऊरुभ्यां नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ औं। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  ब्रह्मज्योतिरसि सुवर्धामा रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमो भगवते रुद्राय। औं ॐ। जानुभ्यां नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ अं। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  अजोस्येकपा द्रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमो भगवते रुद्राय। अं ॐ। जंघाभ्यां नमः।।  ॐ भूर्भुवस्सुवः।। ॐ अः। नम श्शम्भवे च ......... शिवतराय च।  अहिरसि बुध्नियो रौद्रेणानीकेन पाहि माग्ने पिपृहि मा मा मा हिसीः। ॐ नमो भगवते रुद्राय। अः ॐ। पादाभ्यां नमः।। (षोडशाङ्गरौद्रीकरणान्त महान्यास फलम्) त्वगस्थिगतै स्सर्वपापै प्रमुच्यते। सर्वभूतेष्वपराजितो भवति। ततो भूत प्रेत पिशाच बद्ध ब्रह्मराक्षस यक्ष यमदूत शाकिनी ढाकिनी हाकिनी शत्रु सर्प श्वापद तस्कर ज्वराद्युपद्रवजोपघाता स्सर्वे ज्वलंतं पश्यन्तु। मां रक्षन्तु। यजमान रक्षन्तु।। -----  आत्म रक्षा  ॐ मनो ज्योति र्जुषता माज्यँ विच्छिन्नँ यज्ञ समिम न्दधातु। बृहस्पति स्तनुता मिमन्नो विश्वे देवा इह मादयन्ताम्।। गुह्याय नमः।।  अबोध्यग्नि स्समिधा जनानां प्रति धेनु मिवायती मुषासम्। यह्वा इव प्रवया मुज्जिहाना प्रभानव स्सिस्रते नाक मच्छ।। नाभ्यै नमः।।  अग्निर्मूर्धा दिव ककुत्पति पृथिव्या अयम्। अपा रेतासि जिन्वति।। हृदयाय नमः।।  मूर्धान न्दिवो अरतिं पृथिव्या वैश्वानर मृताय जात मग्निम्। कवि सम्राज मतिथि ञ्जनाना मासन्ना पात्र ञ्जनयन्त देवाः।। कण्ठाय नमः।।  मर्माणि ते वर्मभि श्छादयामि सोमस्त्वा राजामृतेनाभि वस्ताम्। उरो र्वरीयो वरिव स्ते अस्तु जयन्त न्त्वा मनु मदन्तु देवाः।। मुखाय नमः।।  जातवेदा यदि वा पावकोसि। वैश्वानरो यदि वा वैद्युतोसि। शं प्रजाभ्यो यजमानाय लोकम्। ऊर्जं पुष्टि न्दद दभ्याववृथ्स्व।। शिरसे नमः।।  ब्रह्मात्मन्व दसृजत। तदकामयत। समात्मना पद्येयेति। आत्म न्नात्म न्नित्यामन्त्रयत। तस्मै दशम हूत प्रत्यशृणोत्। स दशहूतोभवत्। दशहूतो ह वै नामैषः। तँ वा एत न्दशहूत सन्तम्। दशहोतेत्याचक्षते परोक्षेण। परोक्षप्रिया इव हि देवाः।।  आत्म न्नात्म न्नित्यामन्त्रयत। तस्मै सप्तम हूत प्रत्यशृणोत्। स सप्तहूतोभवत्। सप्तहूतो ह वै नामैषः। तँ वा एत सप्तहूत सन्तम्। सप्तहोते त्याचक्षते परोक्षेण। परोक्षप्रिया इव हि देवाः।  आत्म न्नात्म न्नित्यामन्त्रयत। तस्मै षष्ठ हूत प्रत्यशृणोत्। स षड्ढूतोभवत्।। षड्ढूतो ह वै नामैषः। तँ वा एत षड्ढूत सन्तम्। षड्ढोते त्याचक्षते परोक्षेण। परोक्षप्रिया इव हि देवाः।  आत्म न्नात्म न्नित्यामन्त्रयत। तस्मै पञ्चम हूत प्रत्यशृणोत्। स पञ्चहूतोभवत्। पञ्चहूतो ह वै नामैषः। तँ वा एतं पञ्चहूत सन्तम्। पञ्चहोते त्याचक्षते परोक्षेण। परोक्षप्रिया इव हि देवाः।  आत्म न्नात्म न्नित्यामन्त्रयत। तस्मै चतुर्थ हूत प्रत्यशृणोत्। स चतुर्‌हूतोभवत्। चतुर्‌हूतो ह वै नामैषः। तँ वा एत ञ्चतुर्‌हूत सन्तम्। चतुर्‌होते त्याचक्षते परोक्षेण। परोक्षप्रिया इव हि देवाः।  तमब्रवीत्। त्वँ वै मे नेदिष्ठ हूत प्रत्यश्रौषीः। त्वयैना नाख्यातार इति। तस्मा न्नुहैना श्चतुर्‌होतार इत्याचक्षते। तस्माच्छुश्रूषु पुत्राणा हृद्यतमः। नेदिष्ठो हृद्यतमः। नेदिष्ठो ब्रह्मणो भवति। य एवँ वेद।। (इत्यात्म रक्षा कर्तव्या) -----  शिवसङ्कल्पः (शुक्लयजुर्वेद काण्व माध्यन्दिन संहिता 34 अध्याये 1-6 मन्त्राः)  1) यज्जाग्रतो दूर मुदैति दैव न्तदु सुप्तस्य तथैवेति। दूरङ्गम ञ्ज्योतिषा ञ्ज्योति रेक न्त न्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  2) येन कर्माण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः। यदपूर्वँ यक्ष मन्त प्रजाना न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  3) यत्प्रज्ञान मुत चेतो धृतिश्च यज्ज्योति रन्त रमृतं प्रजासु। यस्मान्न ऋते किञ्चन कर्म क्रियते तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  4) ये नेदं भूतं भुवनं भविष्य त्परिगृहीत ममृतेन सर्वम्। येन यज्ञ स्तायते सप्तहोतातन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  5) यस्मिन्नृच स्साम यजूषि यस्मि न्प्रतिष्ठिता रथनाभा विवाराः। यस्मि श्चित्त सर्वमोतं प्रजानां तन्मेमन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  6. सुषारथि रश्वानिव यन्मनुष्या न्नेनीयते भीषुभि र्वाजिना इव। हृत्प्रतिष्ठँ यदजिर ञ्जविष्ठ न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्पमस्तु।। ------- ऋग्वेद परिशिष्टे (8-8-24)  1. येनेदं भूतं भुवनं भविष्य त्परि गृहीत ममृतेन सर्वम्। येन यज्ञ स्तायते सप्तहोता तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  2. येन कर्मा ण्यपसो मनीषिणो यज्ञे कृण्वन्ति विदथेषु धीराः। यदपूर्वँ यक्षमन्त प्रजाना न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  3. यज्जाग्रतो दूर मुदैति दैव न्तदु सुप्तस्य तथैवेति। दूरङ्गम ञ्ज्योतिषा ञ्ज्योति रेक न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  4. यत्प्रज्ञान मुत चेतो धृतिश्च यज्ज्योति रन्त रमृतं प्रजासु। यस्मान्न ऋते किञ्चन कर्म क्रियते तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  5. यस्मिन्नृच स्साम यजूंषि यस्मि न्प्रतिष्ठिता रथनाभा विवाराः। यस्मिंश्चित्तं सर्व मोतं प्रजाना न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  6. सुषारथि रश्वानिव यन्मनुष्या न्नेनीयतेभीशुभि र्वाजिन इव। हृत्प्रतिष्ठँ यदजिरँ यविष्ठ न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  7. ये पञ्च पञ्चाशत श्शतञ्च सहस्रञ्च नियुत ञ्चार्बुदञ्च। ते यज्ञचित्तेष्टकास्ता शरीर न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  8. वेदाह मेतं पुरुष महान्त मादित्यवर्ण न्तमस परस्तात्। तस्य योनिं परि पश्यन्ति धीरा स्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  9. येन कर्माणि प्रचरन्ति धीरा विप्रा वाचा मनसा कर्मणा वा। यत्स्वा न्दिश