वरलक्ष्मी व्रत विधानम् (लक्ष्मी पूजा) पुराणोक्तविधिः
घण्टा नादः -
• आगमार्थन्तु देवानां गमनार्थन्तु रक्षसाम्।
कुर्वे घण्टारवं तत्र देवताह्वान लाञ्छनम्।।
• अपवित्र पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
यस्स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरश्शुचिः।।
पुण्डरीकाक्ष पुण्डरीकाक्ष पुण्डरीकाक्ष।
श्रीमहागणाधिपतये नमः। श्री महासरस्वत्यै नमः। श्री गुरुभ्यो नमः। हरिः ओम्।।
तयो स्संस्मरणात्पुंसां सर्वतो जय मङ्गळम्।।
• शुक्लांबरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्याये त्सर्व विघ्नोपशान्तये।।
• तदेव लग्नं सुदिनं तदेव तारा बलं चन्द्रबलं तदेव।
विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेंघ्रियुगं स्मरामि।।
• यत्र योगेश्वर कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूति र्ध्रुवा नीति र्मति र्मम।।
• स्मृते सकल कळ्याण भाजनं यत्र जायते।
पुरुष स्त मजं नित्यं व्रजामि शरणं हरिम्।।
• सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषा ममङ्गळम्।
येषां हृदिस्थो भगवा न्मंगळायतनं हरिः।।
• लाभ.स्तेषां जय स्तेषां कृत स्तेषां पराभवः।
येषा मिन्दीवर श्यामो हृदयस्थो जनार्दनः।।
• आपदामप हर्तारं दातारं सर्व संपदाम्।
लोकाभि रामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्।।
• सर्वमङ्गल माङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके देवि नारायणि नमोस्तुते।।
श्री लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। श्री उमामहेश्वराभ्यां नमः। श्री वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
श्री शचीपुरन्दराभ्यां नमः। श्री अरुन्धती वसिष्ठाभ्यां नमः। श्री सीतारामाभ्यां नमः।
सर्वेभ्यो महाजनेभ्यो नमः।।
आचम्य - केशवाय नमः, नारायणाय नमः,
माधवाय नमः, गोविंदाय नमः, विष्णवे नमः,
मधुसूदनाय नमः, त्रिविक्रमाय नमः, वामनाय नमः,
श्रीधराय नमः, हृषीकेशाय नमः, पद्मनाभाय नमः,
दामोदराय नमः, संकर्षणाय नमः, वासुदेवाय नमः,
प्रद्युम्नाय नमः, अनिरुद्धाय नमः, पुरुषोत्तमाय नमः,
अधोक्षजाय नमः, नारसिंहाय नमः, अच्युताय नमः,
जनार्दनाय नमः, उपेंद्रायनमः, हरये नमः, श्रीकृष्णाय नमः,
श्री कृष्ण परब्रह्मणे नमो नमः।।
संकल्पः -
• उत्तिष्ठंतु भूतपिशाचाः एते भूमिभारकाः ।
एतेषा मविरोधेन ब्रह्मकर्म समारभे ।।
प्राणानायम्य।। देशकालौ संकीर्त्य
ओं भूः। ओं भुवः। ओ सुवः। ओं महः। ओं जनः। ओं तपः। ओ सत्यम्। ओं तथ्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो योन प्रचोदयात्। ओमापो ज्योती रसोमृतं ब्रह्म भूर्भुवस्सुवरोम्।।
ममोपात्त समस्त दुरितक्षय द्वारा श्री परमेश्वरमुद्दिश्य, श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थं, शुभे शोभने मुहूर्ते, श्री महा विष्णो राज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य ब्रह्मणः द्वितीय परार्धे, श्वेतवराहकल्पे, वैवस्वत मन्वन्तरे, कलियुगे प्रथम पादे, जंबूद्वीपे, भरतवर्षे, भरतखण्डे मेरोर्दक्षिण दिग्भागे, श्री शैलस्य -- - - प्रदेशे, - - - -नद्यो र्मध्यदेशे - - - समस्त देवता गोब्राह्मण हरिहर सद्गुरु चरण सन्निधौ, अस्मिन् वर्तमान व्यावहारिक चान्द्रमानेन प्रभवादि षष्टि संवथ्सराणां मध्ये, श्रीमत् - - - संवथ्सरे, - - - अयने, - - - ऋतौ, - - - मासे, - - - पक्षे, - - - तिथौ, - - - वासरे, - - - नक्षत्रे, - - - योगे, - - - करणे, एवंगुण