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Datta Ashtakam 8 दत्तात्रेय अष्टकम् 1 हरिहर धातृ समाहृत रूपं जगदुपकार सुशील ममेयम्। गमित महाघचयं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। 2 अपचित षोडश दिव्यसुरूपं बहुविध कामित दान धुरीणम्। गुरुपदवीधरणं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। 3. षडरि गणाहित दुःख विदारं मनसिज निग्रह दक्षमधीरम्। त्रिपुटविलोप पदं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। 4. वितत पुराण पवित्र मनोज्ञं दुरितचरित्र विशोधन विज्ञम्। अपहत पाप्मरिपुं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। 5. श्रुति हित धर्मपथानुग रक्षं सुकृति मनोगण संस्कृति लक्ष्यम्। चरम पुमर्थ हितं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। 6. अतिशुच मद्भुतलक्षणयुक्तं सकल चराचर वन्दनयोग्यम्। भवतरणाप्लवनं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। 7. प्रशमित मान्तर वैरिनिकायं निरतिशयं मुदमिच्छसि चेत्त्वम्। अविदुर जागरणं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। 8. घनरयि.वैभवदायक मेतत् - स्तवनरता.ननुरक्षति नित्यम्। अमृतझरीस्रवणं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। ==00==