मनु सँयन्ति प्राणिन स्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  10. ये मे मनो हृदयँ ये च देवा ये अन्तरिक्षं बहुधा कल्पयन्ति। ये श्रोत्रञ्च चक्षुषी सञ्चरन्ति तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  11. यस्येद न्धीरा पुनन्ति कवयो ब्रह्माण मेतँ व्यावृणत इन्दुम्। स्थावर ञ्जङ्गमञ्च द्यौराकाश न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  12. येन द्यौरुग्रा पृथिवी चान्तरिक्षँ येन पर्वता प्रदिशो दिश श्च। येनेदं सर्व ञ्जगद्व्याप्तं प्रजान त्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  13. अव्यक्त ञ्चा प्रमेयञ्च व्यक्ताव्यक्तपरं शिवम्। सूक्ष्मा त्सूक्ष्मतर ञ्ज्ञेय न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  14. कैलास शिखरे रम्ये शङ्करस्य गृहालयम्। देवता स्तत्प्रमोदन्ते तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  15. आदित्यवर्ण न्तपसा ज्वलन्तँ यत्पश्यसि गुहासु जायमानः। शिवरूपं शिव मुदितं शिवालय न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  16. येनेदं सर्व ञ्जगतो बभूव यद्देवा अपि महतो जातवेदाः। यदेवाग्र्य न्तपसो ज्योति रेक न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  17. गोभि र्जुष्टो धनेन ह्यायुषा च बलेन च। प्रजया पशुभि पुष्करार्ध न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  18. योसौ सर्वेषु वेदेषु पठ्यतेनद ईश्वरः। अकार्यो निर्व्रणो ह्यात्मा तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  19. यो वेदादिषु गायत्री सर्वव्यापी महेश्वरः। तदुक्तञ्च यदा ज्ञेय न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  20. प्रयत प्राण ओङ्कारं प्रणवञ्च महेश्वरम्। यस्सर्वँ यस्य चित्सर्व न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  21. यो वै वेद महादेवं प्रणवं पुरुषोत्तमम्। ओङ्कारं परमात्मान न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  22. ओंकार ञ्चतुर्भुजँ लोकनाथ न्नारायणम्। सर्वस्थितं सर्वगतं सर्वव्याप्त न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  23. तत्परा त्परतो ब्रह्मा तत्परा त्परतो हरिः। परा त्परतर ञ्ज्ञान न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  24. अस्ति नास्ति शयित्वा सर्व मिद न्नास्ति पुन स्तथैव दृष्ट न्ध्रुवम्। अस्ति नास्ति हितं मध्यमं पद न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  25. अस्ति नास्ति विपरीतो प्रवादोस्ति नास्ति गुह्यँ वा इदं सर्वम्। अस्ति नास्ति परा त्परो यत्पर न्तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।।  26. य इदं शिव सङ्कल्पं सदा धीयन्ति ब्राह्मणाः। ते परं मोक्ष माप्स्यन्ति तन्मे मन श्शिवसङ्कल्प मस्तु।। (अस्मिन् शिवसङ्कल्पे बहवः पाठभेदा वर्तन्ते। शुक्लयजुर्वेदे संहितायां षट् मन्त्रा उपलभ्यन्ते। ऋग्वेदे अष्टमाष्टके अष्टमाध्याये 24 वर्गस्य परिशिष्टभागे षड्विंश मन्त्रा लभ्यन्ते। सोयं पाठः – अद्यतन प्रयोक्तृभिः पठ्यमानस्य मूलमिव दृश्यते। अतः, उभयमेतत् प्रदर्शितम्।)  ॐ नमो भगवते रुद्राय। शिवसंकल्प हृदयाय नमः।। ----  अनुवाकाः  सहस्रशीर्‌षा ... स्सन्ति देवाः। ॐ नमो भगवते रुद्राय। पुरुष सूक्त शिरसे स्वाहा।।  अद्भ्य स्संभूतः .... मनिषाण। ॐ नमो भगवते रुद्राय। उत्तर नारायण शिखायै वषट्।। --- (अप्रतिरथ सूक्तम् य.सं. 4-6-4)  आशु श्शिशानो वृषभो न युध्मो घनाघन~क्षोभण श्चर्‌षणीनाम्। सङ्क्रदनो निमिष एकवीर श्शत सेना अजय थ्साकमिन्द्रः।  सङ्क्रन्दनेनानिमिषेण जिष्णुना युत्कारेण दुश्च्यवनेन धृष्णुना। तदिन्द्रेण जयत तथ्सहध्वँ युधो नर इषुहस्तेन वृष्णा।  स इषुहस्तै स्स निषङ्गिभि र्वशी सस्रष्टा स युध इन्द्रो गणेन। ससृष्टजि थ्सोमपा बाहुशर्ध्यूर्ध्वधन्वा प्रतिहिताभि रस्ता।  बृहस्पते परि दीया रथेन रक्षोहामित्रा अपबाधमानः। प्रभञ्ज2 न्थ्सेना प्रमृणो युधा जय न्नस्माक मेध्यविता रथानाम्।  गोत्रभिद ङ्गोविदँ वज्रबाहु ञ्जयन्त मज्म प्रमृणन्त मोजसा। इम सजाता अनु वीरयध्व मिन्द्र सखायोनु स रभध्वम्।  बलविज्ञाय स्स्थविर प्रवीर स्सहस्वान् वाजी सहमान उग्रः। अभिवीरो अभिसत्वा सहोजा जैत्र मिन्द्र रथ मा तिष्ठ गोवित्।  अभि गोत्राणि सहसा गाहमानोदायो वीर श्शतमन्यु रिन्द्रः। दुश्च्यवन पृतनाषा डयुध्योस्माक सेना अवतु प्र युथ्सु।  इन्द्र आसा न्नेता बृहस्पति र्दक्षिणा यज्ञ पुर एतु सोमः। देवसेनाना मभिभञ्जतीना ञ्जयन्तीनां मरुतो यन्त्वग्रे।  इन्द्रस्य वृष्णो वरुणस्य राज्ञ आदित्यानां मरुता शर्ध उग्रम्। महामनसां भुवनच्यवाना ङ्घोषो देवाना ञ्जयता मुदस्थात्।  अस्माक मिन्द्र स्समृतेषु ध्वजे ष्वस्माकँ या इषव स्ता जयन्तु। अस्माकँ वीरा उत्तरे भवन्त्वस्मानु देवा अवता हवेषु।  उद्धर्‌षय मघव न्नायुधा न्युथ्सत्वनां मामकानां महासि। उद्वृत्रहन् वाजिनाँ वाजिना न्युद्रथाना ञ्जयता मेतु घोषः।  उप प्रेत जयता नर स्स्थिरा व स्सन्तु बाहवः। इन्द्रो व श्शर्म यच्छ त्वनाधृष्या यथासथ।  अवसृष्टा परा पत शरव्ये ब्रह्मसशिता। गच्छामित्रा न्प्रविश मैषा ङ्कञ्चनोच्छिषः।।  मर्माणि ते वर्मभि श्छादयामि सोमस्त्वा राजामृते नाभि वस्ताम्। उरो र्वरीयो वरिवस्ते अस्तु जयन्तन्त्वा मनु मदन्तु देवाः।  यत्र बाणा स्संपतन्ति कुमारा विशिखा इव। इन्द्रो न स्तत्र वृत्रहा विश्वाहा शर्म यच्छतु।।  देवासुरा स्सँयत्ता आस न्ते देवा एत दप्रतिरथ मपश्य न्तेन वै तेप्रत्यसुरा नजय न्तदप्रतिरथस्याप्रतिरथत्वँ यदप्रतिरथ न्द्वितीयो होतान्वाहाप्रत्येव तेन यजमानो भ्रातृव्या ञ्जयत्यथो अनभिजित मेवाभि जयति दशर्चं भवति दशाक्षरा विराड्विराजेमौ लोकौ विधृता वनयो र्लोकयो र्विधृत्या अथो दशाक्षरा विराडन्नँ विराड्विराज्येवान्नाद्ये प्रति तिष्ठति। (य.सं. 5-4-6.3) आशुश्शिशानोप्रतिरथं कवचाय हुं।। ----  प्रतिपूरुष मेककपाला न्निर्वप त्येक मतिरिक्तँ यावन्तो गृह्यास्स्म स्तेभ्य कमकरं पशूना शर्मासि शर्म यजमानस्य शर्म मे यच्छैक एव रुद्रो न द्वितीयाय तस्थ आखुस्ते रुद्र पशु स्तञ्जुषस्वैष ते रुद्र भाग स्सह स्वस्राम्बिकया तञ्जुषस्व भेषज ङ्गवेश्वाय पुरुषाय भेषज मथो अस्मभ्यं भेषज सुभेषजँ यथासति। सुगं मेषाय मेष्या अवाम्ब रुद्र मदिमह्यव देव न्त्र्यम्बकम्। यथा न श्श्रेयस कर द्यथा नो वस्यस कर द्यथा न पशुमत कर द्यथा नो व्यवसाययात्।  