रथ सप्तमी प्रार्थन मन्त्राः
रथसप्तमी स्नान श्लोकाः
सप्तसप्तिप्रिये देवि सप्तलोकप्रदीपिके|
सप्तजन्मार्जितं पापं हर सप्तमि सत्वरम्|| 1
एतज्जन्म कृतं पापं कृतं सप्तसु जन्मसु|
सर्वं शोकं च मोहं च माकरी हन्तु सप्तमी|| 2
नौमि सप्तमि देवि त्वां सप्तलोकैक मातरम्|
सप्तार्कपत्र स्नानेन मम पापं व्यपोहय|| 3
यद्यज्जन्मकृतं पापं मया सप्तसु जन्मसु ।
तन्मे रोगं च शोकं च माकरी हन्तु सप्तमी।। 4
एतज्जन्मकृतं पापं यच्च जन्मान्तरार्जितम् ।
मनोवाक्कायजं यच्च ज्ञाताज्ञातं च यत्पुन:।। 5
इति सप्तविधं पापं स्नानान्मे सप्त सप्तके ।
सप्तव्याधिसमायुक्तं हर माकरि सप्तमि ।। 6
नमस्ते रुद्ररूपाय रसानां पतये नम:।
वरुणाय नमस्तेस्तु हरिवास नमोस्तु ते।। 7
जननी सर्वभूतानां सप्तमी सप्तसप्तिके।
सर्वव्याधिहरे देवि नमस्ते रविमण्डले।। 8
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अर्घ्य प्रदान श्लोकः
सप्तसप्तिवहप्रीत सप्तलोकप्रदीपन।
सप्तमी सहितो देव गृहाणार्घ्यं दिवाकर।। 9
अथवा
सप्त सप्ति रथारूढ सप्तलोक प्रकाशक|
सप्तम्या सहितो देव गृहाणार्घ्यं दिवाकर||
- ओं मित्राय नमः।
ओं रवये नमः।
ओं सूर्याय नमः।
ओं भानवे नमः।
ओं खगाय नमः।
ओं पूष्णे नमः।
ओं हिरण्यगर्भाय नमः।
ओं मरीचये नमः।
ओं आदित्याय नमः।
ओं सवित्रे नमः।
ओं अर्काय नमः।
ओं भास्कराय नमः।
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धर्मशास्त्रे पर्वनिर्णयः
माघशुक्ल सप्तमी रथसप्तमी|
सा अरुणोदय व्यापिनी ग्राह्या!
सूर्य ग्रहण तुल्यात् शुक्लामाघस्य सप्तमी|
अरुणोदय वेलायां तस्यां स्नानं महाफलं||
इति चन्द्रिकायां विष्णु वचनात्
अरुणोदय वेळायां शुक्ला माघस्य सप्तमी|
प्रयागे यदि लभ्येत कोटिसूर्य ग्रहैः समा||
इति वचनाच्च।
यत्तु दिवो दासीये
अचला सप्तमी दुर्गा शिवरात्रिर्महाभरः|
द्वादशी वत्स पूजायां सुखदा प्राग्युता सदा|| इति षष्ठीयुतत्वमुक्तम्।
तत् यथा, पूर्वेह्नि घटिकाद्वयं षष्ठी, सप्तमी परेद्युः क्षयवशात् अरुणोदयात्पूर्वं समाप्यते तत्परं ज्ञेयं| तत् षष्ठ्यां सप्तमी क्षयप्रवेशादरुणोदये स्नानं कार्यम्||
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सप्तमी तिथि की सुबह जल्दी उठकर नदी या सरोवर पर जाकर स्नान करें।
सोने, चांदी अथवा तांबे के दीपक में तिल का तेल डालकर जलाएं।
- दीपक को सिर पर रखकर ह्रदय में भगवान सूर्य का इस प्रकार ध्यान करें-
उपर्युक्त ध्यानश्लोक पढेँ....