विशेषण विशिष्टाया मस्यां शुभतिथौ श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थं, श्रीमतः …… गोत्रस्य, …नक्षत्रे …राशौ जातस्य, …नामधेयस्य, सपरिवारस्य मम (अस्य यजमानस्य), गोत्रस्य. . शर्मणः, धर्मपत्नी श्रीमती.... गोत्रवती .... नामधेयवती, अस्माकं सहकुटुम्भानां क्षेम स्थैर्य विजयायुः आरारोग्य ऐश्वर्य अबिवृद्ध्यर्थं धर्मार्थ काम मोक्ष चतिर्विध फल पुरुषार्थ सिद्ध्यर्थं सत्सन्तान सौभाग्य फलवाप्त्यर्थं, दीर्घ सौंगळ्य सिद्ध्यर्थं, वर्षेवर्षे प्रयुक्त एतद्वर्ष श्री वरलक्ष्मी देवता मुद्दिश्य श्री वरलक्ष्मी देवता प्रीत्यर्थं भविष्योत्तरपुराण कल्पोक्त प्रकारेण यावच्छक्ति ध्याना वाहनादि षोडशोपचारपूजां करिष्ये।।
तदंगत्वेन निर्विघ्न परिसमपात्यर्थं श्री महागणपति पूजां करिष्ये।।
वागीशाद्यास्सुमनस-स्सर्वार्थानामुपक्रमे। यन्नत्वा कृतकृत्यास्स्यु-स्तं नमामि गजाननम्।।
श्री महागणाधिपतये नमः। मनसाभीष्ट प्रार्थन नमस्कारं समर्पयामि।। (गणपति पूजां कृत्वा)।।
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लक्ष्मीपूजाङ्गत्वेन कलशपूजां करिष्ये।।
कलशपूजा -
तदङ्गत्वेन कलशाराधनं करिष्ये। कलशं गन्ध पुष्पाक्षतै रभ्यर्च्य। हस्तेनाच्छाद्य।।
• कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र स्समाश्रितः।
मूले तत्र स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा स्स्मृताः।।
• कुक्षौ तु सागरा स्सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋग्वेदोथ यजुर्वेद स्सामवेदो ह्यथर्वणः।।
• अङ्गैश्च सहिता स्सर्वे कलशांबु समाश्रिताः।
आयान्तु देव पूजार्थं दुरितक्षय कारकाः।।
• गङ्गे च यमुने कृष्णे गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
• आयान्तु देव पूजार्थं दुरितक्षय कारकाः।
कलशोदकेन पूजा द्रव्याणि संप्रोक्ष्य। देवं, आत्मानं च संप्रोक्ष्य। शेषं विसृज्य।। आयांतु श्री मंगळ गौरी पूजार्थं मम दुरितक्षय कारकाः, कलशोदकेन पूजाद्रव्याणि देवी मात्मानं च संप्रोक्ष्य।। शेषं विसृज्य।।
ध्यानम् -
• लक्ष्मीं क्षीर समुद्रराज तनयां श्रीरङ्गधामेश्वरीं
दासीभूत समस्त देववनितां लोकैक दीपाङ्कुराम्।
श्रीमन्मन्द कटाक्षलब्ध विभव द्ब्रह्मेन्द्र गङ्गाधरां
ता न्त्रैलोक्य कुटुन्बिनीं सरसिजां वन्दे मुकुन्दप्रियाम्।।
• पद्मासने पद्मकरे सर्वलोकैकपूजिते।
नारायणप्रिये देवि सुप्रीता भव सर्वदा।
क्षीरोदार्णवसम्भूते कमले कमलालये।
सुस्थिरा भव मे गेहे सुरासुर.नमस्कृते।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। ध्यायामि - ध्यानं समर्पयामि।।
आवाहनम् -
• सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये विष्णुवक्ष.स्स्थलालये।
आवाहयामि देवि त्वां सुप्रीता भव सर्वदा।।
श्रीमहालक्ष्म्यै नमः। अवाहिताभव स्थापिता भव सुप्रसन्नभव वरदाभव मम इष्टकाम्यार्थ सिद्दिदा भव।।
• अत्रागच्छ महादेवि सर्वलोक.सुखप्रदे |
यावद्व्रत.महं कुर्वे पुत्त्रपौत्राभिवृद्धये ||
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। आवाहयामि।। आवाहनं समर्पयामि।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमो नमः। स्थिरा भव, सुप्रसन्ना भव, वरदा भव।
आसनम् -
• सूर्यायुत निभस्फूर्ते स्फुर.द्रत्नविभूषितम्।
सिंहासनमिदं देवि स्थीयतां सुरपूजिते।।