त्र्यम्बकँ यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुक मिव बन्धना न्मृत्यो र्मुक्षीय मामृतात्।  एष ते रुद्र भाग स्तञ्जुषस्व तेनावसेन परो मूजवतोतीह्यवततधन्वा पिनाकहस्त कृत्तिवासाः।।  प्रतिपूरुष मेककपाला न्निर्वपति। जाता एव प्रजा रुद्रा न्निरवदयते। एक मतिरिक्तम्। जनिष्यमाणा एव प्रजा रुद्रा न्निरवदयते। एककपाला भवन्ति। एकधैव रुद्र न्निरवदयते। नाभि घारयति। यदभिघारयेत्। अन्त रवचारिण रुद्र ङ्कुर्यात्। एकोल्मुकेन यन्ति।। तद्धि रुद्रस्य भागधेयम्। इमा न्दिशँ यन्ति। एषा वै रुद्रस्य दिक्। स्वाया मेव दिशि रुद्र न्निरवदयते। रुद्रो वा अपशुकाया आहुत्यै नातिष्ठत।  असौ ते पशुरिति निर्दिशे द्यन्द्विष्यात्। यमेव द्वेष्टि। तमस्मै पशु न्निर्दिशति। यदि न द्विष्यात्।  आखुस्ते पशुरिति ब्रूयात्।। न ग्राम्या न्पशून् हिनस्ति। नारण्यान्। चतुष्पथे जुहोति। एष वा अग्नीनां पड्बीशो नाम। अग्निवत्येव जुहोति। मध्यमेन पर्णेन जुहोति। स्रुग्घ्येषा। अथो खलु। अन्तमेनैव होतव्यम्। अन्तत एव रुद्र न्निरवदयते।। एष ते रुद्र भाग स्सहस्वस्रा म्बिकयेत्याह। शरद्वा अस्याम्बिका स्वसा। तया वा एष हिनस्ति। य हिनस्ति। तयैवैन सह शमयति। भेषज ङ्गव इत्याह। यावन्त एव ग्राम्या पशवः। तेभ्यो भेषज ङ्करोति। अवाम्ब रुद्र मदिमहीत्याह। आशिष मेवैता मा शास्ते।। त्र्यम्बकँ यजामह इत्याह। मृत्यो र्मुक्षीय मामृतादिति वावैतदाह। उत्किरन्ति। भगस्य लीफ्सन्ते। मूते कृत्वा सजन्ति। यथा जनँ यतेवस ङ्करोति। तादृगेव तत्। एष ते रुद्र भाग इत्याह निरवत्यै। अप्रतीक्ष मा यन्ति। अप परिषिञ्चति। रुद्रस्यान्तर्‌हित्यै। प्र वा एतेस्मा ल्लोका च्च्यवन्ते। ये त्र्यम्बकै श्चरन्ति। आदित्य ञ्चरुं पुनरेत्य निर्वपति। इयँ वा अदितिः। अस्या मेव प्रति तिष्ठन्ति।। -----  त्वमग्ने रुद्रो असुरो महो दिवस्त्व शर्धो मारुतं पृक्ष ईशिषे। त्वँ वातै ररुणै र्यासि शङ्गय स्त्वं पूषा विधत पासि नु त्मना।।  आ वो राजान मध्वरस्य रुद्र होतार सत्ययज रोदस्योः। अग्निं पुरा तनयित्नो रचित्ता द्धिरण्यरूप मवसे कृणुध्वम्।  अग्निर् होता निषसादा यजीया नुपस्थे मातु स्सुरभावु लोके। युवा कवि पुरुनिष्ठ ऋतावा धर्ता कृष्टीना मुत मध्य इद्धः।  साध्वी मक र्देववीति न्नो अद्य यज्ञस्य जिह्वा मविदाम गुह्याम्। स आयु रागा थ्सुरभि र्वसानो भद्रा मक र्देवहूति न्नो अद्य।  अक्रन्द दग्नि स्स्तनयन्निव द्यौ क्षामा रेरिह द्वीरुध स्समञ्जन्न्। सद्यो जज्ञानो वि ही मिद्धो अख्यदा रोदसी भानुना भात्यन्तः।  त्वे वसूनि पुर्वणीक होतर्दोषा वस्तो रेरिरे यज्ञियासः। क्षामेव विश्वा भुवनानि यस्मि2न्थ्स सौभगानि दधिरे पावके।  तुभ्य न्ता अङ्गिरस्तम विश्वा स्सुक्षितय पृथक्। अग्ने कामाय येमिरे।  अश्याम त ङ्काम मग्ने तवोत्यश्याम रयि रयिव स्सुवीरम्। अश्याम वाज मभि वाजयन्तोश्याम द्युम्न मजराजरन्ते।  श्रेष्ठँ यविष्ठ भारताग्ने द्युमन्त मा भर।। वसो पुरुस्पृह रयिम्।  स श्वितान स्तन्यतू रोचनस्था अजरेभि र्नानदद्भि र्यविष्ठः। य पावक पुरुतम पुरूणि पृथू न्यग्नि रनुयाति भर्वन्न्।  आयुष्टे विश्वतो दध दय मग्नि र्वरेण्यः। पुनस्ते प्राण आयति परा यक्ष सुवामि ते।  आयुर्दा अग्ने हविषो जुषाणो घृतप्रतीको घृतयोनि रेधि। घृतं पीत्वा मधु चारु गव्यं पितेव पुत्र मभि रक्षता दिमम्।  तस्मै ते प्रतिहर्यते जातवेदो विचर्‌षणे। अग्ने जनामि सुष्टुतिम्।  दिवस्परि प्रथम ञ्जज्ञे अग्नि रस्म द्द्वितीयं परि जातवेदाः। तृतीय मप्सु नृमणा अजस्र मिन्धान एन ञ्जरते स्वाधीः।  शुचि पावक वन्द्योग्ने बृह द्विरोचसे। त्व ङ्घृतेभि राहुतः।  दृशानो रुक्म उर्व्या व्यद्यौ द्दुर्मर्‌ष मायु श्श्रिये रुचानः। अग्नि रमृतो अभव द्वयोभि र्यदेन न्द्यौ रजनय थ्सुरेताः।।  आ यदिषे नृपति न्तेज आन ट्छुचि रेतो निषिक्त न्द्यौरभीके। अग्नि श्शर्ध मनवद्यँ युवान स्वाधिय ञ्जनय थ्सूदयच्च।  स तेजीयसा मनसा त्वोत उत शिक्ष स्वपत्यस्य शिक्षोः। अग्ने रायो नृतमस्य प्रभूतौ भूयाम ते सुष्टुतयश्च वस्वः।  अग्ने सहन्त मा भर द्युम्नस्य प्रासहा रयिम्। विश्वा य श्चर्‌षणी रभ्यासा वाजेषु सासहत्।  तमग्ने पृतनासह रयि सहस्व आ भर। त्व हि सत्यो अद्भुतो दाता वाजस्य गोमतः।  उक्षान्नाय वशान्नाय सोमपृष्ठाय वेधसे। स्तोमै र्विधे माग्नये।।  वद्मा हि सूनो अस्यद्मसद्वा चक्रे अग्नि र्जनुषाज्मान्नम्। स त्वन्न ऊर्जसन ऊर्ज न्धा राजेव जे रवृके क्षेष्यन्तः।  अग्न आयूषि पवस आ सुवोर्ज मिष ञ्च नः। आरे बाधस्व दुच्छुनाम्।  अग्ने पवस्व स्वपा अस्मे वर्च स्सुवीर्यम्। दधत्पोष रयिं मयि।  अग्ने पावक रोचिषा मन्द्रया देव जिह्वया। आ देवान् वक्षि यक्षि च।  स न पावक दीदिवोग्ने देवा इहावह। उप यज्ञ हविश्च नः।  अग्नि श्शुचिव्रततम श्शुचि र्विप्र श्शुचि कविः। शुची रोचत आहुतः।  उदग्ने शुचय स्तव शुक्रा भ्राजन्त ईरते। तव ज्योती ष्यर्चयः।।  त्वमग्ने रुद्रो असुरो महो दिवः। त्व शर्धो मारुतं पृक्ष ईशिषे। त्वँ वातै ररुणै र्यासि शङ्गयः। त्वं पूषा विधत पासि नु त्मना।  देवा देवेषु श्रयध्वम्। प्रथमा द्वितीयेषु श्रयध्वम्। द्वितीया स्तृतीयेषु श्रयध्वम्। तृतीया श्चतुर्थेषु श्रयध्वम्। चतुर्था पञ्चमेषु श्रयध्वम्। पञ्चमा ष्षष्ठेषु श्रयध्वम्। षष्ठा स्सप्तमेषु श्रयध्वम्। सप्तमा अष्टमेषु श्रयध्वम्। अष्टमा नवमेषु श्रयध्वम्। नवमा दशमेषु श्रयध्वम्। दशमा एकादशेषु श्रयध्वम्। एकादशा द्वादशेषु श्रयध्वम्। द्वादशा स्त्रयोदशेषु श्रयध्वम्। त्रयोदशा श्चतुर्दशेषु श्रयध्वम्। चतुर्दशा पञ्चदशेषु श्रयध्वम्। पञ्चदशा ष्षोडशेषु श्रयध्वम्। षोडशा स्सप्तदशेषु श्रयध्वम्। सप्तदशा अष्टादशेषु श्रयध्वम्। अष्टादशा एकान्न विशेषु श्रयध्वम्। एकान्न विशा विशेषु श्रयध्वम्। विशा एकविशेषु श्रयध्वम्। एकविशा द्वाविशेषु श्रयध्वम्। द्वाविशा स्त्रयोविशेषु श्रयध्वम्। त्रयोविशा श्चतुर्विशेषु श्रयध्वम्। चतुर्विशा पञ्चविशेषु श्रयध्वम्। पञ्चविशा ष्षड्विशेषु श्रयध्वम्। षड्विशा स्सप्तविशेषु श्रयध्वम्। सप्तविशा अष्टाविशेषु श्रयध्वम्। अष्टाविशा एकान्न त्रिशेषु श्रयध्वम्। एकान्न त्रिशा स्त्रिशेषु श्रयध्वम्। त्रिशा एकत्रिशेषु श्रयध्वम्। एकत्रिशा द्वात्रिशेषु श्रयध्वम्। द्वात्रिशा स्त्रयस्त्रिशेषु श्रयध्वम्। देवा स्त्रि रेकादशा स्त्रि स्त्रयस्त्रिशाः। उत्तरे भवत। उत्तर वर्त्मान उत्तर सत्वानः। यत्काम इद ञ्जुहोमि। तन्मे समृध्यताम्। वय स्याम पतयो रयीणाम्। भूर्भुव स्स्व स्स्वाहा।। भूर्भुवस्सुव रोमिति दिग्बन्धः।। ----  अथ पञ्चाङ्ग सकृ ज्जपेत्।। (पञ्चब्रह्ममन्त्र जपः)  1. ॐ सद्योजातं प्रपद्यामि ........ भवोद्भवाय नमः।।  2. ॐ वामदेवायनमो ......... मनोन्मनाय नमः।।  3. ॐअघोरेभ्योथ ......... रुद्ररूपेभ्यः।।  4. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे............ रुद्रः प्रचोदयात्।।  5. ॐ ईशानस्सर्वविद्याना ........... सदाशिवोम्।। ----  अष्टाङ्ग नमस्कारः (साष्टाङ्ग प्रणामः)  ॐ हिरण्यगर्भ स्समवर्तताग्रे भूतस्य जात पति रेक आसीत्। स दाधार पृथिवी न्द्यामुते मा ङ्कस्मै देवाय हविषा विधेम।। उरसा नमः।।  ॐ य प्राणतो निमिषतो महित्वैक इद्राजा जगतो बभूव। य ईशे अस्य द्विपद श्चतुष्पद कस्मै देवाय हविषा विधेम।। शिरसा नमः।।  ॐ ब्रह्मजज्ञानं प्रथमं पुरस्ता द्विसीमत स्सुरुचो वेन आवः। स बुध्निया उपमा अस्य विष्ठा स्सतश्च योनि मसतश्च विवः।। दृष्ट्या नमः।।  ॐ मही द्यौ पृथिवी चन इमँ यज्ञं मिमिक्षताम्। पिपृतान्नो भरीमभिः।। मनसा नमः।।  ॐ उपश्वासय पृथिवी मुत द्यां पुरुत्रा ते मनुताँ विष्ठित ञ्जगत्। स दुन्दुभे सजू रिन्द्रेण देवै र्दूरा द्दवीयो अपसेध शत्रून्।। वचसा नमः।।  ॐ अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान्। युयोध्यस्म ज्जुहुराण मेनो भूयिष्ठान्ते नमउक्तिँ विधेम।। पद्भ्यां नमः।।  ॐ या ते अग्ने रुद्रिया तनू स्तया न पाहि तस्यास्ते स्वाहा या ते अग्नेयाशया रजाशया हराशया तनू र्वर्‌षिष्ठा गह्वरेष्ठोग्रँ वचो अपावधी न्त्वेषँ वचो अपावधी स्वाहा।। कराभ्यां नमः।।  ॐइमं यम प्रस्तर माहि सीदाङ्गिरोभि पितृभि स्सँविदानः। आ त्वा मन्त्रा कविशस्ता वह न्त्वेना राजन् हविषा मादयस्व।। कर्णाभ्यां नमः।। (इति साष्टाङ्गं प्रणम्य) • उरसा शिरसा दृष्ट्या मनसा वचसा तथा। पद्भ्यां कराभ्यां कर्णाभ्यां प्रणामोष्टाङ्ग उच्यते।। • अथात्मान शिवात्मान श्रीरुद्ररूपिण न्ध्यायेत्।। शुद्धस्फटिक सङ्काश न्त्रिनेत्रं, पञ्चवक्त्र न्दशभुजं, सर्वाभरण भूषितं, नीलग्रीवं, शशाङ्क चिह्नं, नागयज्ञोपवीतिनं, नागाभरणभूषं, व्याघ्र चर्मांबरधरं, कमण्डल्वक्षसूत्रधर, मभयवरकरं, शूलहस्तं ज्वलन्तं, कपिलं जटाजूटिनं शिखा मुद्द्योतधारिणम्, वृषस्कन्ध समारूढ मुमादेहार्ध धारिण, ममृतेनाप्लुतं हृष्टं दिव्यभोग समन्वितं, दिग्देवता समायुक्तं सुरासुर नमस्कृतं, नित्यं शाश्वतं शुद्धं ध्रुव मक्षर मव्ययं, सर्वव्यापिन मीशानं रुद्रं वै विश्वरूपिणम्। एव न्ध्यात्वा द्विज स्स म्यक्ततो यजन मारभेत।। ----  अथ रुद्रस्नानार्चनादि विनियोगः - अथातो रुद्रस्नानार्चनाभिषेक विधिं व्याख्यास्यामः।। उदित एव तीर्थे स्नात्वोदेत्य शुचि प्रयतो ब्रह्मचारी शुक्लवासाः, • तस्य दक्षिणा प्रत्यग्देशे तन्मुखं स्थित्वात्मनि देवतास्थापयेत्।। • प्रजनने ब्रह्मा तिष्ठतु। पादयो र्विष्णु स्तिष्ठतु। हस्तयो र्हर स्तिष्ठतु। बाह्वो रिन्द्र स्तिष्ठतु। जठरे ~ अग्नि स्तिष्ठतु। हृदये शिव स्तिष्ठतु। कण्ठे वसव स्तिष्ठन्तु। वक्त्रे सरस्वती तिष्ठतु। नासिकयो र्वायु स्तिष्ठतु। नयनयो श्चन्द्रादित्यौ स्तिष्ठेताम्। कर्णयो रश्विनौ तिष्ठेताम्। ललाटे रुद्रा स्तिष्ठन्तु। मूर्ध्न्यादित्या स्तिष्ठन्तु। शिरसि महादेव स्तिष्ठतु। शिखायां वामदेव स्तिष्ठतु। पृष्ठे पिनाकी तिष्ठतु। पुरत श्शूली तिष्ठतु। पार्श्वयो श्शिवाशङ्करौ तिष्ठेताम्। सर्वतो वायु स्तिष्ठतु। ततो बहि स्सर्वतोग्नि ज्वालामाला परिवृता स्तिष्ठन्तु। सर्वेष्वङ्गेषु सर्वा देवता यथास्थानं तिष्ठन्तु। मां रक्षन्तु। यजमान रक्षन्तु।। अग्निर्मे वाचिश्रित इति यथालिङ्ग मङ्गानि संस्पृश्य।।  अग्निर्मे वाचिश्रितः। वाग्घृदये। हृदयं मयि। अह ममृते। अमृतं ब्रह्मणि।  वायुर्मे प्राणे श्रितः। प्राणोहृदये। हृदयं मयि। अह ममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।  सूर्यो मे चक्षुषि श्रितः। चक्षुर् हृदये। हृदयं मयि। अहममृते। अमृतं ब्रह्मणि।  चन्द्रमा मे मनसि श्रितः। मनो हृदये। हृदयं मयि। अह ममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।  दिशो मे श्रोत्रे श्रिताः। श्रोत्र हृदये। हृदयं मयि। अह ममृते। अमृतं ब्रह्मणि।  आपो मे रेतसि श्रिताः। रेतो हृदये। हृदयं मयि। अह ममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।  पृथिवी मे शरीरे श्रिता। शरीर हृदये। हृदयं मयि। अह ममृते। अमृतं ब्रह्मणि।  ओषधिवनस्पतयो मे लोमसु श्रिताः। लोमानि हृदये। हृदयं मयि। अह ममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।  इन्द्रो मे बले श्रितः। बल हृदये। हृदयं मयि। अह ममृते। अमृतं ब्रह्मणि।  पर्जन्यो मे मूर्ध्नि श्रितः। मूर्धा हृदये। हृदयं मयि। अह ममृते। अमृतं ब्रह्मणि।।  ईशानो मे मन्यौ श्रितः। मन्युर्‌ हृदये। हृदयं मयि। अह ममृते। अमृतं ब्रह्मणि।  आत्मा म आत्मनि श्रितः। आत्मा हृदये। हृदयं मयि। अह ममृते। अमृतं ब्रह्मणि।  पुनर्म आत्मा पुन रायुरागात्। पुन प्राण पुन राकूत मागात्। वैश्वानरो रश्मिभि र्वावृधानः। अन्त स्तिष्ठ त्वमृतस्य गोपाः।। (अग्नि र्वायु स्सूर्य श्चन्द्रमा दिश आप पृथिव्योषधि वनस्पतय इन्द्र पर्जन्य ईशान आत्मा पुनर्मे त्रयोदश) इति यथालिङ्ग मङ्गानि संस्पृश्य।। अथैनं गन्ध पुष्पाक्षत धूप दीप नैवेद्य तांबूलै रभ्यर्च्य, आत्मानं प्रत्याराधयेत्।। • आराधितो मनुष्यैस्त्वा शुद्धै र्देवासुरादिभिः। आराधयामि भक्त्या त्वां मां गृहाण महेश्वर।।  