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04 अ    01 None    02 None    04 काण्ड    04 प्रपा   

                        
                        
सन्तान प्रार्थन मन्त्राः (सन्तालगोपाल स्तोत्रम्, रामायणे पुत्रकामेष्टिप्रकरणे गर्भधारण सर्गौ 15, 16) ( १) संतानगोपालमन्त्रविधिः • अस्य श्रीसंतानगोपालमन्त्रस्य श्रीनारद ऋषिः, अनुष्टु्प् छन्दः, श्रीकृष्णो देवता, ग्लौं बीजम्, नमः शक्तिः, पुत्रार्थे जपे विनियोगः। • अङ्गन्यासः • देवकीसुत - अङ्गुष्ठाभ्यां नमः - हृदयाय नमः। • गोविन्द वासुदेव - तर्जनीभ्यां नमः - शिरसे स्वाहा। • जगत्पते - मध्यमाभ्यां नमः - शिखायै वषट्। • देहि मे तनयं कृष्ण - अनामिकाभ्यां नमः - कवचाय हुम् • त्वामहं शरणं गतः - कनिष्ठिकाभ्यां नमः -नेत्रत्रयाय वौषट्। • ॐ नमः - करतल करपृष्ठाभ्यां नमः - अस्त्राय फट्। • ध्यानम् - • वैकुण्ठादागतं कृष्णं रथस्थं करुणानिधिम्। किरीटिसारथिं पुत्रमानयन्तं परात्परम्।। १।। • आदाय तं जलस्थं च गुरवे वैदिकाय च। अर्पयन्तं महाभागं ध्यायेत् पुत्रार्थमच्युतम्।। २।। • शङ्खचक्रगदापद्मं धारयन्तं जनार्दनम्। अङ्के शयानं देवक्याः सूतिकामन्दिरे शुभे। एवं रूपं सदा कृष्णं सुतार्थं भावयेत् सुधीः।। • मूल मन्त्रः - गुरूपदेशात् ग्राह्यः -------- सन्तानगोपालस्तोत्रम् श्रीशं कमलपत्राक्षं देवकीनन्दनं हरिम्। सुतसम्प्राप्तये कृष्णं नमामि मधुसूदनम्।। १।। नमाम्यहं वासुदेवं सुतसम्प्राप्तये हरिम्। यशोदाङ्कगतं बालं गोपालं नन्दनन्दनम्।। २।। अस्माकं पुत्रलाभाय गोविन्दं मुनिवन्दितम्। नमाम्यहं वासुदेवं देवकीनन्दनं सदा।। ३।। गोपालं डिम्भकं वन्दे कमलापतिमच्युतम्। पुत्रसम्प्राप्तये कृष्णं नमामि यदुपुङ्गवम्।। ४।। पुत्रकामेष्टिफलदं कञ्जाक्षं कमलापतिम्। देवकीनन्दनं वन्दे सुतसम्प्राप्तये मम।। ५।। पद्मापते पद्मनेत्र पद्मनाभ जनार्दन। देहि मे तनयं श्रीश वासुदेव जगत्पते।। ६।। यशोदाङ्कगतं बालं गोविन्दं मुनिवन्दितम्। अस्माकं पुत्रलाभाय नमामि श्रीशमच्युतम्।। ७।। श्रीपते देवदेवेश दीनार्तिहरणाच्युत। गोविन्द मे सुतं देहि नमामि त्वां जनार्दन।। ८।। भक्तकामद गोविन्द भक्तं रक्ष शुभप्रदं। देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो।। ९।। रुक्मिणीनाथ सर्वेश देहि मे तनयं सदा। भक्तमन्दार पद्माक्ष त्वामहं शरणं गतः।। १०।। देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ११।। वासुदेव जगद्वन्द्य श्रीपते पुरुषोत्तम। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। १२।। कञ्जाक्ष कमलानाथ परकारुणिकोत्तम। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। १३।। लक्ष्मीपते पद्मनाभ मुकुन्द मुनिवन्दित। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। १४।। कार्यकारणरूपाय वासुदेवाय ते सदा। नमामि पुत्रलाभार्थं सुखदाय बुधाय ते।। १५।। राजीवनेत्र श्रीराम रावणारे हरे कवे। तुभ्यं नमामि देवेश तनयं देहि मे हरे।। १६।। अस्माकं पुत्रलाभाय भजामि त्वां जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव रमापते।। १७।। श्रीमानिनीमानचोर गोपीवस्त्रापहारक। देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते।। १८।। अस्माकं पुत्रसम्प्राप्तिं कुरुष्व यदुनन्दन। रमापते वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित।। १९।। वासुदेव सुतं देहि तनयं देहि माधव। पुत्रं मे देहि श्रीकृष्ण वत्सं देहि महाप्रभो।। २०।। डिम्भकं देहि श्रीकृष्ण आत्मजं देहि राघव। भक्तमन्दार मे देहि तनयं नन्दनन्दन।। २१।। नन्दनं देहि मे कृष्ण वासुदेव जगत्पते। कमलानाथ गोविन्द मुकुन्द मुनिवन्दित।। २२।। अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम। सुतं देहि श्रियं देहि श्रियं पुत्रं प्रदेहि मे।। २३।। यशोदास्तन्यपानज्ञं पिबन्तं यदुनन्दनम्। वन्देऽहं पुत्रलाभार्थं कपिलाक्षं हरिं सदा।। २४।। नन्दनन्दन देवेश नन्दनं देहि मे प्रभो। रमापते वासुदेव श्रियं पुत्रं जगत्पते।। २५।। पुत्रं श्रियं श्रियं पुत्रं पुत्रं मे देहि माधव। अस्माकं दीनवाक्यस्य अवधारय श्रीपते।। २६।। गोपालडिम्भ गोविन्द वासुदेव रमापते। अस्माकं डिम्भकं देहि श्रियं देहि जगत्पते।। २७।। मद्वाञ्छितफलं देहि देवकीनन्दनाच्युत। मम पुत्रार्थितं धन्यं कुरुष्व यदुनन्दन।। २८।। याचेऽहं त्वां श्रियं पुत्रं देहि मे पुत्रसम्पदम्। भक्तचिन्तामणे राम कल्पवृक्ष महाप्रभो।। २९।। आत्मजं नन्दनं पुत्रं कुमारं डिम्भकं सुतम्। अर्भकं तनयं देहि सदा मे रघुनन्दन।। ३०।। वन्दे सन्तानगोपालं माधवं भक्तकामदम्। अस्माकं पुत्रसंप्राप्त्यै सदा गोविन्दमच्युतम्।। ३१।। ओङ्कारयुक्तं गोपालं श्रीयुक्तं यदुनन्दनम्। क्लींयुक्तं देवकीपुत्रं नमामि यदुनायकम्।। ३२।। वासुदेव मुकुन्देश गोविन्द माधवाच्युत। देहि मे तनयं कृष्ण रमानाथ महाप्रभो।। ३३।। राजीवनेत्र गोविन्द कपिलाक्ष हरे प्रभो। समस्तकाम्यवरद देहि मे तनयं सदा।। ३४।। अब्जपद्मनिभं पद्म-वृन्दरूप जगत्पते। देहि मे वरसत्पुत्रं रमानायक माधव।। ३५।। नन्दपाल धरापाल गोविन्द यदुनन्दन। देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो।। ३६।। दासमन्दार गोविन्द मुकुन्द माधवाच्युत। गोपाल पुण्डरीकाक्ष देहि मे तनयं श्रियम्।। ३७।। यदुनायक पद्मेश नन्दगोपवधूसुत। देहि मे तनयं कृष्ण श्रीधरः प्राणनायक।। ३८।। अस्माकं वाञ्छितं देहि देहि पुत्रं रमापते। भगवन् कृष्ण सर्वेश वासुदेव जगत्पते।। ३९।। रमाहृदयसम्भार सत्यभामामनःप्रिय। देहि मे तनयं कृष्ण रुक्मिणीवल्लभ प्रभो।। ४०।। चन्द्रसूर्याक्ष गोविन्द पुण्डरीकाक्ष माधव। अस्माकं भाग्यसत्पुत्रं देहि देव जगत्पते।। ४१।। कारुण्यरूप पद्माक्ष पद्मनाभ.