ओं तां म आवह जातवेदो लक्ष्मी मनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यँ विन्देय ङ्गामश्वं पुरुषानहम्।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। नवरत्नखचित सिंहासनं समर्पयामि।।
पाद्यम् –
• शुद्धोदकं च पात्रस्थं गन्ध पुष्पादिमिश्रितम्।
अर्घ्यं दास्यामि ते देवि गृहाण सुरपूजिते।।
ओं अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीम्। श्रियन्देवी मुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। पादयो पाद्यं समर्पयामि।।
अर्घ्यम् -
• सुवासित जलं रम्यं सर्वतीर्थ.समुद्भवम्।
पाद्यं गृहाण देवि त्वं सर्वदेव नमस्कृते।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। हस्तयोः अर्घ्यं समर्पयामि।।
आचमनीयम् –
• सुवर्ण.कलशानीतं चन्दनागुरु संयुतम्।
गृहाणाचमनं देवि मया दत्तं शुभप्रदे।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमो नमः।। शुद्धाचमनीयं समर्पयामि।।
पञ्चामृत स्नानम् -
• पयोदधि घृतोपेतं शर्करा.मधु.संयुतम्।
पञ्चामृत.स्नान.मिदं गृहाण कमलालये।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। मुखे शुद्धाचमनीयं समर्पयामि।।
स्नानम् -
• गङ्गाजलं समानीतं महादेवशिरस्स्थितम्।
शुद्धोदक स्नान.मिदं गृहाण विधुसोदरि।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। स्नानं समर्पयामि।। स्नानानंतरं शुद्धाचमनीयं समर्पयामि।
वस्त्रम् -
• सुरार्चितांघ्रि युगले दुकूल.वसनप्रिये।
वस्त्रयुग्मं प्रदास्यामि गृहाण हरिवल्लभे।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। वस्त्रं समर्पयामि।।
यज्ञोपवीतम्
• तप्तहेमकृतं देवि गृहाण त्वं शुभप्रदे।
उपवीतमिदं देवि गृहाण त्वं शुभप्रदे।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। उपवीतं समर्पयामि।। वस्त्र उपवीत धारणानन्तरं शुद्धाचमनीयं समर्पयामि।।
• केयूर कङ्कणे दिव्ये हारनूपुर मेखलाः।
विभूषणान्यमूल्यानि गृहाण ऋषिपूजिते।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। आभरणानि समर्पयामि।।
चन्दनम् -
• कर्पूरागुरु.कस्तूरी-रोचनादिभि.रन्वितम्।
गन्धं दास्याम्यहं देवि प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। श्री गन्धानुलेपनं समर्पयामि।।
अक्षताः
• अक्षतान् धवलान् देवि शालीयां.स्तंडुलान् शुभान्।
हरिद्राकुङ्कुमोपेतान् गृह्यता.मब्धिपुत्रिके।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। गन्धोपरि अलङ्करणार्थं, अक्षतान् समर्पयामि।।
पुष्पम् –
• मल्लिका जाति कुसुमैश्चंपकैर्वकुळैरसि।
शतपत्त्रैश्च कल्हारैः पूजयामि हरिप्रिये।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यैनमो नमः।। पुष्पमालिकां, नानाविध परिमळ पत्र पुष्पाणि समर्पयामि।।
मंगल द्रव्याणि -
• हरिद्रां कुङ्कुमं चैव सिन्धूरं कज्जलान्वितम्|
नीललोहित ताटङ्के मंगलद्रव्य.मीश्वरि||
श्री वरलक्ष्मी देव्यैनमो नमः।। हरिद्राकुङ्कुमादि सौभाग्य द्रव्याणि समर्पयामि।।
अथ अङ्ग पूजा -
चञ्चलायै नमः - पादौ पूजयामि
चपलायै नमः - जानुनी पूजयामि
पीताम्बरधरायै नमः - ऊरू पूजयामि
कमलवासिन्यै नमः - कटिं पूजयामि
पद्मालयायै नमः - नाभिं पूजयामि
मदनमात्रे नमः - स्तनौ पूजयामि
ललितायै नमः - भुजद्वयं पूजयामि
कम्बुकण्ठ्यै नमः - कण्ठं पूजयामि
सुमुख्यै नमः - मुखं पूजयामि
श्रियै नमः - ओष्ठौ पूजयामि
सुनासिकायै नमः- नासिकां पूजयामि
रमायै नमः - कर्णौ पूजयामि
कमलायै नमः - शिरः पूजयामि
वरलक्ष्म्यै नमः - सर्वाण्यङ्गानि पूजयामि.