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- इसके बाद दीपक को नदी में बहा दें। दोबारा स्नान कर देवताओं व पितरों का तर्पण करें और चंदन की टहनी से भोजपत्र पर अष्टदल कमल बनाएं।
- उस कमल के बीच में शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित कर प्रणव-मंत्र से पूजा करें और पूर्वादि आठ दलों में क्रम से भानु, रवि, विवस्वान, भास्कर, सविता, अर्क, सहस्त्रकिरण तथा सर्वात्मा की पूजा करें।
- ओं मित्राय नमः।
ओं रवये नमः।
ओं सूर्याय नमः।
ओं भानवे नमः।
ओं खगाय नमः।
ओं पूष्णे नमः।
ओं हिरण्यगर्भाय नमः।
ओं मरीचये नमः।
ओं आदित्याय नमः।
ओं सवित्रे नमः।
ओं अर्काय नमः।
ओं भास्कराय नमः।
- इस प्रकार फूल, धूप, दीप, नैवेद्य तथा वस्त्र आदि उपचारों से विधिपूर्वक भगवान सूर्य की पूजा कर- स्वस्थानं गम्यताम यह कहकर विसर्जित कर दें।
- बाद में तांबे अथवा मिट्टी के बर्तन में गुड और घी सहित तिल का चूर्ण तथा सोने का एक आभूषण रख दें।
- इसके बाद लाल कपडे से ढंककर पुष्प-धूप आदि से पूजा करें और वह बर्तन योग्य ब्राह्मण को दान कर दें।
- फिर सपुत्रपशुभृत्याय मेर्कोयं प्रीयताम् (पुत्र, पशु, भृत्य समन्वित मेरे ऊपर भगवान सूर्य मेरे ऊपर प्रसन्न हो जाएं) ऐसी प्रार्थना करें।
- फिर गुरु को वस्त्र, तिल, गाय और दक्षिणा देकर तथा शक्ति के अनुसार अन्य ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत का समापन करें।
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अचला सप्तमी व्रत का महत्व इस प्रकार है-
- अचला सप्तमी को पुराणों में रथ, सूर्य, भानु, अर्क, महती तथा पुत्र सप्तमी भी कहा गया है। इस दिन व्रत करने से संपूर्ण माघ मास के स्नान का फल मिलता है।
- अचला सप्तमी के महत्व का वर्णन स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को कहा था। धर्मग्रंथों के अनुसार इस दिन यदि विधि-विधान से व्रत व स्नान किया जाए तो संपूर्ण माघ मास के स्नान का पुण्य मिलता है।
- व्रत के रूप में इस दिन नमक रहित एक समय एक अन्न का भोजन अथवा फलाहार करने का विधान है। एक मान्यता यह भी है कि अचला सप्तमी व्रत करने वाले को वर्षभर रविवार व्रत करने का पुण्य प्राप्त हो जाता है।
- जो अचला सप्तमी के महत्व को श्रद्धा भक्ति से कहता अथवा सुनता है तथा उपदेश देता है वह भी उत्तम लोकों को प्राप्त करता है।
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अचला सप्तमी व्रत की कथा इस प्रकार है-
- मगध देश में इंदुमती नाम की एक वेश्या रहती थी। एक दिन उसने सोचा कि यह संसार तो नश्वर है फिर किस प्रकार यहां रहते हुए मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है?
- यह सोच कर वह वेश्या महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में चली गई और उनसे कहा- मैंने अपने जीवन में कभी कोई दान, तप, जाप, उपवास आदि नहीं किए हैं।
- आप मुझे कोई ऐसा व्रत बतलाएं जिससे मेरा उद्धार हो सके। तब वशिष्ठजी ने उसे अचला सप्तमी स्नान व व्रत की विधि बतलाई।
- वेश्या ने विधि-विधान पूर्वक अचला सप्तमी का व्रत व स्नान किया, जिसके प्रभाव से वह वेश्या बहुत दिनों तक सांसारिक सुखों का उपभोग करती हुई देहत्याग के पश्चात देवराज इंद्र की सभी अप्सराओं में प्रधान नायिका बनी।
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