समर्चित। देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दनन्दन।। ४२।। देवकीसुत श्रीनाथ वासुदेव जगत्पते। समस्तकामफलद देहि मे तनयं सदा।। ४३।। भक्तमन्दार गम्भीर शङ्कराच्युत माधव। देहि मे तनयं गोप-बालवत्सल श्रीपते।। ४४।। श्रीपते वासुदेवेश देवकीप्रियनन्दन। भक्तमन्दार मे देहि तनयं जगतां प्रभो।। ४५।। जगन्नाथ रमानाथ भूमिनाथ दयानिधे। वासुदेवेश सर्वेश देहि मे तनयं प्रभो।। ४६।। श्रीनाथ कमलपत्राक्ष वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ४७।। दासमन्दार गोविन्द भक्तचिन्तामणे प्रभो। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ४८।। गोविन्द पुण्डरीकाक्ष रमानाथ महाप्रभो। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ४९।। श्रीनाथ कमलपत्राक्ष गोविन्द मधुसूदन। मत्पुत्रफलसिद्धयर्थं भजामि त्वां जनार्दन।। ५०।। स्तन्यं पिबन्तं जननीमुखाम्बुजं विलोक्य मन्दस्मितमुज्ज्वलाङ्गम्। स्पृशन्तमन्यस्तनमङ्गुलीभि-र्वन्दे यशोदाङ्कगतं मुकुन्दम्।। ५१।। याचेऽहं पुत्रसंतानं भवन्तं पद्मलोचन। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ५२।। अस्माकं पुत्रसम्पत्ते-श्चिन्तयामि जगत्पते। शीघ्रं मे देहि दातव्यं भवता मुनिवन्दित।। ५३।। वासुदेव जगन्नाथ श्रीपते पुरुषोत्तम। कुरु मां पुत्रदत्तं च कृष्ण देवेन्द्रपूजित।। ५४।। कुरु मां पुत्रदत्तं च यशोदाप्रियनन्दन। मह्यं च पुत्रसन्तानं दातव्यं भवता हरे।। ५५।। वासुदेव जगन्नाथ गोविन्द देवकीसुत। देहि मे तनयं राम कौसल्याप्रियनन्दन।। ५६।। पद्मपत्राक्ष गोविन्द विष्णो वामन माधव। देहि मे तनयं सीता-प्राणनायक राघव।। ५७।। कञ्जाक्ष कृष्ण देवेन्द्र-मण्डित मुनिवन्दित। लक्ष्मणाग्रज श्रीराम देहि मे तनयं सदा।। ५८।। देहि मे तनयं राम दशरथप्रियनन्दन। सीतानायक कञ्जाक्ष मुचुकुन्दवरप्रद।। ५९।। विभीषणस्य या लङ्का प्रदत्ता भवता पुरा। अस्माकं तत्प्रकारेण तनयं देहि माधव।। ६०।। भवदीयपदाम्भोजे चिन्तयामि निरन्तरम्। देहि मे तनयं सीताप्राणवल्लभ राघव।। ६१।। राम मत्काम्यवरद पुत्रोत्पत्तिफलप्रद। देहि मे तनयं श्रीश कमलासनवन्दित।। ६२।। राम राघव सीतेश लक्ष्मणानुज देहि मे। भाग्यवत्पुत्रसंतानं दशरथात्मज श्रीपते।। ६३।। देवकीगर्भसंजात यशोदाप्रियनन्दन। देहि मे तनयं राम कृष्ण गोपाल माधव।। ६४।। कृष्ण माधव गोविन्द वामनाच्युत शङ्कर। देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक।। ६५।। गोपबाल महाधन्य गोविन्दाच्युत माधव। देहि मे तनयं कृष्ण वासुदेव जगत्पते।। ६६।। दिशतु दिशतु पुत्रं देवकीनन्दनोऽयं दिशतु दिशतु शीघ्रं भाग्यवत्पुत्रलाभम्। दिशतु दिशतु श्रीशो राघवो रामचन्द्रो दिशतु दिशतु पुत्रं वंशविस्तारहेतोः।। ६७।। दीयतां वासुदेवेन तनयो मत्प्रियः सुतः। कुमारो नन्दन.