ॐ आत्वावहन्तु हरय स्सचेतस श्श्वेतै रश्वै स्सह केतुमद्भिः।। वाताजवै र्बलवद्भि र्मनोजवै रा याहि शीघ्रं मम हव्याय शर्वोम्।। ईशान मावाहयामि- इत्यावाह्य।। • मण्डलान्तर गतं हिरण्मयं भ्राजमान वपुषं शुचिस्मितम्। चण्ड दीधिति मखण्ड विग्रहं चिन्तये न्मुनि सहस्र सेवितम्।। • शङ्करस्य चरिता कथामृत ञ्चन्द्रशेखर गुणानुकीर्तनम्। नीलकण्ठ तव पादसेवनं संभवन्तु मम जन्म जन्मनि।। • स्वामिन् सर्व जगन्नाथ यावत्पूजावसानकम्। तावत्त्वं प्रीतिभावेन लिङ्गेस्मिन् सन्निधिं कुरु।। • देहो देवालय प्रोक्तो जीवो देव स्सनातनः। त्यजे दज्ञान निर्माल्यं सोहं भावेन पूजयेत्।। अथैनं व्याहृतिभि र्निर्माल्यं विसृज्य। ॐ चण्डीश्वराय नमः - इत्युत्तरतो निर्माल्यं विसृज्य। ततो दक्षिण पार्श्वस्थ कलशोदकं गन्ध पुष्पाक्षतै रभ्यर्च्य।। • कलशस्य मुखे विष्णुः ............. समाश्रिताः।।  ॐ आकलशेषु धावति ........ वर्धते। आपोवा........ भूर्भुवस्सुवराप ओम्।। • गङ्गे च यमुने ...... सन्निधिं कुरु।। कलशोदकेन पूजा द्रव्याणि संप्रोक्ष्य। देवमात्मानञ्च संप्रोक्ष्य। ------  लघु पूजा विधानम् (सद्यो जातादि पूजा विधानम्)  त्र्यम्बकं ........ मामृतात्।। इति स्थापन मुद्रां दर्शयित्वा, (देवं संस्थाप्य)।।  सद्योजातं प्रपद्यामि – आवाहयामि।  सद्योजाताय वै नमो नमः – आसनं समर्पयामि  भवेभवे न – पाद्यं समर्पयामि।  अतिभवे भवस्व माम् - अर्घ्यं समर्पयामि।  भवोद्भवाय नमः – आचमनं समर्पयामि।  वामदेवाय नमः – स्नानं समर्पयामि।  ज्येष्ठाय नमः – वस्त्रं समर्पयामि।  श्रेष्ठाय नमः - उपवीतं समर्पयामि।  रुद्राय नमः - आभरणं समर्पयामि।  कालाय नमः - गन्धं समर्पयामि।  कल विकरणाय नमः - अक्षतान् समर्पयामि।  बल विकरणाय नमः - पुष्पं समर्पयामि।  बलाय नमः - धूपमाघ्रापयामि।  बल प्रमथनाय नमः - दीपं सन्दर्शयामि।  सर्वभूत दमनाय नमः – नैवेद्यं निवेदयामि।  मनोन्मनाय नमः - तांबूलं समर्पयामि।  अघोरेभ्योथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः। सर्वेभ्य स्सर्वशर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्र रूपेभ्यः। - नीराजनं सन्दर्शयामि।  तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र प्रचोदयात्। - मन्त्रपुष्पं समर्पयामि।  ईशान स्सर्व विद्याना मीश्वर स्सर्वभूतानां ब्रह्माधिपति र्ब्रह्मणो धिपति र्ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम्। - प्रदक्षिण नमस्कारान् समर्पयामि।।  भवाय देवाय नमः – अर्कपुष्पं समर्पयामि।  शर्वाय देवाय नमः – चंपक पुष्पं समर्पयामि।  ईशानाय देवाय नमः – पुन्नागपुष्पं समर्पयामि।  पशुपतये देवाय नमः – नन्द्यावर्त पुष्पं समर्पयामि।  रुद्राय देवाय नमः - पाटल पुष्पं समर्पयामि।  उग्राय देवाय नमः - बृहती पुष्पं समर्पयामि।  भीमाय देवाय नमः – करवीर पुष्पं समर्पयामि।  महते देवाय नमः – द्रोणपुष्पं समर्पयामि।।  भवस्य देवस्य पत्न्यै नमः – अर्कपुष्पं समर्पयामि।  शर्वस्य देवस्य पत्न्यै नमः – चंपक पुष्पं समर्पयामि।  ईशानस्य देवस्य पत्न्यै नमः – पुन्नागपुष्पं समर्पयामि।  पशुपते र्देवस्य पत्न्यै नमः – नन्द्यावर्त पुष्पं समर्पयामि।  रुद्रस्य देवस्य पत्न्यै नमः – पाटल पुष्पं समर्पयामि।  उग्रस्य देवस्य पत्न्यै नमः - बृहती पुष्पं समर्पयामि।  भीमस्य देवस्य पत्न्यै नमः – करवीर पुष्पं समर्पयामि।  महतो देवस्य पत्न्यै नमः - द्रोण पुष्पं समर्पयामि।। तर्पणम् • भवन्देव न्तर्पयामि। शर्वन्देव न्तर्पयामि। ईशानन्देव न्तर्पयामि। • पशुपतिन्देव न्तर्पयामि। रुद्रन्देव न्तर्पयामि। उग्रन्देव न्तर्पयामि। • भीमन्देव न्तर्पयामि। महान्त न्देव न्तर्पयामि।। • भवस्य देवस्य पत्नी न्तर्पयामि। शर्वस्य देवस्य पत्नी न्तर्पयामि। • ईशानस्य देवस्य पत्नी न्तर्पयामि। पशुपते र्देवस्य पत्नी न्तर्पयामि। • रुद्रस्य देवस्य पत्नी न्तर्पयामि। उग्रस्य देवस्य पत्नी न्तर्पयामि। • भीमस्य देवस्य पत्नीन्तर्पयामि। महतो देवस्य पत्नी न्तर्पयामि।। इति तर्पयित्वा।।  यथाशक्ति जपः।।  तत्पुरुषाय ...... प्रचोदयात्।। इति रुद्र गायत्रीं (शिवपञ्चाक्षरीं वा) दशकृत्व शतकृत्व स्सहस्र कृत्वोवापरिमितकृत्वो वा जपित्वा। अथैन माशिष मा शास्ते।।  आ शास्तेयँ यजमानोसौ। आयु राशास्ते। सुप्रजास्त्व माशास्ते। सजातवनस्या माशास्ते। उत्तरा न्देवयज्या माशास्ते। भूयो हविष्करण माशास्ते। दिव्य न्धामाशास्ते। विश्वं प्रिय माशास्ते। यदनेन हविषा शास्ते। तदश्या त्तदृध्यात्। तदस्मै देवा रासन्ताम्। तदग्नि र्देवो देवेभ्यो वनते। वय मग्ने र्मानुषाः। इष्टञ्च वीतञ्च। उभे च नो द्यावापृथिवी अहस स्पाताम्। इह गति र्वामस्येदञ्च। नमो देवेभ्यः।। (पुनः पूजारम्भे चण्डीश्वराय नमः। इत्युत्तरतो निर्माल्यं विसृज्य।। एकादशवार पूजायां, प्रतिवारं (वामदेवाय नमः स्नानं) इत्यादि निर्माल्यं विसृज्य - इत्यन्तं प्रतिवारं कुर्यात्।। अथ पञ्चामृत स्नानम्।। पञ्चामृत देवताभ्यो नमः ...... षोडशोपचारापूजां समर्पयामि।। अथैतस्य मूर्ध्नि देशे, हिरण्यकलशेन संततधारा मभिषिञ्चेत्। (पयसा दध्ना सर्पिषा मधुना शर्कराभि रिक्षुरसेन गन्धतोयेन नारिकेळ तोयेनाम्र रसेनोदकेन बिल्वोदकेनाक्षतोदकेन पुष्पोदकेन वाभिषिञ्चति) ---   अथ पंचामृत स्नानम्।।  ॐ आप्यायस्व समेतु ते विश्वत स्सोम वृष्णियम्। भवा वाजस्य संगथे।। क्षीरेण स्नपयामि ।। तत श्शुद्धोदकं।  ॐ दधिक्राव्‌ण्णो अकारिष ञ्जिष्णो रश्वस्य वाजिनः। सुरभि नो मुखा करत्प्रण आयूषि तारिषत्।। दध्ना स्नपयामि।। तत श्शुद्धोदकं।  ॐ शुक्र मसि ज्योति रसि तेजोसि देवो व स्सवितो त्पुना त्वच्छिद्रेण पवित्रेण वसो स्सूर्यस्य रश्मिभिः।। आज्येन स्नपयामि।। तत श्शुद्धोदकं।  ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्न स्सन्त्वोषधीः। मधु नक्त मुतोषसि मधुम त्पार्थिव रजः। मधु द्यौरस्तु न पिता। मधुमान्नो वनस्पति र्मधुमा अस्तु सूर्यः। माध्वी र्गावो भवन्तु नः।। मधुना स्नपयामि।। ततः शुद्धोदकं।।  ॐ त्वे क्रतु मपि वृञ्जन्ति विश्वे द्विर्यदेते त्रिर्भवन्त्यूमाः। स्वादो स्स्वादीय स्स्वादुना सृजा समत ऊषु मधु मधुनाभियोधि। (स्वादु पवस्व दिव्याय जन्मने स्वादुरिन्द्राय सुहवीतु नाम्ने। स्वादु र्मित्राय वरुणाय वायवे बृहस्पतये मधुमाँ अदाभ्यः।।) इति शर्कराभि स्स्नपयामि।। ततश्शुद्धोदकम्।। (पञ्चामृत स्नानं समर्पयामि।।)  