अथ लक्ष्मी देव्याः अष्टोत्तर नामार्चनम् -
1 ओं प्रकृत्यै
2 ओं विकृत्यै
3 ओं विद्यायै
4 ओं सर्वभूत हित प्रदायै
5 ओं श्रद्धायै
6 ओं विभूत्यै
7 ओं सुरभ्यै
8 ओं परमात्मिकायै
9 ओं वाचे
10 ओं पद्मालयायै
11 ओं पद्मायै
12 ओं शुचये
13 ओं स्वाहायै
14 ओं स्वधायै
15 ओं सुधायै
16 ओं धन्यायै
17 ओं हिरण्मय्यै
18 ओं लक्ष्मै
19 ओं नित्य पुष्टायै
20 ओं विभावर्यै
21 ओं अदित्यै
22 ओं दित्यै
23 ओं दीप्तायै
24 ओं वसुधायै
25 ओं वसुधारिण्यै
26 ओं कमलायै
27 ओं कांतायै
28 ओं कामायै
29 ओं क्षीरोद संभवायै
30 ओं अनुग्रहपदायै
31 ओं बुद्धये
32 ओं अनघायै
33 ओं हरि वल्लभायै
34 ओं अशोकायै
35 ओं अमृतायै
36 ओं दीप्तायै
37 ओं लोक शोक विनाशिन्यै
38 ओं धर्म निलयायै
39 ओं करुणायै
40 ओं लोक मात्रे
41 ओं पद्म प्रियायै
42 ओं पद्महस्तायै
43 ओं पद्माक्ष्यै
44 ओं पद्म सुंदर्यै
45 ओं पद्मोद्भवायै
46 ओं पद्म मुख्यै
47 ओं पद्मनाभ प्रियायै
48 ओं रमायै
49 ओं पद्ममालाधरायै
50 ओं देव्यै
51 ओं पद्मिन्यै
52 ओं पद्मगंधिन्यै
53 ओं पुण्य गंधायै
54 ओं सुप्रसन्नायै
55 ओं प्रसादाभिमुख्यै
56 ओं प्रभायै
57 ओं चंद्र वदनायै
58 ओं चंद्रायै
59 ओं चंद्र सहोदर्यै
60 ओं चतुर्भुजायै
61 ओं चंद्र रूपायै
62 ओं इंदिरायै
63 ओं इंदु शीतलायै
64 ओं आह्लाद जनन्यै
65 ओं पुष्ट्यै
66 ओं शिवायै
67 ओं शिवकर्यै
68 ओं सत्यै
69 ओं विमलायै
70 ओं विश्व जनन्यै
71 ओं तुष्ट्यै
72 ओं दारिद्र्य नाशिन्यै
73 ओं प्रीति पुष्करिण्यै
74 ओं शान्तायै
75 ओं शुक्ल माल्याम्बरायै
76 ओं श्रियै
77 ओं भास्कर्यै
78 ओं बिल्व निलयायै
79 ओं वरारोहायै
80 ओं यशस्विन्यै
81 ओं वसुंधरायै
82 ओं उदारांगायै
83 ओं हरिण्यै
84 ओं हेममालिन्यै
85 ओं धनधान्यकर्यै
86 ओं सिद्धये
87 ओं स्त्रैण सौम्यायै
88 ओं शुभप्रदायै
89 ओं नृपवेश्मगतानंदायै
90 ओं वरलक्ष्म्यै
91 ओं वसुप्रदायै
92 ओं शुभायै
93 ओं हिरण्यप्राकारायै
94 ओं समुद्र तनयायै
95 ओं जयायै
96 ओं मंगळायै
97 ओं देव्यै
98 ओं विष्ञु वक्ष स्थल स्थितायै
99 ओं विष्णुपत्न्यै
100 ओं प्रसन्नाक्ष्यै
101 ओं नारायण समाश्रितायै
102 ओं दारिद्र्यध्वंसिन्यै
103 ओं सर्वोपद्रव निवारिण्यै
104 ओं नवदुर्गायै
105 ओं महाकाळ्यै
106 ओं ब्रह्मविष्णु शिवात्मिकायै
107 ओं त्रिकालज्ञान संपन्नायै
108 ओं भुवनेश्वर्यै
इति श्री लक्ष्म्यष्टोत्तर शतनामार्चनं समर्पयामि।।
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धूपः -
• दशाङ्गं गुग्गूलोपेतं सुगन्धं सुमनोहरम्।
धूपं दास्यामि ते देवि वरलक्ष्मि गृहाण तम्।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यैनमो नमः।। धूप माघ्रापयामि।।
