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05 वे    01 शि    02 अध्या    01 None    101 None   

                        
                        
दत्तात्रेय अष्टावधान सेवा ऋग्वेदः –  योगीश्वराय मुनिमानस मन्दिराय नित्यं मनो वचन कायकृताघशामे। ऋग्वेद पाठ कलिताञ्च सुरासुरेशे दत्ताय सद्गुरुवराय विधेम सेवाम्।। 1 त्रिमूर्त्यात्मक श्रीदत्तात्रेय स्वामिन् पराक् ऋग्वेद प्रिय ऋग्वेद सेवा मवधारय। यजुर्वेदः –  सज्जामदग्न्य महिताध्वर याजकाय सृष्टिस्थिति प्रलय यज्ञ महर्त्विजे च। अध्वर्युवेद घनशब्द युतै र्यजुर्भिः दत्ताय सद्गुरुवराय विधेम सेवाम्।। २ त्रिमूर्त्यात्मक श्रीदत्तात्रेय स्वामिन् पराक् यजुर्वेद प्रिय यजुर्वेद सेवा मवधारय। सामवेदः –  आशुद्ध सत्त्व परिशोभि शरीरिणेस्मै नैसर्गकाश सुगुणाळिमते परेशे। साम्नां रहस्य सहितैश्श्रुति पेय गानैः दत्ताय सद्गुरुवराय विधेम सेवाम्।।३ त्रिमूर्त्यात्मक श्रीदत्तात्रेय स्वामिन् पराक् सामवेद प्रिय सामवेद सेवा मवधारय। अथर्वण वेदः –  ब्रह्मण्य कर्दमसुता तनयात्रिपुत्र ज्ञान क्षुधार्त चिदमत्र मुनीश वन्द्य। आथर्वणै श्श्रुतिवनीचित मन्त्रपुष्पैः दत्ताय सद्गुरुवराय विधेम सेवाम्।।४ त्रिमूर्त्यात्मक श्रीदत्तात्रेय स्वामिन् पराक् अथर्ववेद प्रिय अथर्वणवेद सेवा मवधारय।  उपनिषत् – लोकोभितो भवहुताशिनि तप्यमानो यस्येक्षणेन परिशामित दावतापः। अद्वैत बोधनपरै श्श्रुति शीर्षवाक्यैः दत्ताय सद्गुरुवराय विधेम सेवाम्।।५ त्रिमूर्त्यात्मक श्रीदत्तात्रेय स्वामिन् पराक् उपनिषत् प्रिय उपनिषद्वाक्य सेवा मवधारय। शास्त्रम् –  यस्मादृते जगति वस्त्विति विद्यते नो निष्कृष्य तत्त्वमुदितं बहुधा नयोक्तैः। वाक्य प्रमाण पदशास्त्र वचोभिरस्मै दत्ताय सद्गुरुवराय विधेम सेवाम्।।६ त्रिमूर्त्यात्मक श्रीदत्तात्रेय स्वामिन् पराक् शास्त्र प्रिय शास्त्रपठन सेवा मवधारय। स्तोत्रम् –  संसेव्य पिंगलमुनि र्यमुपास्य भक्त्या वापत् सनातन पदं गुरुराट्कृपाभाक्। स्वान्तर्विकासि नुतिपुष्प समर्पणेन दत्ताय सद्गुरुवराय विधेम सेवाम्।।७ त्रिमूर्त्यात्मक श्रीदत्तात्रेय स्वामिन् पराक् स्तोत्र प्रिय स्तोत्र पठन सेवा मवधारय।  भजनम् – संकीर्तनापचिति कर्मकरा महान्तः सायुज्यमाप्य बहवो तिभवा बभूवुः। वादित्र नृत्य सहितै र्विविधै स्सुगीतैः दत्ताय सद्गुरुवराय विधेम सेवाम्।। 8 त्रिमूर्त्यात्मक श्रीदत्तात्रेय स्वामिन् पराक् सङ्कीर्तन प्रिय संकीर्तन सेवा मवधारय।। सङ्गीतम् -  यो वै विभुस्स्मरणमात्र सुतुष्ट आस्ते भक्त्त्याश्रिता ननुजिघृक्षति पात्यजस्रम्। वीणा मृदङ्ग पटहैः कल वंश गानैः दत्ताय सद्गुरुवराय विधेम सेवाम्।।9 त्रिमूर्त्यात्मक श्रीदत्तात्रेय स्वामिन् पराक् सङ्गीत प्रिय सङ्गीत सेवा मवधारय।। पञ्चाङ्गम् –  नक्षत्र योग करणै स्तिथि वासरैश्च पञ्चाङ्ग पाठनमिदं परमेश्वराय। कालाय ते स्मरणमात्र सुतोषणाय दत्ताय सद्गुरुवराय विधेम सेवाम्।। 10 त्रिमूर्त्यात्मक श्रीदत्तात्रेय स्वामिन् पराक् कालात्मक पञ्चाङ्ग श्रवण सेवा मवधारय।।  अपराध क्षमापणम् – मनसा वचसा तन्वा स्माभि र्यदपराध्यते। क्षमस्व करुणा सिन्धो प्रसीद परमेश्वर। ==00== श्रीदत्त तामरसस्तोत्रम् 1 हरिहर धातृ समाहृत रूपं जगदुपकार सुशील ममेयम्। गमित महाघचयं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। 2 अपचित षोडश दिव्यसुरूपं बहुविध कामित दान धुरीणम्। गुरुपदवीधरणं गुरु दत्त- प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। 3. षडरि गणाहित दुःख विदारं मनसिज निग्रह दक्षमधीरम्। त्रिपुटविलोप पदं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। 4. वितत पुराण पवित्र मनोज्ञं दुरितचरित्र विशोधन विज्ञम्। अपहत पाप्मरिपुं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। 5. श्रुति हित धर्मपथानुग रक्षं सुकृति मनोगण संस्कृति लक्ष्यम्। चरम पुमर्थ हितं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। 6. अतिशुच मद्भुतलक्षणयुक्तं सकल चराचर वन्दनयोग्यम्। भवतरणाप्लवनं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। 7. प्रशमित मान्तर वैरिनिकायं निरतिशयं मुदमिच्छसि चेत्त्वम्। अविदुर जागरणं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। 8. घनरयिवैभवदायक मेतत् - स्तवनरता ननुरक्षति नित्यम्। अमृतझरीस्रवणं गुरु दत्त - प्रभुपद तामरसं भज मित्र।। ==00==