पाञ्चजन्ये ष्वप्येध्यग्ने यावा अयावा एवा ऊमा स्सब्द स्सगर स्सुमेकः। शङ्खोदकेन स्नपयामि।। ततश्शुद्धोदकम्।।  या फलिनी र्या अफला अपुष्पा याश्च पुष्पिणीः। बृहस्पतिप्रसूता स्ता नो मुञ्च न्त्वहसः।। फलोदकेन स्नपयामि।। ततश्शुद्धोदकम्।।  गन्ध द्वारा न्दुराधर्‌षा न्नित्यपुष्टा ङ्करीषिणीम्। ईश्वरी सर्वभूताना न्तामिहोप ह्वये श्रियम्।। गन्धोदकेन स्नपयामि।। ततश्शुद्धोदकम्।।  योपां पुष्पं वेद। पुष्पवा न्प्रजावा न्पशुमा न्भवति। चन्द्रमा वा अपां पुष्पम्। पुष्पवा न्प्रजावा न्पशुमा न्भवति।। पुष्पोदकेन स्नपयामि।। ततश्शुद्धोदकम्।।  आयनेते परायणे दूर्वा रोहन्तु पुष्पिणीः। ह्रदाश्च पुण्डरीकानि समुद्रस्य गृहा इमे।। अक्षतोदकेन स्नपयामि।। ततश्शुद्धोदकम्।।  तथ्सुवर्ण हिरण्य मभवत्। तथ्सुवर्णस्य हिरण्यस्य जन्म। य एव सुवर्णस्य हिरण्यस्य जन्म वेद। सुवर्ण आत्मना भवति।। सुवर्णोदकेन स्नपयामि।। ततश्शुद्धोदकम्।।  त्र्यंबकँ यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुक मिव बन्धना न्मृत्यो र्मुक्षीय मामृतात्।। रुद्राक्षोदकेन स्नपयामि।। ततश्शुद्धोदकम्।।  प्रसद्य भस्मना योनि मपश्च पृथिवी मग्ने। ससृज्य मातृभि स्त्व ञ्ज्योतिष्मा न्पुनरासदः।। भस्मोदकेन स्मपयामि।। ततश्शुद्धोदकम्।।  नमो बिल्मिने च कवचिने च नम श्श्रुताय च श्रुतसेनाय च।। बिल्वोदकेन स्नपयामि।। ततश्शुद्धोदकम्।।  काण्डा त्काण्डा त्प्ररोहन्ती परुष परुष परि। एवा नो दूर्वे प्रतनु सहस्रेण शतेन च।। दूर्वोदकेन स्नपयामि।। ततश्शुद्धोदकम्।। -----  अथ मलापकर्षण स्नानम्  हिरण्य वर्णा श्शुचय पावका यासु जात कश्यपो या स्विन्द्रः। अग्निँ या गर्भ न्दधिरे विरूपा स्तान आप श्श स्योना भवन्तु।।  यासा राजा वरुणो याति मध्ये सत्यानृते अवपश्य न्जनानाम्। मधुश्चुत श्शुचयो या पावका स्तान आप श्श स्योना भवन्तु।।  यासा न्देवा दिवि कृण्वन्ति भक्षँ या अन्तरिक्षे बहुधा भवन्ति। या पृथिवीं पय सोन्दन्ति शुक्रा स्तान आप श्श स्योना भवन्तु।।  शिवेन मा चक्षुषा पश्यताॾप श्शिवया तनुवोप स्पृशत त्वचं मे। सर्वा अग्नी रफ्सुषदो हुवे वो मयि वर्चो बल मोजो निधत्त।।  यदद स्संप्रयती रहा वनदताहते। तस्मादा नद्यो नाम स्थ ता वो नामानि सिन्धवः।।  यत्प्रेषिता वरुणेन ता श्शीभ समवल्गत। तदाप्नो दिन्द्रो वो यती स्तस्मा दापो अनु स्थन।।  अपकाम स्यन्दमाना अवीवरत वो हिकम्। इन्द्रो व श्शक्तिभि र्देवी स्तस्मा द्वार्णाम वो हितम्।।  एको देवो अप्यतिष्ठ थ्स्यन्दमाना यथावशम्। उदानिषु र्महीरिति तस्मा दुदक मुच्यते।।  आपो भद्रा घृतमि दाप आसु रग्नीषोमौ बिभ्र त्याप इत्ताः। तीव्रो रसो मधुपृचा मरङ्गम आ मा प्राणेन सह वर्चसा गन्न्।  आदित्पश्या म्युत वा शृणोम्या मा घोषो गच्छति वाङ्न आसाम्। मन्ये भेजानो अमृतस्य तर्‌‌हि हिरण्यवर्णा अतृपँ यदा वः।।  आपो हि ष्ठा मयोभुव स्ता न ऊर्जे दधातनः। महे रणाय चक्षसे।।  यो व श्शिवतमो रस स्तस्य भाजयतेह नः। उशती रिव मातरः।।  तस्मा अरङ्गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ। आपो जनयथा च नः।  दिवि श्रयस्वान्तरिक्षे यतस्व पृथिव्या सम्भव ब्रह्मवर्चसमसि ब्रह्ववर्चसाय त्वा।।  अपा ङ्ग्रहा न्गृह्णा त्येत द्वाव राजसूयँ यदेते ग्रहा स्सवोग्नि र्वरुणसवो राजसूय मग्निसव श्चित्य स्ताभ्या मेव सूयतेथो उभा वेव लोका वभि जयति यश्च राजसूये नेजानस्य यश्चाग्निचित आपो भव न्त्यापो वा अग्ने र्भ्रातृव्या यदपोग्ने रधस्ता दुपदधाति भ्रातृव्याभिभूत्यै भवत्यात्मना परास्य भ्रातृव्यो भवत्यमृतँ वा आप स्तस्मा दद्भि रवतन्ता मभि षिञ्चन्ति नार्ति मार्छति सर्वमायु रेति।।  पवमान स्सुवर्जनः। पवित्रेण विचर्‌षणिः। य पोता स पुनातु मा।  पुनन्तु मा देवजनाः। पुनन्तु मनवो धिया। पुनन्तु विश्व आयवः।  जातवेद पवित्रवत्। पवित्रेण पुनाहि मा। शुक्रेण देव दीद्यत्। अग्ने क्रत्वा क्रतू रनु।।  यत्ते पवित्र मर्चिषि। अग्ने विततमन्तरा। ब्रह्म तेन पुनीमहे।  उभाभ्या न्देवसवितः। पवित्रेण सवेन च। इदं ब्रह्म पुनीमहे।  वैश्वदेवी पुनती देव्यागात्। यस्यै बह्वी स्तनुवो वीतपृष्ठाः। तया मदन्त स्सध माद्येषु। वय स्याम पतयो रयीणाम्।।  वैश्वानरो रश्मिभि र्मा पुनातु। वात प्राणे नेषिरो मयोभूः। द्यावापृथिवी पयसा पयोभिः। ऋतावरी यज्ञिये मा पुनीताम्।  बृहद्भि स्सवितस्तृभिः। वर्‌षिष्ठै र्देव मन्मभिः। अग्ने दक्षै पुनाहि मा।  येन देवा अपुनत। येनापो दिव्यङ्कशः। तेन दिव्येन ब्रह्मणा। इदं ब्रह्म पुनीमहे।  य पावमानी रध्येति। ऋषिभि स्सम्भृत रसम्। सर्व स पूत मश्च्ञाति। स्वदितं मातरिश्वना।  पावमानी र्यो अध्येति। ऋषिभि स्संभृत रसम्। तस्मै सरस्वती दुहे। क्षीर सर्पि र्मधूदकम्।  पावमानी स्स्वस्त्ययनीः। सुदुघा हि पयस्वतीः। ऋषिभि स्सम्भृतो रसः। ब्राह्मणे ष्वमृत हितम्।  पावमानी र्दिशन्तु नः। इमँ लोक मथो अमुम्। कामा न्थ्समर्धयन्तु नः। देवी र्देवै स्समाभृताः।  पावमानी स्स्वस्त्ययनीः। सुदुघा हि घृतश्चुतः। ऋषिभि स्सम्भृतो रसः। ब्राह्मणे ष्वमृत हितम्।  येन देवा पवित्रेण। आत्मानं पुनते सदा। तेन सहस्रधारेण। पावमान्य पुनन्तु मा।  प्राजापत्यं पवित्रम्। शतोद्याम हिरण्मयम्। तेन ब्रह्मविदो वयम्। पूतं ब्रह्म पुनीमहे।  इन्द्र स्सुनीती सह मा पुनातु। सोम स्स्वस्त्या वरुण स्समीच्या। यमो राजा प्रमृणाभि पुनातु मा। जातवेदा मोर्जयन्त्या पुनातु।।  आपो वा इद सर्वँ विश्वा भूतान्याप प्राणा वा आप पशव आपोन्न मापोमृत माप स्सम्राडापो विराडाप स्स्वराडाप श्छन्दास्यापो ज्योतीष्यापो यजूष्याप स्सत्य माप स्सर्वा देवता आपो भूर्भुव स्सुव राप ओम्।।  अप प्रणयति। श्रद्धा वा आपः। श्रद्धामेवारभ्य प्रणीय प्र चरति।  अप प्रणयति। यज्ञो वा आपः। यज्ञमेवारभ्य प्रणीय प्र चरति।  अप प्रणयति। वज्रो वा आपः। वज्रमेव भ्रातृव्येभ्य प्रहृत्य प्रणीय प्र चरति।  अप प्रणयति। आपो वै रक्षोघ्नीः। रक्षसा मपहत्यै।  अप प्रणयति। आपो वै देवानां प्रिय न्धाम। देवाना मेव प्रिय न्धाम प्रणीय प्र चरति।।  