स्सीता-नायकेन सदा मम।। ६८।। राम राघव गोविन्द देवकीसुत माधव। देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक।। ६९।। वंशविस्तारकं पुत्रं देहि मे मधुसूदन। सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः।। ७०।। ममाभीष्टसुतं देहि कंसारे माधवाच्युत। सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः।। ७१।। चन्द्रार्ककल्पपर्यन्तं तनयं देहि माधव। सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः।। ७२।। विद्यावन्तं बुद्धिमन्तं श्रीमन्तं तनयं सदा। देहि मे तनयं कृष्ण देवकीनन्दन प्रभो।। ७३।। नमामि त्वां पद्मनेत्र सुतलाभाय कामदम्। मुकुन्दं पुण्डरीकाक्षं गोविन्दं मधुसूदनम्।। ७४।। भगवन् कृष्ण गोविन्द सर्वकामफलप्रद। देहि मे तनयं स्वामिं-स्त्वामहं शरणं गतः।। ७५।। स्वामिं.स्त्वं भगवन् राम कृष्ण माधव कामद। देहि मे तनयं नित्यं त्वामहं शरणं गतः।। ७६।। तनयं देहि गोविन्द कञ्जाक्ष कमलापते। सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः।। ७७।। पद्मापते पद्मनेत्र प्रद्युम्नजनक प्रभो। सुतं देहि सुतं देहि त्वामहं शरणं गतः।। ७८।। शङ्खचक्रगदा.खड्ग-शार्ङ्गपाणे रमापते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ७९।। नारायण रमानाथ राजीवपत्रलोचन। सुतं मे देहि देवेश पद्मपद्मानुवन्दित।। ८०।। राम राघव गोविन्द देवकीवरनन्दन। रुक्मिणीनाथ सर्वेश नारदादिसुरार्चित।। ८१।। देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक।। ८२।। मुनिवन्दित गोविन्द रुक्मिणीवल्लभ प्रभो। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ८३।। गोपिकार्चितपङ्केज-मरन्दासक्तमानस। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ८४।। रमाहृदयपङ्केज-लोल माधव कामद। ममाभीष्टसुतं देहि त्वामहं शरणं गतः।। ८५।। वासुदेव रमानाथ दासानां मङ्गलप्रद। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ८६।। कल्याणप्रद गोविन्द मुरारे मुनिवन्दित। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ८७।। पुत्रप्रद मुकुन्देश रुक्मिणीवल्लभ प्रभो। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ८८।। पुण्डरीकाक्ष गोविन्द वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ८९।। दयानिधे वासुदेव मुकुन्द मुनिवन्दित। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ९०।। पुत्रसम्पत्प्रदातारं गोविन्दं देवपूजितम्। वन्दामहे सदा कृष्णं पुत्रलाभप्रदायिनम्।। ९१।। कारुण्यनिधये गोपीवल्लभाय मुरारये। नमस्ते पुत्रलाभार्थं देहि मे तनयं विभो।। ९२।। नमस्तस्मै रमेशाय रुक्मिणीवल्लभाय ते। देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक।। ९३।। नमस्ते वासुदेवाय नित्यश्रीकामुकाय च। पुत्रदाय च सर्पेन्द्र-शायिने रङ्गशायिने।। ९४।। रङ्गशायिन् रमानाथ मङ्गलप्रद माधव। देहि मे तनयं श्रीश गोपबालकनायक।। ९५।। दासस्य मे सुतं देहि दीनमन्दार राघव। सुतं देहि सुतं देहि पुत्रं देहि रमापते।। ९६।। यशोदातनयाभीष्ट-पुत्रदानरत.स्सदा। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ९७।। मदिष्टदेव गोविन्द वासुदेव जनार्दन। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।। ९८।। नीतिमान् धनवान् पुत्रो विद्यावांश्च प्रजायते। भगवंस्त्वत्कृपायाश्च वासुदेवेन्द्रपूजित।। ९९।। यः पठेत् पुत्रशतकं सोऽपि सत्पुत्रवान् भवेत्। श्रीवासुदेवकथितं स्तोत्ररत्नं सुखाय च।। १००।। जपकाले पठेन्नित्यं पुत्रलाभं धनं श्रियम्। ऐश्वर्यं राजसम्मानं सद्यो याति न संशयः।। १०१।। ।। इति श्रीसन्तानगोपालस्तोत्रं सम्पूर्णं।। • श्रीमद्वाल्मीकि रामायणे पञ्चदशस्सर्गः 1.15 1. मेधावी तु ततो ध्यात्वा स किञ्चिदिदमुत्तरम्। लब्धसंज्ञस्ततस्तं तु वेदज्ञो नृपमब्रवीत्।। 2. इष्टिं तेऽहं करिष्यामि पुत्रीयां पुत्रकारणात्। अथर्वशिरसि प्रोक्तैर्मन्त्रैस्सिद्धां विधानत:।। 3. तत: प्राक्रमदिष्टिं तां पुत्रीयां पुत्रकारणात्। जुहाव चाग्नौ तेजस्वी मन्त्रदृष्टेन कर्मणा।। 4. ततो देवास्सगन्धर्वास्सिद्धाश्च परमर्षय:। भागप्रतिग्रहार्थं वै समवेता यथाविधि।। 5. तास्समेत्य यथान्यायं तस्मिन्सदसि देवता:। अब्रुवन् लोककर्तारं ब्रह्माणं वचनं महत्।। 6. भगवन्त्वत्प्रसादेन रावणो नाम राक्षस:। सर्वान्नो बाधते वीर्याच्छासितुं तं न शक्नुम:।। 7. त्वया तस्मै वरो दत्त: प्रीतेन भगवन्पुरा। मानयन्तश्च तं नित्यं सर्वं तस्य क्षमामहे।। 8. उद्वेजयति लोकान्स्त्रीनुच्छ्रितान्द्वेष्टि दुर्मति:। शक्रं त्रिदशराजानं प्रधर्षयितुमिच्छति।। 9. ऋषीन्यक्षान्सगन्धर्वानसुरान्ब्राह्मणांस्तथा। अतिक्रामति दुर्धर्षो वरदानेन मोहित:।। 10. नैनं सूर्य: प्रतपति पार्श्वे वाति न मारुत:। चलोर्मिमाली तं दृष्ट्वा समुद्रोऽपि न कम्पते।। 11. तन्महन्नो भयं तस्माद्राक्षसाद्घोरदर्शनात्। वधार्थं तस्य भगवन्नुपायं कर्तुमर्हसि।। 12. एवमुक्तस्सुरैस्सर्वैश्चिन्तयित्वा ततोऽब्रवीत्। हन्तायं विदितस्तस्य वधोपायो दुरात्मन:।। 13. तेन गन्धर्वयक्षाणां देवदानवरक्षसाम्। अवध्योऽस्मीति वागुक्ता तथेत्युक्तं च तन्मया।। 14. नाकीर्तयदवज्ञानात्तद्रक्षो मानुषान् प्रति। तस्मात्स मानुषाद्वध्यो मृत्युर्नान्योऽस्य विद्यते।। 