दीपः -
• घृताक्तवर्तिसंयुक्त-मन्धकार.विनाशकम्।
दीपं दास्यामि ते देवि- गृहाण मुदिता भव।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यैनमो नमः।। दीपं दर्शयामि।। धूप दीपानन्तरं शुद्धाचमनीयं समर्पयामि।।
नैवेद्यम् -
• अन्नं चतुर्विधं स्वादु रसै.ष्षड्भि.स्समन्वितम्।
गृहाण भक्ष्य.भोज्यादि सुमृष्टं सर्वमङ्गले||
• नैवेद्यं षड्रसोपेतं दधिमध्वाज्यसंयुतम्।
नानाभक्ष्यफलोपेतं गृहाण हरिवल्लभे।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। नैवेद्यं निवेदयामि।।
मध्ये मध्ये उदकपानीयं समर्पयामि। हस्तौ प्रक्षालयामि। पादौ प्रक्षालयामि। मुखे शुद्धाचमनीयं समर्पयामि।।
ताम्बूलम् -
• पूगीफल समायुक्तं नागवल्ली.दलै.र्युतम्।
कर्पूरचूर्ण संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। तांबूलं समर्पयामि।।
नीराजनम् -
• कन्याभिः कमनीय कान्तिभि रलं स्वश्रीभि रारार्तिकं
पात्रेमौक्तिक चित्रपंक्ति विलस त्कर्पूर दीपाळिभिः।
तत्त त्ताळ मृदङ्ग गीत सहितं नृत्य त्पदांभोरुहम्
मंत्राराधन पूर्वकं सुविहितं नीराजनं गृह्यताम्।।
• वाणी-लक्ष्मी-शची-मौलि- नीराजित पदाम्बुजे|
शिवे नीराजयामि त्वां नित्यलोक.प्रकाशिकाम्||
श्री वरलक्ष्मी देव्यैनमो नमः।। नीराजनं दर्शयामि।। नीराजनान्तरं शुद्धाचमनीयं समर्पयामि।
मन्त्रपुष्पम् -
रथमध्या मश्वपूर्वां गज नाद प्रबोधिनीम्।
साम्राज्यदायिनीं देवीं गजलक्ष्मीं नमाम्यहम्।।1
धनमग्नि-र्धनं वायु-र्धनं भूतानि पंच च।
प्रभूतैश्वर्य सन्धात्रीं धनलक्ष्मीं नमाम्यहम्।। 2
पृथ्वी गर्भ समुद्भिन्न नानाव्रीहि स्वरूपिणीम्।
पशुसंपत्स्वरूपां च धान्यलक्ष्मीं नमाम्यहम्।। 3
न मात्सर्यं न च क्रोधो न भीतिर्न च भेद धीः।
यद्भक्तानां विनीतानां धैर्यलक्ष्मीं नमाम्यहम्।। 4
पुत्रपौत्र स्वरूपेण पशुभृत्यात्मना स्वयम्।
संभवन्तीञ्च सन्तान लक्ष्मीं देवीं नमाम्यहम्।। 5
नाना विज्ञान सन्धात्रीं बुद्धि शुद्धि प्रदायिनीम्।
अमृतत्व प्रदात्रीं च विद्यालक्ष्मीं नमाम्यहम्।। 6
नित्यसौभाग्य सौशील्यं वरलक्ष्मी र्ददाति या।
प्रसन्नां स्त्रैण सुलभा मादिलक्ष्मीं नमाम्यहम्।। 7
सर्वशक्तिस्वरूपाञ्च सर्वसिद्धि प्रदायिनीम्।
सर्वेश्वरीं श्रीविजय लक्ष्मीं देवीं नमाम्यहम्।। 8
अष्टलक्ष्मी समाहार स्वरूपां तां हरिप्रियाम्।
मोक्षलक्ष्मीं महालक्ष्मीं सर्वलक्ष्मीं नमाम्यहम्।। 9
दारिद्र्य दुःखहरणं समृद्धिरपि सम्पदाम्।
सच्चिदानन्द पूर्णत्व मष्टलक्ष्मी स्तुतेर्भवेत्।।10
श्री वरलक्ष्मी देव्यैनमो नमः।। मन्त्रपुष्पं समर्पयामि।।
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प्रदक्षिण नमस्काराः -
• यानिकानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च।
तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणपदेपदे।।
• पापोहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः।
त्राहि मां कृपया देवि शरणागतवत्सले।।
• अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम।
तस्मात् कारुण्यभावेन रक्ष रक्ष महेश्वरि।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः।। प्रदक्षिण नमस्कारान् समर्पयामि।।
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अथ नवसूत्र ग्रन्थि पूजा
कमलायै नमः - प्रथम ग्रन्थिं पूजयामि.
रमायै नमः - द्वितीय ग्रन्थिं पूजयामि.
लोकमात्रे नमः - तृतीय ग्रन्थिं पूजयामि.
विश्वजनन्यै नमः - चतुर्थ ग्रन्थिं पूजयामि.
महालक्ष्म्यै नमः - पञ्चमग्रन्थिं पूजयामि.
क्षीराब्धितनयायै नमः - षष्ठग्रन्थि पूजयामि.
विश्वसाक्षिण्यै नमः - सप्तमग्रन्थि पूजयामि.
चन्द्रसोदर्यै नमः - अष्टमग्रन्थिं पूजयामि.
हरिवल्लभयै नमः - नवमग्रन्थिं पूजयामि.
सूत्रबन्धन मन्त्रः -
बध्नामि दक्षिणे हस्ते नवसूत्रं शुभप्रदं।
पुत्रपौत्राभि वृद्धिं च, सौभाग्यं देहि मे रमे।।
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भागप्रदानम्
एवं संपूज्य कल्याणीं वरलक्ष्मीं स्वशक्तितः।
दातव्यं द्वादशापूपं वायनं हि द्विजातये।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमः भागं समर्पयामि।।
• इन्दिरा प्रतिगृह्णतु इन्दिरा वै ददाति च।
इन्दिरा तारिकोभाभ्यां इन्दिरायै नमो नमः।
श्री वरलक्ष्मी देव्यै नमो नमः।। अपूपभागं समर्पयामि।।
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अपराध स्तुतिः -
• आवाहन.न्न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजा.ञ्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।
अपराध सहस्राणि क्रियन्ते हर्निशं मया।
दासोय मिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि।।
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपःपूजा क्रियादिषु।
न्यूनं संपूर्णतां याति सद्योवन्देतमच्युतम्।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं महेश्वरि।
यत्पूजितं मयादेवि परिपूर्णं तदस्तु ते।।
अनया कल्पोक्त प्रकारेण मया कृतया षोडशोपचार पूजया भगवती सर्वदेवात्मिका श्री वरलक्ष्मि देवता प्रीयताम्।। तत्सत् ब्रह्मार्पण मस्तु।।
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उद्वासनम् -
उपस्थिता गृहेस्माकं वरलक्ष्मि वसुप्रदे। पूजया तोषिता देवि यथास्थान.मिहि स्वकम्।।
श्री वरलक्ष्मी देव्यैनमो नमः यथास्थानं प्रवेशयामि।। शोभनार्थे क्षेमाय पुन.रागमनाय च।।
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