अप प्रणयति। आपो वै सर्वा देवताः। देवता एवारभ्य प्रणीय प्र चरति।। आदौ शञ्च म इत्यनुवाकं, ततो नमस्ते रुद्र मन्यव इत्ये कादशानुवाकान्, अग्ना विष्णूसजोषसे त्येकमेक मनुवाकं जपेत्। सर्वेषां वारे वारे पुन राराधयेत्।। विकिरिद विलोहितेति विसर्जयेत्। तदेत द्रुद्र विधान मुत्तमाराधनम्।। • फलश्रुतिः सदा पाप क्षयार्थी, व्याधिविमोचनार्थी, जीवितार्थी, मोक्षार्थी, श्री काम, श्शान्तिकामः, पुष्टिकाम, स्तुष्टिकामो, वृद्धिकामः, प्रजाकामो, मेधाकामः, आयुष्यकामः, आरोग्यकामः, अन्नाद्यकामः, एवमाराधनं कुर्वन् सिद्धि मवाप्नोति।। आचार्याय दक्षिणा दश गाव स्सवत्साः, स्वर्ण रत्न मणि भूषित वृषभा एकादश। तदलाभे - एकां गां दद्या- दश्वमेध शतक्रतु सहस्र फलमवाप्नोतीत्याह भगवान्बोधायनः।। रुद्रपारायणात् प्राक् शतरुद्रीय न्यासं कुर्यात्। • अस्य श्री रुद्रस्य प्रश्नस्य..... अभिषेचने विनियोगः।। • करन्यासः - अग्निहोत्रात्मने ... करतरकरपृष्ठाभ्यां नमः।। • हृदयादिन्यासः – अग्निहोत्रात्मने ..... दिग्बन्धः।। • ध्यानम् – आपाताळ नभस्थलान्त ... प्रयच्छन्तु सौख्यम्।।  ॐ शञ्चमे ...... सूषाचमे सुदिनंचमे।। • भगवतः, .... श्री स्वामिनः एकादशवारार्चने, प्रथमवाराभिषेकं करिष्ये।  ॐ नमो भगवते रुद्राय। ॐ नमस्ते रुद्रमन्यव ........ मृत्युर्मे पाहि।।  अग्नाविष्णू सजोषसे ......... शरीराणि च मे।। • ॐ नमो भगवते रुद्राय। अमृताभिषेकोस्तु।। तत स्सद्योजातादि विधानेन लघुपूजां कुर्यात्। अनेन प्रथम वाराभिषेकेन भगवान् सर्वात्मकः, श्री परमेश्वर स्सुप्रीत स्सुप्रसन्नो वरदो भवतु।। आचम्य, प्राणानायम्य, पूर्वोक्तैववङ्गुण ... प्रीत्यर्थं, (प्रथम वाराभिषेकानन्तरं) द्वितीय/ तृतीय/ चतुर्थ/ पञ्चम/ षष्ठ/ सप्तम/ अष्टम/ नवम/ दशम/ एकादश वाराभिषेकं - अन्योन्य सहायेन करिष्यामहे।। अन्तिमवाराभिषेचने पुरुषसूक्त, दशशान्ति घोषशान्ति मन्त्रानपि पठेयुः। -----  दशशान्तयः  1. ॐ भद्र ङ्कर्णेभि श्शृणुयाम देवाः। भद्रं पश्ये माक्षभि र्यजत्राः। स्थिरै रङ्गै स्तुष्टुवास स्तनूभिः। व्यशेम देवहितँ यदायुः।  स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति न पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्तार्‌क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु।।  ॐ शान्ति श्शान्ति श्शान्तिः।। 1।।  2. ॐ नमो ब्रह्मणे नमो अस्त्वग्नये नम पृथिव्यै नम ओषधीभ्यः। नमो वाचे नमो वाचस्पतये नमो विष्णवे बृहते करोमि।।  ॐ शान्ति श्शान्ति श्शान्तिः।।  3. ॐ तच्छँयो रावृणीमहे। गातुँ यज्ञाय। गातुँ यज्ञपतये। दैवी स्वस्ति रस्तु नः। स्वस्ति र्मानुषेभ्यः। ऊर्ध्व ञ्जिगातु भेषजम्। शन्नो अस्तु द्विपदे। शञ्चतुष्पदे।।  ॐ शान्ति श्शान्ति श्शान्तिः।।  4. ॐ नमो वाचे या चोदिता या चानुदिता तस्यै वाचे नमो नमो वाचे नमो वाचस्पतये नम ऋषिभ्यो मन्त्रकृद्भ्यो मन्त्रपतिभ्यो मा मा मृषयो मन्त्रकृतो मन्त्रपतय परादु र्माह मृषी न्मन्त्रकृतो मन्त्रपती न्परादाँ वैश्वदेवीँ वाच मुद्यास शिवा मदस्ता ञ्जुष्टा न्देवेभ्य  श्शर्म मे द्यौश्शर्म पृथिवी शर्म विश्वमिद ञ्जगत्। शर्म चन्द्रश्च सूर्यश्च शर्म ब्रह्म प्रजापती।  भूतँ वदिष्ये भुवनँ वदिष्ये तेजो वदिष्ये यशो वदिष्ये तपो वदिष्ये ब्रह्म वदिष्ये सत्त्यँ वदिष्ये तस्मा अह मिद मुपस्तरण मुपस्तृण उपस्तरणम्मे प्रजायै पशूनां भूया दुपस्तरण महं प्रजायै पशूनां भूयासं  प्राणापानौ मृत्यो र्मा पातं प्राणापानौ मा मा हासिष्टं  मधु मनिष्ये मधु जनिष्ये मधु वक्ष्यामि मधु वदिष्यामि मधुमती न्देवेभ्यो वाच मुद्यास शुश्रू षेण्यां मनुष्येभ्य स्तम्मा देवा अवन्तु शोभायै पितरोनुमदन्तु।।  ॐ शान्ति श्शान्ति श्शान्तिः।।  5. ॐ शन्नो वात पवतां मातरिश्वा शन्न स्तपतु सूर्यः। अहानि शम्भवन्तु नश्श रात्रि प्रतिधीयताम्।  शमुषा नो व्युच्छतु शमादित्य उदेतु नः। शिवा न श्शन्तमा भव सुमृडीका सरस्वति। मा ते व्योम सन्दृशि।  इडायै वास्त्वसि वास्तुम द्वास्तुमन्तो भूयास्म मा वास्तो श्छिथ्स्मह्य वास्तु स्स भूया द्योस्मान्द्वेष्टि यञ्च वय न्द्विष्मः।  प्रतिष्ठासि प्रतिष्ठावन्तो भूयास्म मा प्रतिष्ठाया श्छिथ्स्मह्य प्रतिष्ठ स्स भूया द्योस्मा न्द्वेष्टि यञ्च वय न्द्विष्मः।  आ वात वाहि भेषजँ विवात वाहि यद्रपः। त्व हि विश्वभेषजो देवाना न्दूत ईयसे।  द्वाविमौ वातौ वात आसिन्धो रा परावतः। दक्षं मे अन्य आवातु परान्यो वातु यद्रपः।  यददो वात ते गृहेमृतस्य निधिर्‌ हितः। ततो नो देहि जीवसे ततो नो धेहि भेषजम्। ततो नो मह आवह  वात आवातु भेषजम्। शम्भू र्मयोभू र्नो हृदे प्रण आयूषि तारिषत्।  इन्द्रस्य गृहोसि तन्त्वा प्रपद्ये सगुस्साश्वः। सह यन्मे अस्ति तेन।  भू प्रपद्ये भुव प्रपद्ये सुव प्रपद्ये भूर्भुवस्सुव प्रपद्ये वायुं प्रपद्ये नार्ता न्देवतां प्रपद्येश्मान माखणं प्रपद्ये प्रजापते र्ब्रह्मकोशं ब्रह्म प्रपद्य ओं प्रपद्ये।  अन्तरिक्षं म उर्वन्तरं बृह दग्नय पर्वताश्च यया वात स्स्वस्त्या स्वस्तिमा न्तया स्वस्त्या स्वस्तिमा नसानि।  प्राणापानौ मृत्योर्मा पातं प्राणापानौ मा मा हासिष्टं  मयि मेधां मयि प्रजां मय्यग्नि स्तेजो दधातु  मयि मेधां मयि प्रजां मयीन्द्र इन्द्रिय न्दधातु  मयि मेधां मयि प्रजां मयि सूर्यो भ्राजो दधातु।।  द्युभि रक्तुभि परिपात मस्मा नरिष्टेभि रश्विना सौभगेभिः। तन्नो मित्रो वरुणो मा महन्ता मदिति स्सिन्धु पृथिवी उत द्यौः।।  कया न श्चित्र आभूव दूती सदावृध स्सखा। कया शचिष्ठया वृता।  कस्त्वा सत्यो मदानां महिष्ठो मथ्सदन्धसः। दृढा चिदारुजे वसु।  अभीषुण स्सखीना मविता जरितॄणाम्। शतं भवा स्यूतिभिः।  वय स्सुपर्णा उपसेदु रिन्द्रं प्रियमेधा ऋषयो नाधमानाः। अपध्वान्त मूर्णुहि पूर्धि चक्षु र्मुमुग्ध्यस्मा न्निधयेव बद्धान्।।  शन्नो देवी रभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शँ यो रभि स्रवन्तु नः।  ईशाना वार्याणा ङ्क्षयन्ती श्चर्‌षणीनाम्। अपो याचामि भेषजम्।  सुमित्रा न आप ओषधय स्सन्तु दुर्मित्रा स्तस्मै भूयासु र्योस्मा न्द्वेष्टि यञ्च वय न्द्विष्मः।  आपो हिष्ठा मयोभुव स्तान ऊर्जे दधातन। महे रणाय चक्षसे।  योव श्शिवतमो रस स्तस्य भाजयते हनः। उशती रिव मातरः।  तस्मा अरङ्गमाम वो यस्य क्षयाय जिन्वथ। आपो जनयथा चनः।  