15. एतच्छ्रुत्वा प्रियं वाक्यं ब्रह्मणा समुदाहृतम्। सर्वे महर्षयो देवाः प्रहृष्टास्तेऽभवंस्तदा।। 16. एतस्मिन्नन्तरे विष्णुरुपयातो महाद्युति:। शङ्खचक्रगदापाणि: पीतवासा जगत्पति:।। 17. ब्रह्मणा च समागम्य तत्र तस्थौ समाहित:। तमब्रुवन्सुरास्सर्वे समभिष्टूय सन्नता:।। 18. त्वान्नियोक्ष्यामहे विष्णो लोकानां हितकाम्यया। राज्ञो दशरथस्य त्वमयोध्याधिपते: प्रभो:। धर्मज्ञस्य वदान्यस्य महर्षिसमतेजस:।। 19. तस्य भार्यासु तिसृषु ह्रीश्रीकीर्त्युपमासु च। विष्णो पुत्रत्वमागच्छ कृत्वाऽऽत्मानं चतुर्विधम् 1।। 20. तत्र त्वं मानुषो भूत्वा प्रवृद्धं लोककण्टकम्। अवध्यं दैवतैर्विष्णो समरे जहि रावणम्।। 21. स हि देवांश्च गन्धर्वान्सिद्धांश्च मुनिसत्तमान्। राक्षसो रावणो मूर्खो वीर्योत्सेकेन बाधते।। 22. ऋषयश्च ततस्तेन गन्धर्वाप्सरसस्तथा। क्रीडन्तो नन्दनवने क्रूरेण किल हिंसिता:।। 23. वधार्थं वयमायातास्तस्य वै मुनिभिस्सह। सिद्धगन्धर्वयक्षाश्च ततस्त्वां शरणं गता:।। 24. त्वं गति: परमा देव सर्वेषां न: परन्तप। वधाय देवशत्रूणां नृणां लोके मन: कुरु।। 25. एवमुक्तस्तु देवेशो विष्णुस्त्रिदशपुङ्गव:। पितामहपुरोगांस्तान्सर्वलोकनमस्कृत:। अब्रवीत्त्रिदशान्सर्वान्समेतान्धर्मसंहितान्।। 26. एवं दत्वा वरं देवो देवानां विष्णुरात्मवान्। मानुषे चिन्तयामास जन्मभूमिमथात्मन:।। 27. तत: पद्मपलाशाक्ष: कृत्वात्मानं चतुर्विधम्। पितरं रोचयामास तथा दशरथन्नृपम्।। 28. तदा देवर्षि गन्धर्वास्सरुद्रास्साप्सरोगणा:। स्तुतिभिर्दिव्यरूपाभिस्तुष्टुवुर्मधुसूदनम्।। 29. तमुद्धतं रावणमुग्रतेजसं प्रवृद्धदर्पं त्रिदशेश्वरद्विषम्। विरावणं साधुतपस्विकण्टकं तपस्विनामुद्धर तं भयावहम्।। 30. तमेव हत्वा सबलं सबान्धवं विरावणं रावणमग्य्रपौरुषम्। स्वर्लोकमागच्छ गतज्वरश्चिरं सुरेन्द्रगुप्तं गतदोषकल्मषम्।। • 1.16 षोडशस्सर्गः 1. ततो नारायणो देवो नियुक्तस्सुरसत्तमै:। जानन्नपि सुरानेवं श्लक्ष्णं वचनमब्रवीत्।। 2. उपाय: को वधे तस्य रावणस्य दुरात्मन:। यमहं तं समास्थाय निहन्यामृषिकण्टकम्।। 3. एवमुक्तास्सुरास्सर्वे प्रत्यूचुर्विष्णुमव्ययम्। मानुषीं तनुमास्थाय रावणं जहि संयुगे।। 4. स हि तेपे तपस्तीव्रं दीर्घकालमरिन्दम। येन तुष्टोऽभवद्ब्रह्मा लोककृल्लोकपूर्वज:।। 5. सन्तुष्ट: प्रददौ तस्मै राक्षसाय वरं प्रभु:। 6. नानाविधेभ्यो भूतेभ्यो भयं नान्यत्र मानुषात्। अवज्ञाता: पुरा तेन वरदाने हि मानवा:।। 05।। 7. एवं पितामहात्तस्माद्वरं प्राप्य स दर्पित:। उत्सादयति लोकांस्त्रीन् स्त्रियश्चाप्यपकर्षति। तस्मात्तस्य वधो दृष्टो मानुषेभ्य: परन्तप।। 8. इत्येतद्वचनं श्रुत्वा सुराणां विष्णुरात्मवान्। पितरं रोचयामास तदा दशरथं नृपम्।। 