पृथिवी शान्ता साग्निना शान्ता सा मे शान्ता शुच शमयतु।  अन्तरिक्ष शान्त न्तद्वायुना शान्त न्तन्मे शान्त शुच शमयतु।  द्यौश्शान्ता सादित्येन शान्ता सा मे शान्ता शुच शमयतु।  पृथिवी शान्ति रन्तरिक्ष शान्ति र्द्यौश्शान्ति र्दिश श्शान्ति रवान्तरदिशा श्शान्ति रग्नि श्शान्ति र्वायु श्शान्ति रादित्य श्शान्ति श्चन्द्रमा श्शान्ति र्नक्षत्राणि शान्ति राप श्शान्ति रोषधय श्शान्ति र्वनस्पतय श्शान्ति र्गौश्शान्ति रजा शान्ति रश्व श्शान्ति पुरुष श्शान्ति र्ब्रह्म शान्ति र्ब्राह्मण श्शान्ति श्शान्ति रेव शान्ति श्शान्ति र्मे अस्तु शान्तिः।  तयाह शान्त्या सर्वशान्त्या मह्य न्द्विपदे चतुष्पदे च शान्तिङ्करोमि शान्ति र्मे अस्तु शान्तिः।  एह श्रीश्च ह्रीश्च धृतिश्च तपो मेधा प्रतिष्ठा श्रद्धा सत्य न्धर्म श्चैतानि मोत्तिष्ठन्त मनूत्तिष्ठन्तु मा मा श्रीश्च ह्रीश्च धृतिश्च तपो मेधा प्रतिष्ठा श्रद्धा सत्य न्धर्म श्चैतानि मा मा हासिषुः।  उदायुषा स्वायुषो दोषधीना रसेनोत्पर्जन्यस्य शुष्मेणोदस्था ममृता अनु।  तच्चक्षु र्देवहितं पुरस्ताच्छुक्र मुच्चरत्।  पश्येम शरदश्शत. ञ्जीवेम शरदश्शत.  न्नन्दाम शरदश्शतं  मोदाम शरदश्शतं  भवाम शरदश्शत  शृणवाम शरदश्शतं  प्रब्रवाम शरदश्शत.  मजीता स्स्याम शरदश्शत.  ञ्ज्योक्च सूर्यन्दृशे।  य उदगा न्महतोर्णवा द्विभ्राजमान स्सरिरस्य मध्या थ्स मा वृषभो लोहिताक्ष स्सूर्यो विपश्चि न्मनसा पुनातु।  ब्रह्मण श्चोतन्यसि ब्रह्मण आणी स्थो ब्रह्मण आवपनमसि धारितेयं पृथिवी ब्रह्मणा मही धारित मेनेन मह दन्तरिक्ष न्दिव न्दाधार पृथिवी सदेवाँ यदहँ वेद तदह न्धारयाणि मा मद्वेदोधि विस्रसत्।  मेधामनीषे मा विशता समीची भूतस्य भव्यस्यावरुध्यै सर्व मायु रयाणि सर्व मायु रयाणि।  आभि र्गीर्भि र्यदतोन ऊन माप्यायय हरिवो वर्धमानः। यदा स्तोतृभ्यो महि गोत्रा रुजासि भूयिष्ठभाजो अध ते स्याम।  ब्रह्म प्रावादिष्म तन्नो मा हासीत्।  ॐ शान्ति श्शान्ति श्शान्तिः।।  6. ॐ सन्त्वा सिञ्चामि यजुषा प्रजा मायु र्धनञ्च।  ॐ शान्ति श्शान्ति श्शान्तिः।।  7. शन्नो मित्र श्शँ वरुणः। शन्नो भव त्वर्यमा। शन्न इन्द्रो बृहस्पतिः। शन्नो विष्णु रुरुक्रमः।  नमो ब्रह्मणे। नमस्ते वायो। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि।  ऋतँ वदिष्यामि। सत्यँ वदिष्यामि। तन्मा मवतु। तद्वक्तार मवतु। अवतु माम्। अवतु वक्तारम्।  ॐ शान्ति श्शान्ति श्शान्तिः।।  (8, 9, 10) ॐ सहनाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्वि नावधीत मस्तु मा विद्विषावहै।  ॐ शान्ति श्शान्ति श्शान्तिः।। ----  राजसूय प्रकरणोक्त साम्राज्याभिषेचन मन्त्राः  ॐ मित्रोसि • वरुणोसि।  समहँ विश्वै र्देवैः।  क्षत्रस्य नाभिरसि। क्षत्रस्य योनिरसि।  स्योना मा सीद। सुषदा मा सीद।  मा त्वा हिसीत्। मा मा हिसीत्।  निषसाद धृतव्रतो वरुणः। पस्त्यास्वा। साम्राज्याय सुक्रतुः।  देवस्य त्वा सवितु प्रसवे। अश्विनो र्बाहुभ्याम्। पूष्णो हस्ताभ्याम्। अश्विनो र्भैषज्येन। तेजसे ब्रह्मवर्चसायाभि षिञ्चामि।  देवस्य त्वा सवितु प्रसवे। अश्विनो र्बाहुभ्याम्। पूष्णो हस्ताभ्याम्। सरस्वत्यै भैषज्येन।। वीर्या यान्नाद्या याभि षिञ्चामि।  देवस्य त्वा सवितु प्रसवे। अश्विनो र्बाहुभ्याम्। पूष्णो हस्ताभ्याम्। इन्द्र स्येन्द्रियेण। श्रियै यशसे बलायाभि षिञ्चामि।  अर्यमणं बृहस्पति मिन्द्र न्दानाय चोदय। वाचँ विष्णु सरस्वती सवितारञ्च वाजिनम्। सोम राजानँ वरुण मग्नि मन्वारभामहे। आदित्यान् विष्णु सूर्यं ब्रह्माणञ्च बृहस्पतिम्।  देवस्य त्वा सवितु प्रसवेश्विनो र्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्या सरस्वत्यै वाचो यन्तु र्यन्त्रेणाग्नेस्त्वा साम्राज्ये नाभिषिञ्चा मीन्द्रस्य बृहस्पतेस्त्वा साम्राज्ये नाभिषिञ्चामि।।  वसवस्त्वा पुरस्ता दभि षिञ्चन्तु गायत्रेण छन्दसा।  रुद्रा स्त्वा दक्षिणतोभि षिञ्चन्तु त्रैष्टुभेन छन्दसा।  आदित्या स्त्वा पश्चा दभि षिञ्चन्तु जागतेन छन्दसा।  विश्वे त्वा देवा उत्तरतोभि षिञ्चन्त्वानुष्टुभेन छन्दसा।  बृहस्पति स्त्वोपरिष्टा दभि षिञ्चतु पाङ्क्तेन छन्दसा।।  इमा रुद्राय स्थिरधन्वने गिरः। क्षिप्रेषवे देवाय स्वधाम्ने। अषाढाय सहमानाय मीढुषे। तिग्मायुधाय भरता शृणोतन।  त्वादत्तेभी रुद्र शन्तमेभिः। शत हिमा अशीय भेषजेभिः। व्यस्मद्द्वेषो वितरँ व्यहः। व्यमीवा श्चातयस्वा विषूचीः।।  अर्‌ह न्बिभर्‌षि सायकानि धन्व। अर्ह न्निष्कँ यजतँ विश्वरूपम्। अर्‌हन्निद न्दयसे विश्व मब्भुवम्। न वा ओजीयो रुद्र त्वदस्ति।  मा न स्तोके तनये मा न आयुषि मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः। वीरा न्मा नो रुद्र भामितो वधीर्‌ हविष्मन्तो नमसा विधेम ते।।  आ ते पित र्मरुता सुम्नमेतु। मा न स्सूर्यस्य सन्दृशो युयोथाः। अभि नो वीरो अर्वति क्षमेत।  प्रजायेमहि रुद्र प्रजाभिः। एवा बभ्रो वृषभ चेकितान। यथा देव न हृणीषे न हसि। हावनश्रूर्नो रुद्रेह बोधि। बृह द्वदेम विदथे सुवीराः।  परि णो रुद्रस्य हेति र्वृणक्तु परि त्वेषस्य दुर्मति रघायोः। अव स्थिरा मघवद्भ्य स्तनुष्व मीढ्व स्तोकाय तनयाय मृडय।।  स्तुहि श्रुत ङ्गर्तसदँ युवानं मृगन्न भीम मुपहत्नु मुग्रम्। मृडा जरित्रे रुद्र स्तवानो अन्यं ते अस्मन्नि वपन्तु सेनाः।।  मीढुष्टम शिवतम शिवो न स्सुमना भव। परमे वृक्ष आयुध न्निधाय कृत्तिँ वसान आ चर पिनाकं बिभ्र दा गहि।।  अर्‌ह न्बिभर्‌षि सायकानि धन्व। अर्हन्निष्कँ यजतँ विश्वरूपम्। अर्‌ह न्निद न्दयसे विश्व मब्भुवम्। न वा ओजीयो रुद्र त्वदस्ति।।  त्वमग्ने रुद्रो असुरो महो दिव स्त्व शर्धो मारुतं पृक्ष ईशिषे। त्वँ वातै ररुणै र्यासि शङ्गय स्त्वं पूषा विधत पासि नु त्मना।।  आ वो राजान मध्वरस्य रुद्र होतार सत्ययज रोदस्योः। अग्निं पुरा तनयित्नो रचित्ता द्धिरण्यरूप मवसे कृणुध्वम्।  येते सहस्र मयुतं पाशा मृत्यो मर्त्याय हन्तवे। तान् यज्ञस्य मायया सर्वा नव यजामहे। मृत्यवे स्वाहा मृत्यवे स्वाहा।।  प्राणाना ङ्ग्रन्थिरसि रुद्रो माविशान्तकः। तेनान्नेनाप्यायस्व।  नमो रुद्राय विष्णवे मृत्युर्मे पाहि।  ॐ शान्तिशान्ति शान्तिः।