9. स चाप्यपुत्रो नृपतिस्तस्मिन्काले महाद्युति:। अयजत्पुत्रियामिष्टिं पुत्रेप्सुररिसूदन:।। 10. स कृत्वा निश्चयं विष्णुरामन्त्र्य च पितामहम्। अन्तर्धानं गतो देवै: पूज्यमानो महर्षिभि:।। 11. ततो वै यजमानस्य पावकादतुलप्रभम्। प्रादुर्भूतं महद्भूतं महावीर्यं महाबलम्।। 12. कृष्णं रक्ताम्बरधरं रक्तास्यं दुन्दुभिस्वनम्। स्निग्धहर्यक्षतनुजश्मश्रुप्रवरमूर्धजम्। 13. शुभलक्षणसम्पन्नं दिव्याभरणभूषितम्। शैलशृङ्गसमुत्सेधं दृप्तशार्दूलविक्रमम्।। 14. दिवाकरसमाकारं दीप्तानलशिखोपमम्। तप्तजाम्बूनदमयीं राजतान्तपरिच्छदाम्।। 15. दिव्यपायससम्पूर्णां पात्रीं पत्नीमिव प्रियाम्। प्रगृह्य विपुलां दोर्भ्यां स्वयं मायामयीमिव।। 16. समवेक्ष्याब्रवीद्वाक्यमिदं दशरथं नृपम्। प्राजापत्यं नरं विद्धि मामिहाभ्यागतं नृप।। 17. तत: परं तदा राजा प्रत्युवाच कृताञ्जलि:। भगवन् स्वागतं तेऽस्तु किमहं करवाणि ते।। 18. अथो पुनरिदं वाक्यं प्राजापत्यो नरोऽब्रवीत्। राजन्नर्चयता देवानद्य प्राप्तमिदं त्वया।। 19. इदं तु नृपशार्दूल पायसं देवनिर्मितम्। प्रजाकरं गृहाण त्वं धन्यमारोग्यवर्धनम्।। 20. भार्याणामनुरूपाणामश्नीतेति प्रयच्छ वै। तासु त्वं प्राप्स्यसे पुत्रान् यदर्थं यजसे नृप।। 21. तथेति नृपति: प्रीतश्शिरसा प्रतिगृह्यताम्। पात्रीं देवान्नसम्पूर्णां देवदत्तां हिरण्मयीम्।। 22. अभिवाद्य च तद्भूतमद्भुतं प्रियदर्शनम्। मुदा परमया युक्तश्चकाराभिप्रदक्षिणम्।। 23. ततो दशरथ: प्राप्य पायसं देवनिर्मितम्। बभूव परमप्रीत: प्राप्य वित्तमिवाधन:।। 24. ततस्तदद्भुतप्रख्यं भूतं परमभास्वरम्। संवर्तयित्वा तत्कर्म तत्रैवान्तरधीयत।। 25. हर्षरश्मिभिरुद्योतं तस्यान्त:पुरमाबभौ। शारदस्याभिरामस्य चन्द्रस्येव नभोंऽशुभि:।। 26. सोऽन्त:पुरं प्रविश्यैव कौसल्यामिदमब्रवीत्। पायसं प्रतिगृह्णीष्व पुत्रीयं त्विदमात्मन:।। 27. कौसल्यायै नरपति: पायसार्धं ददौ तदा। अर्धादर्धं ददौ चापि सुमित्रायै नराधिप:। 28. कैकेय्यै चावशिष्टार्धं ददौ पुत्रार्थकारणात्। प्रददौ चावशिष्टार्धं पायसस्यामृतोपमम्। 29. अनुचिन्त्य सुमित्रायै पुनरेव महीपति:। एवं तासां ददौ राजा भार्याणां पायसं पृथक्।। 30. तास्त्वेतत्पायसं प्राप्य नरेन्द्रस्योत्तमास्स्त्रय:। सम्मानं मेनिरे सर्वां: प्रहर्षोदितचेतस:।। 31. ततस्तु ता: प्राश्य तदुत्तमास्त्रियो महीपतेरुत्तमपायसं पृथक्। हुताशनादित्यसमानतेजसो ऽचिरेण गर्भान्प्रतिपेदिरे तदा।। 32. ततस्तु राजा प्रसमीक्ष्य ता: स्त्रिय: प्ररूढगर्भा: प्रतिलब्धमानस:। बभूव हृष्टस्त्रिदिवे यथा हरि: सुरेन्द्रसिद्धर्षिगणाभिपूजित:।। • इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये बालकाण्डे सप्तदशस्सर्गः।। ==00==